astha singhal

Inspirational

2.5  

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उड़ान भाग 1

उड़ान भाग 1

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सुबह छह बजते ही अलार्म बज पड़ा। राघिका फटाफट उठी और दरवाज़े पर लटकी थैली से दूध के पैकेट निकाल सीधे रसोईघर में पहुंच पैकेट को काटकर उबलने के लिए रख दिया। फिर सुबह के नित्य कर्म से निवृत्त होकर वो सीधा रसोईघर में पहुंची और अपना काम करना शुरू कर दिया। 


बीच-बीच में वो अपने बच्चों को आवाज़ लगाती रही,

"पीहू, अथर्व, उठो बेटा। स्कूल का समय हो रहा है।" 


एक तरफ उसने आटा गूंथा और एक तरफ चाय चढ़ाई। सब्जी छोंक कर वो हाथ में चाय ले अपने कमरे में पहुंची। टेबल पर चाय रख कर बिस्तर के पास गयी और प्यार से बोली,"राज, उठो, समय हो गया है।" 


राजेश ने कम्बल से अपने मुंह को ढक लिया। राधिका ने आहिस्ता से उसके कम्बल को नीचे करते हुए कहा,"राजेश बाबू, आज आपकी बहुत ज़रूरी मीटिंग है। उठ जाइए वरना नुकसान आप का ही होगा।" ये कह राधिका वहां से जाने लगी। तभी राजेश ने उसकी बाहें पकड़ी और अपनी तरफ खींचते हुए कहा,"कुछ मीठा मिल जाता तो नुकसान की भरपाई हो जाती।" 


राधिका ने उसकी उंगली गर्म चाय में डुबो दी और बोली,"राजेश बाबू, बिना मेहनत के मीठा नहीं मिलता।" 


राजेश गर्म चाय में उंगली डलने से चीख पड़ा। और राधिका हंसते हुए वहां से भाग गयी। 


राधिका ने अपने दस साल के बेटे अथर्व के सिर पर प्यार से हाथ फेरा और उसके माथे को चूमते हुए बोली,"मेरा राजा बेटा, जल्दी से उठ जा।" 


फिर वो अपनी पंद्रह वर्षीय बेटी पीहू के पास गयी और उसके भी सिर पर प्यार से हाथ फेरते हुए बोली,"मेरी प्रिंसेस, उठ जा बच्चा, सात बज रहे हैं।" 


यह सुनते ही पीहू हड़बड़ा कर उठी और बोली,"आप भी कमाल हो मम्मी। आपको बोला था ना कि मुझे छह बजे उठा देना। क्यों नहीं उठाया?"


कुछ पल के लिए राधिका हक्की-बक्की रह गई। सुबह-सुबह उठते ही पीहू का यूं चीखना अब आम बात होती जा रही थी। ना मां से गले लगती है ना सुबह की विश करती है, बस चीखना शुरू कर देती है। राधिका ये सब सोच ही रही थी कि पीहू फिर चीखी,"बोलते क्यों नहीं आप कुछ मम्मी? पूछ रही हूं कुछ।"


"मैंने उठाया था आपको पीहू। आवाज़ भी दी थी। पर आप नहीं उठे। तो मैं क्या करूं!" राधिका पलंग से कम्बलों को समेटते हुए बोली। 


"मुझे मेरा प्रोजेक्ट खत्म करना था। अब कैसे करूं?" पीहू पैर पटकते हुए बाथरूम में घुस गई। 


राधिका भारी मन से रसोईघर में वापस आई और सबके लिए नाश्ता बनाने में जुट गई। पर मन में एक तुफान उठ रहा था। मन ही मन वो सोच रही थी कि पीहू उससे किस तरह बात करने लगी है आजकल। जो मुंह में आता है बोल देती है। ना समय देखती है और ना जगह। 


कुछ समय बाद सब तैयार होकर खाने की टेबल पर आ गये। तब राधिका सबके लिए नाश्ता परोस चुकी थी और सबके टिफिन पैक कर चुकी थी। पीहू का मूड अब भी खराब था। उसे ऐसे देख राधिका ने प्यार से कहा,"अब गुस्सा थूक दे पीहू। तेरी पसंद का नाश्ता बनाया है। जल्दी से खा ले बेटा।"


"मुझे नहीं खाना नाश्ता। इस प्रोजेक्ट के लिए इतनी मेहनत की थी मैंने पर आपकी वजह से उसपर पानी फिर गया। मैं आवाज़ से नहीं उठी थी तो आकर हिला देते मुझे।" पीहू ने ऊंची आवाज़ में कहा। 


"मुझे और काम नहीं हैं क्या घर में? तुम सब को उठाने का ही काम रह गया है क्या?" राधिका भी चिल्ला पड़ी। 


"बस, हो गई आपकी स्टोरी शुरू। आपको पता भी है प्रोजेक्ट्स कितने ज़रुरी होते हैं? पता नहीं कभी कोई प्रोजेक्ट बनाया भी है ज़िन्दगी में आपने आज तक।" पीहू बैग उठा कर बाहर जाने लगी। 


"अरे! टिफिन तो लेकर जा।" राधिका ने कहा।


"नहीं लेकर जाना। आपको मुबारक हो आपका टिफिन। चल उठ अथर्व। बस वाला हॉर्न बजा रहा है।" पीहू गुस्से से राधिका को देखते हुए चली गई। 


राधिका टिफिन उठा उसके पीछे गयी पर तब तक वो बस में चढ़ चुकी थी। मायूस हो राधिका घर के अंदर वापस आ गई। उसकी आंखों में नमी और दर्द साफ झलक रहा था। पीहू की बातें उसे तीर के समान चुभ रही थीं। 


"राजेश, देखा कैसे बात करके गई है पीहू मुझसे। बहुत बदतमीजी होती जा रही है आजकल। और तुम कुछ कहते क्यों नहीं उसे?" राधिका चिल्लाई।


राजेश, जो एक ज़रूरी मेल भेजने में व्यस्त था, अपनी आंखें वहीं गढ़ा कर रखते हुए बोला,"राधा, शांत हो जाओ। वो डिस्टर्ब थी आज। उसका प्रोजेक्ट पूरा नहीं हुआ ना इसलिए।" 


"तो, तो क्या ये मेरी गलती है? मुझे भी सुबह-सुबह दस काम होते हैं। ऊपर से तुम सबको उठाने की ज़िम्मेदारी भी मेरी ही होती है। कितना करूं? कब तक करूं।" राधिका की आंखों से आंसू बह निकले। 


राजेश ने अपना लेपटॉप बंद किया और उठकर उसके पास आया और उसे अपनी बाहों में भर उसके आंसू पोंछते हुए बोला,"राधा, मैं जानता हूं कि काम के प्रेशर से ओवरलडिड हो। मैं मानता हूं पीहू को इस तरह बात नहीं करनी चाहिए थी। शाम को मैं बात करूंगा उससे। बस, अब तो मुस्कुरा दो मेरी राधा रानी। वरना मेरा प्रोजेक्ट खराब हो जाएगा।" 


"हां, क्यों नहीं। सबका प्रोजेक्ट मेरी वजह से ही ख़राब होता है। मैं ही कल्प्रिट हूं।" राधिका राजेश की बाहों के घेरे से बाहर निकलते हुए बोली। 


राजेश ने उसे फिर से अपनी तरफ खींचते हुए कहा,"मेरा वो मतलब नहीं था। तुम उदास रहोगी तो ऑफिस में मेरा मन कैसे लगेगा।"


"रहने दो। झूठे कहीं के। एक भी फोन नहीं करते ऑफिस पहुंच कर तुम। याद तो दूर की बात है। बस मख्खन लगवा लो जितना मर्ज़ी।" राधिका ने उसकी आंखों में शरारत भरे अंदाज़ से देखते हुए कहा।


"उफ्फ, ये अदा, ये खूबसूरत आंखें। सच में, इन्हें याद करूंगा अगर ऑफिस में तो काम कैसे करूंगा मेरी जान।" राजेश ने राधिका के और करीब आते हुए कहा।


"राजेश बाबू, अब आपको देर नहीं हो रही। बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स आपका इंतज़ार कर रहे हैं। और आप यहां हमसे इश्क फरमा रहे हैं।" राधिका ने अपने होंठों से प्यार से उसके गालों पर स्पर्श करते हुए कहा।


"क्या बात है? अब इस मीठे के बाद देखो कैसे प्रोजेक्ट आज हमारी कम्पनी को मिलता है। राधा, डोंट वरी। मैं शाम को पीहू से बात करूंगा। लव यू।" राजेश अपना बैग उठाते हुए बोला। 


"लव यू राज,!" राधिका ने उसे मुस्कुराते हुए कहा।


सबके जाने के बाद राधिका ने रसोई समेटी और नहाने चली गई। पर रह-रह कर उसके दिमाग में पीहू के कहे अल्फाज़ घूम रहे थे, "पता नहीं आपने आज तक ज़िन्दगी में कोई प्रोजेक्ट बनाया भी है।" 


यह शब्द राधिका को बीस साल पीछे ले गये। 


क्रमशः



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