Prafulla Kumar Tripathi

Tragedy Action Inspirational

4.3  

Prafulla Kumar Tripathi

Tragedy Action Inspirational

उजड़ा हुआ दयार- श्रृंखला(13)

उजड़ा हुआ दयार- श्रृंखला(13)

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बचपन, जवानी और बुढ़ापे के क्रम को विज्ञान भी नहीं रोक पाया है। यह एक प्रकृति जनक प्रक्रिया है। वे , हम, आप, मीरा या समीर......... हर एक को इस दौर से गुजरना ही है। बचपन पीछे छूटने लगता है तब तो यौवन की ख़ुमार में उतना दुख नहीं महसूस होता है लेकिन जब जवानी उतरने लगती है तो जाने क्यों ऐसा लगने लगता है कि अब अपना अस्तित्व ही ढलने लगा है। कवि मित्र कुमार रवींद्र ठीक ही लिखते हैं........... 

"साधो, सच है, जैसे मानुष.. वैसे ही धीरे-धीरे हर मकान भी बूढ़ा होता।  

देह घरों की थक जाती है,  बस जाता भीतर अँधियारा। 

उसके हिरदय नेह-सिंधु जो, वह भी हो जाता है खारा। 

घर में, जो देवा बसता है , घर को मथ कर ज़हर बिलोता,...... 

थकी-बुढ़ाई हो जाती हैं.. चौखट-दीवारें भी घर की..साँसें जो मधुमास हुईं थीं..

बाट जोहती हैं पतझर की। किसी अँधेरे, कोने में छिप कर.. घर का पुरखा है रोता।"

आगे उन्होंने लिखा है ....

"कल्पवृक्ष जो था आँगन में,

उस पर अमरबेल चढ़ जाती.. 

बीते हुए समय का लेखा, लिखती बुझे दिये की बाती। 

कालपुरुष तब, ढली धूप के बीज,........ खंडहर-घर में बोता. ! "

सचमुच कितनी हृदयग्राही हैं ये पंक्तियाँ ! जीवन के कुछ सच से आप छुटकारा नहीं पा सकते ठीक उसी तरह जैसे समीर अपनी ज़िंदगी में ब्याह कर लाइ गई मीरा के असत्त्व को नकार नहीं सकता है। उसने सिंदूर दान किया है ,उसकी देखरेख करने का संकल्प लिया है। इस समारोह के लिए पढ़े गए मन्त्र , अग्नि के समक्ष लिए गए फेरे , समूचा विवाह मंडप और वहां उपस्थित जन समुदाय ..सभी तो गवाह हैं। अब आगे चल कर आपके जीवन में आपके कल्पवृक्ष पर अगर अमर बेल चढ़ती जा रही है तो उससे तो बचने का रास्ता आप को ही तय करना होगा ?

"मुझे..!" अचकचा कर वह अपने आप से प्रश्न पूछता है।

हाँ..हाँ तुम्हें समीर ..समीर तुम्हें ! ' उसे प्रति उत्तर मिला।

"याद करो, विवाह मंडप में फेरे लेते समय अर्थात सप्तपदी के वचन ? ....

"पहला वचन

तीर्थव्रतोद्यापन यज्ञकर्म मया सहैव प्रियवयं कुर्या:

वामांगमायामि तदा त्वदीयं ब्रवीति वाक्यं प्रथमं कुमारी!।

अर्थात..कन्या अपने पहले वचन में वर से कहती है कि यदि आप कभी तीर्थयात्रा को जाओ तो मुझे भी अपने संग लेकर जाना। कोई व्रत-उपवास अथवा अन्य धर्म कर्म का कोई कार्य करें तो आज की भांति ही मुझे अपने वाम भाग में अवश्य स्थान दें। यदि आप इसे स्वीकार करते हैं तो मैं आपके वामांग में आना स्वीकार करती

दूसरा वचन

पुज्यो यथा स्वौ पितरौ ममापि तथेशभक्तो निजकर्म कुर्या:

वामांगमायामि तदा त्वदीयं ब्रवीति कन्या वचनं द्वितीयम!!

अर्थात कन्या अपने दूसरे वचन में वर मांगती है कि जिस प्रकार आप अपने माता-पिता का सम्मान करते हैं, उसी प्रकार मेरे माता-पिता का भी सम्मान करें तथा कुटुम्ब की मर्यादा के अनुसार धर्मानुष्ठान करते हुए ईश्वर भक्त बने रहें तो मैं आपके वामांग में आना स्वीकार करती हूं।

तीसरा वचन

जीवनम अवस्थात्रये पालनां कुर्यात

वामांगंयामितदा त्वदीयं ब्रवीति कन्या वचनं तृतीयं!!

तीसरे वचन में कन्या वर मांगती है कि आप मुझे यह वचन दें कि आप जीवन की तीनों अवस्थाओं में मेरा पालन करते रहेंगे, तो ही मैं आपके वामांग में आने को तैयार हूं।

चौथा वचन है

कुटुम्बसंपालनसर्वकार्य कर्तु प्रतिज्ञां यदि कातं कुर्या:

वामांगमायामि तदा त्वदीयं ब्रवीति कन्या वचनं चतुर्थ:।।

इसका भावार्थ है कन्या अपने चौथे वचन में कहती है कि अब तक आप घर-परिवार की चिंता से पूर्णत: मुक्त थे। अब जब कि आप विवाह बंधन में बंधने जा रहे हैं तो भविष्य में परिवार की समस्त आवश्यकताओं की पूर्ति का दा‍यित्व आपके कंधों पर है। यदि आप इस भार को वहन करने की प्रतिज्ञा करें तो ही मैं आपके वामांग में आ सकती हूं। 

पांचवां वचन है..

स्वसद्यकार्ये व्यहारकर्मण्ये व्यये मामापि मन्‍त्रयेथा

वामांगमायामि तदा त्वदीयं ब्रूते वच: पंचमत्र कन्या!!

अर्थात पांचवें वचन में कन्या वर मांगती है कि जो वह कहती है, वह आज के परिप्रेक्ष्य में अत्यंत महत्व रखता है। वह कहती है कि अपने घर के कार्यों में, लेन-देन अथवा अन्य किसी हेतु खर्च करते समय यदि आप मेरी भी मंत्रणा लिया करें तो मैं आपके वामांग में आना स्वीकार करती हूं।

छठवां वचन है..

न मेपमानमं सविधे सखीना द्यूतं न वा दुर्व्यसनं भंजश्वेत

वामाम्गमायामि तदा त्वदीयं ब्रवीति कन्या वचनं च षष्ठम!!

कन्या अपने छठे वचन में कहती है कि यदि मैं अपनी सखियों अथवा अन्य स्‍त्रियों के बीच बैठी हूं, तब आप वहां सबके सम्मुख किसी भी कारण से मेरा अपमान नहीं करेंगे। यदि आप जुआ अथवा अन्य किसी भी प्रकार के दुर्व्यसन से अपने आपको दूर रखें तो ही मैं आपके वामांग में आना स्वीकार करती हूं।

सातवां और अंतिम वचन है..

परस्त्रियं मातूसमां समीक्ष्य स्नेहं सदा चेन्मयि कान्त कूर्या।

वामांगमायामि तदा त्वदीयं ब्रूते वच: सप्तमंत्र कन्या!!

आपको वरमाला पहनाने वाली कन्या अपने अंतिम वचन के रूप में आपसे वचन मांगती है कि आप पराई स्त्रियों को माता के समान समझेंगे और पति-पत्नी के आपसी प्रेम के मध्य अन्य किसी को भागीदार न बनाएंगे। यदि आप यह वचन मुझे दें तो ही मैं आपके वामांग में आना स्वीकार करती हूं।"

जैसे लम्बी बेहोशी से समीर जगा हो। वह जगा भी तब है जब प्रदूषित खानपान और जीवन चर्या ने उसे बीमार बना डाला है। अलकोहल, मांसाहारी व्यंजन और फास्ट फूड ने उसकी सेहत को बुरी तरह से प्रभावित कर दिया है। उसने रही सही कसर पर स्त्री गमन को लेकर पूरी कर डाली थी.. उस उस कामपिपासुनी ने समीर को हाड़ मांस का पुतला मात्र बनाकर छोड़ डाला था।

(क्रमशः) 



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