उम्मीद
उम्मीद
धीरे धीरे सब्र का पैमाना कम हो रहा। कोशिश जारी हैं जंग जीतने की, पर मन का क्या करूँ... जो आषाढ़ के दिन की तरह धूप छाँव की तरह हो जाती हैं। रोजमर्रा के कामों से ऊब हो रही है.... हर सुबह एक उम्मीद से नींद खुलती है..दिन -रात कभी इतने लम्बे नहीं लगे जितना अब लगते हैं। सड़क पर आवाजाही कम है... रात का सन्नाटा ज्यादा गहराने लगा... पर हिम्मत नहीं हारनी है। देश की आवाज़ हैं हम साथ हैं... यहीं हिम्मत है आज की परिस्थितियों से निपटने की .... प्रकृति की छटा निखरती जा रही क्योंकि अभी प्रदूषण नहीं है। बीते सालों में आकाश कभी इतना नीला नहीं दिखा जितना अब दीखता हैं... उम्मीद हैं सब जल्दी ठीक होगा।