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Prafulla Kumar Tripathi

Tragedy Action Inspirational

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Prafulla Kumar Tripathi

Tragedy Action Inspirational

उजड़ा हुआ दयार -श्रृंखला (27)

उजड़ा हुआ दयार -श्रृंखला (27)

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कथानायक समीर इन दिनों अब सूफियाना हो चला है। जीवन के आइने ने उसे एक से एक तल्ख़ एहसास दिखा डाले हैं। उसे कभी - कभी आश्चर्य हो रहा है कि जब उसने जन्म लिया होगा, अपनी मां की गोद में किलकारियां भर रहा होगा, बकइयां (आंचलिक भोजपुरी शब्द जिसका अर्थ है बालकों का घुटनों के बल चलना ) चलकर परिजनों को सुख दे रहा होगा, अपनी तोतली ज़ुबान में बातें कर रहा होगा तो क्या कभी भी किसी को इस बात का एहसास रहा होगा कि अधेड़ या बुढ़ापा आते आते वह क्या क्या अनुभव कर लेगा ? जीवन के उस मोड़ पर जब जीवन साथ की आवश्यकता होती है तो वह गुड बाय कर देती है। नौकरी जिसके लिए आदमी जी जान लगा देता है हमेशा रेड सिग्नल दिखाने लगे ..और..और जाने क्या क्या ! 

 उसे याद आ रहे हैं ग्रेजुएट में हिन्दी लिटरेचर में पढ़े गये हिन्दी काव्य के शीर्ष कवि. सुमित्रानंदन पंत और उनकी एक लोकप्रिय कविता. " .प्रथम रश्मि...."और उसकी कुछ अत्यंत मोहक पंक्तियाँ ..... 

" प्रथम रश्मि का आना रंगिणी,  

तुमने कैसे पहचाना ?

कहाँ, कहाँ हे बाल-विहंगिनि !

पाया तूने वह गाना ?


सोयी थी तू स्वप्न नीड़ में,

पंखों के सुख में छिपकर,

ऊँघ रहे थे, घूम द्वार पर,

प्रहरी-से जुगनू नाना।


शशि-किरणों से उतर-उतरकर,

भू पर कामरूप नभ-चर,

चूम नवल कलियों का मृदु-मुख,

सिखा रहे थे मुसकाना।


स्नेह-हीन तारों के दीपक,

श्वास-शून्य थे तरु के पात,

विचर रहे थे स्वप्न अवनि में

तम ने था मंडप ताना।


कूक उठी सहसा तरु-वासिनि !

गा तू स्वागत का गाना,

किसने तुझको अंतर्यामिनि !

बतलाया उसका आना !"

हाँ - हाँ .. हम सबसे अच्छे तो ये खग मृग ही हैं ...उनका ना घर है ना ठिकाना ..बस जब तक जीवन है चलते जाना है ! जहां शाम हो गई परिंदे कहीं भी आश्रय ले लिए और सुबह हुई तो फिर उन्मुक्त गगन में, पेड़ -पर, घर की छत पर, ताल तलैय्या में, वन में ...पहाड़ पर ...


उसे यह भी याद आ रहा है जब वह बचपन में अपने पिताजी के साथ एक महान ज्योतिषी पंडित शैलेन्द्र मिश्रा के यहाँ गया हुआ था। वे मेरे छोटे छोटे हाथ के पंजों को देखते हुए बता रहे थे ..."हस्‍तरेखा शास्‍त्र हाथ की लकीरों, आकृतियों, निशान, तिल, बनावट, रंग आदि के आधार पर जातक के स्‍वभाव, भविष्य के बारे में बताता है। इससे जातक की आर्थिक स्थिति, सेहत, करियर, परिवार, उसके जीवन में आने वाले दुख-सुख, दुर्घटनाओं समेत तमाम जानकारियां मिल जाती हैं। आज हम एक ऐसी रेखा के बारे में आपको बताते हैं, जिसे हस्‍तरेखा में बेहद शुभ माना गया है.....जानते हैं उसका नाम ? ........ इस रेखा का नाम है विष्‍णु रेखा। सच मानिए जिन लोगों के हाथ में विष्‍णु रेखा होती है वे बेहद सौभाग्यशाली होते हैं जैसे आपके कुल दीपक समीर ! आगे वे रुके नहीं थे और अपना सारा ज्ञान बिना मांगे ही परोसे जा रहे थे ..... 

" जब हृदय रेखा से कोई रेखा निकलकर गुरु पर्वत पर इस तरह जाए कि हृदय रेखा 2 भागों में बंटी नजर आए तो उसे विष्णु रेखा कहते हैं। यह रेखा बेहद लकी लोगों के हाथ में होती है। इन लोगों पर भगवान विष्‍णु की विशेष कृपा रहती है। इस कारण न केवल उनके जीवन में कम मुसीबतें आती हैं. बल्कि हर काम में उन्‍हें किस्‍मत का साथ भी मिलता है ..... जिन लोगों के हाथों में विष्‍णु रेखा होती है, वे जिस क्षेत्र में जाएं खूब तरक्‍की करते हैं। वे अपने जीवन में ऊंचा मुकाम पाते हैं. सुख-समृद्धि से भरपूर जीवन जीते हैं. खूब मान-सम्‍मान पाते हैं. कह सकते हैं कि वे हर मामले में कामयाब होते हैं. इन लोगों में साहस और निडरता भी भरपूर होती है.। इस कारण यदि उनके जीवन में चुनौतियां आएं भी तो वे उनका डटकर सामना करते हैं और उनसे पार पाकर ही दम लेते हैं.। इन लोगों की धर्म-कर्म में भी रुचि होती है। साथ ही वे अच्‍छा आचरण करने, ईमानदारी-सच्‍चाई के रास्ते पर चलने में यकीन करते हैं.।"

पंडित जी ने तो अपना अनुमान बता दिया था और जहां तक मुझे याद है पिताजी से इसके लिए अच्छी खासी रकम भी पा ली थी। लेकिन मैं ...? मैं तो ज़िंदगी के हर मोड़ पर इन घोषणाओं से उलट चुनौतियों का सामना कर रहा था। तो क्या ये पंडित, ये भाग्य रेखाओं का चक्कर फिजूल है ?

हाँ ! एकदम फिजूल है। लेकिन शायद उतनी फिजूल नहीं जितनी समीर समझ रहा हो। आखिर अगर बाबा लोगों का यह धंधा फर्जी है तो उनकी दुकान चलती रहती है कैसे ?.......क्या आप बता सकते हैं ?

(क्रमशः)


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