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Akshat Garhwal

Action Crime Thriller

4  

Akshat Garhwal

Action Crime Thriller

Twilight Killer Chapter-25

Twilight Killer Chapter-25

10 mins
387

बारिश!....हम में से ना जाने कितनों को बारिश पसन्द होगी और क्यों नहीं?...बारिश में चलती हुई पानी की फुहारें, उस से पैदा हुई ठंडी हवाएँ और उसके बाद मिट्टी से आती हुई खुशबू! ये सब बारिश के साथ आये उपहार ही तो होते है जो बहुत लोगों को पसंद होते है। मैंने लोगों को कहते हुए सुना है की बारिश रोमांटिक मौसम होता है, लगभग हर GF-BF को बारिश के मौसम के दौरान एक ओट भर की जगह चाहिए होती है जहां पर वो आपस में चिपक कर बारिश की आवाज को साथ मे सुन सके..’टिप..टिप..टिप...टिप!’

और टोक्यों की बारिश का अलग ही अहसास होता है, वहाँ ऐसा नहीं लगता जैसे कोई रोमांटिक मौसम आ रहा है। बारिश की भर-भर आवाज के दौरान उस शहर में जैसे रोमांच और एक अजीब सी लहर गुजरा करती है। ज्यादातर जब भी बारिश होती है तो वाहन पर खून की महक फेल जाती है, वो गर्म लाल रक्त पानी मे घुलता हुआ नालियों में बह जाता, पता भी नीं चलता कि किसने किसे मारा.... बस टोक्यो में बारिश के दौरान अक्सर सामान्य व्यक्ति बाहर नहीं निकलता। और यह बात टोक्यो, केवल टोक्यो तक ही सीमित थी।

ऐसे ही मौसम की आज उम्मीद हो रही थी, रात के 7 बज चुके थे और हिमांशु अब भी गाओ-पेंग के साथ वहां उसके घर में सबसे ऊपर वाले कमरे में बैठा हुआ था। बारिश के काले बादल इसी ओर बढ़ रहे थे और मिनातो ने भी गाओ पेंग की बात का समर्थन किया था। पूरी बात तो उन्होंने इन्हीं बतायी बस इतना ही कहा कि ‘जय’ से दूर रहे। हिमांशु ने हाथ मे एक कागज का टुकड़ा पकड़ा हुआ था जिस पर क्योटो के एहिनार श्राइन का पता लिखा हुआ था।

“तो...आसुना यहाँ रहती थी, मतलब यह तो काफी दूर है” एक पल के लिए उन्हें हिमांशु की बात समझ नहीं आयी “मतलब वो तो जय के साथ यहीं पर काम करती थी ना..तो फिर क्योटो से आती-जाती थी क्या?”

“नहीं, उसके दादा से उसकी पटती नहीं थी इसलिए वो दादी के साथ यहां पर टोक्यो में रहती थी” गाओ-पेंग ने खड़े होते हुए कहा, मिनातो भी खड़ा हो गया।

“अगर अभी निकलोगे तो कम से कम आधी दूरी तय हो जाएगी, तुम्हें भगाना तो नहीं चाहता पर इस वक्त यहाँ के अंडरवर्ल्ड का माहौल थोड़ा ठीक नहीं है” अंडरवर्ल्ड का नाम सेंट ही हिमांशु के कान खड़े हो गए, ह भी उठ गया “तुम ट्रैन से निकल जायो क्योंकि वो बीच में रुकेगी भी तो रात उसी में गुजर लेना....वहाँ इस वक्त ज्यादा लोग नहीं जाते तो टिकिट मिल जाएगी”

गाओ-पेंग ऐसे नहीं खड़ा था जैसे वो हिमांशु को विदा करने जा रहा है बल्कि किसी से लड़ने जा रहा था, ऐसे वो खड़ा हुआ था। हिमांशु को मिनातो ने बाहर चलने का इशारा किया और उसके पीछे ही तीनों बाहर आ गए, हिमांशु का बैग मिनातो के हाथ में था। बाहर गेट पर आकर उन्होंने पास खड़ी टैक्सी जिस से हिमांशु यहाँ पर आया था, उसे बुलाया। मिनातो ने उसका समान अंदर रखा और खुद भी बैठ गया, हिमांशु भी अंदर बैठ ने वाला था कि तभी वो रुका और गाओ-पेंग के सामने खड़ा हो गया,

“क्या यह अंडरवर्ल्ड का मामला ‘वू’ से जुड़ा हुआ है?”

यह सुनते ही गाओ-पेंग की आंखें बड़ी हो गयी जो हिमांशु के लिए यह जानने के लिए काफी थी कि उसने सही पकड़ा है।

“अपना ख्याल रखना....” कहकर वो टैक्सी में बैठ कर

निकल गया। रास्ते भर बस यहीं ख्याल रहा कि आखिर ये ईस्टर्न फैक्शन है कितना बड़ा? उसने इंडिया के साथ साथ जापान में भी अपनी धौंस जमाने की कोशिश की है। हो सकता है वो इस वक्त और भी कई देशों में ऑपरेट कर रहा हो। उसे जितनी जल्दी हो सके रोकना जरूरी है पर उस से पहले जय को पकड़ना जरूरी है वरना कहीं वो जय को पकड़ लिए तो ज्यादा बड़ी प्रॉब्लम हो सकती है।

रेलवे स्टेशन पहुंच कर मिनातो टिकट लेने चला गया था और हिमांशु पटरियों को देखते हुए ऊपर प्लेटफॉर्म पर खड़ा हुआ था ट्रैन का टाइम साढ़े सात बजे का था और अभी 10 मिंट बाकी थे। कुछ ही देर में मिनातो ने टिकट लेकर हिमांशु को थमा दी और वहाँ से चला गया, टिकट AC 1st क्लास की थी। ट्रैन के आटे ही हिमांशु अंदर गया! वो ट्रैन नहीं थी!......बल्कि चलता फिरता होटल ही थी क्योंकि उसके अंदर सीटों की जगह पूरा का पूरा छोटा सा कमरा बना हुआ था जिसके दरवाजे नीचे से लकड़ी के और ऊपर से पारभाषी कांच के थे अंदर गया तो देखा कि सीट लंबे से बिस्तर की तरह थे। ज्यादा जगह नहीं थी पर फिर भी एक छोटी सी टेबल ऊपर लगा AC, सीट के नीच बैग रखने की जगह, सीट के पैर की तरफ एक छोटी सी 20*20 की स्क्रीन लगी हुई थी जो इंटरनेट से चलने वाला tv था और सर के पा एक छोटी सी अलमारी थी जिसमें कुछ मैगजीन पड़ी हुईं थी और साथ ही कुछ जूस की बोतलें और पेपर कप्स भी। हिमांशु आराम से उसी बिस्तर पर लेट गया, खिड़की का कांच भी सीट से थोड़ा ही छोटा था जिस से बाहर का नजारा कमाल का दिख रहा था, खासकर बारिश की बूंदों के बीच वह वातावरण एकदम परफेक्ट था!

ट्रैन केवल 10 बजे तक ही चली और उसके बाद एक अन्नोउंसमेन्ट हुई कि अब ट्रैन सुबह 5 बजे ही शुरू होगी। हिमांशु ने इसी वक्त खाना मंगवा लिया....हिमांशु वेसे पूरी तरह से वेगन(वेज) था इसलिए उसके पास कम ही ऑप्शन थे। बीन सूप, मशरूम की सब्जी के साथ चावल और सलाद उसने आर्डर कर दिया और फिर कुछ साके(एक तरह का एल्कोहोल जो चावल को फरमेंट करके बनाई जाती है) उसे डिपार्टमेंट की तरफ से ही मिल गयी। खैर खाना उसने एन्जॉय किया पर उस खाने का स्वाद आसुना और निहारिका के खाने की तुलना में उसे कुछ खास नहीं लगा। साके का लुफ्त उठाते हुए उसने निहारिका को कॉल किया और उस से कुछ बातें की......उसे पता ही नहीं चला कब कि 1 बज गया!

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सुबह 9 बजे वो क्योटो पहुंच गया, वहाँ से एक इलेक्ट्रॉनिक ऑटो लिया और निकल पड़ा एहिनार श्राइन की ओर। वेसे बता दूं कि क्योटो प्रकृति और संस्कृति प्रेमियों के लिए बहुत ही अच्छी जगह है। पूरा शहर पहाड़ों पर ही है, हरे भरे छोटे-छोटे जंगल के झुरमुट और उनके बीच सड़क बनी हुई थी जहाँ पर ज्यादातर लोग सायकल चलाते हुए ही दिखे थे। लोगों के घर टोक्यो से बिल्कुल ही अलग थे, जहाँ टोक्यो में मॉडर्न टेक्नोलॉजी की भरमार थी वही पर क्योटो में पारंपरिक चीजों की कमी नहीं थी। घर भी सीमेंट और ईंट-गारे के साथ साथ पत्थरों से भी बने हुए थे। बहुत ही शांत और साफ वातावरण था क्योंकि यहां पर इंडस्ट्रियल एरिया नहीं था। बहुत सारे छोटे छोटे श्राइन बने हुए थे।  किसी मे हंसते हुए बुध्द की मूर्ति थी तो किसी मे वहाँ के लोकल कैट-गॉड की मूर्तियां लगी हुई थी। लोगों का पहनावा जापान के पारंपरिक तरीके का था, जैसे हमारे यहाँ पर लकड़ी की खड़ाऊ होती है वेसी ही लकड़ी की चप्पलें वहाँ के लोगों को पहने हुए देख सकते थे खासकर खेतों में काम पर जाते हुए मजदूरों के पैरों में। कुछ देर में पहाड़ी के ऊपर बने हुए एक लाल स्तंभ और ऊपर काले रंग की बनावट वाले अजीब से बिना दरवाजे वाले गेट पर ऑटो रुक गया। पास में ही एक बोर्ड लगा हुआ था लकड़ी का जिस पर बहुत ही सुंदर लिखावट में ‘एहिनार श्राइन’ लिखा हुआ था। हिमांशु उतर गया और उन ऊपर की ओर जाती पहाड़ी सीढ़ियों पर चल कर जाने लगा। वेसे ही लाल-काले बिना दरवाजों के गेट बहुत सारे थे, वह एक किलोमीटर चल गया था और पूरे रास्ते मे वह गेट थे। थोड़ी ही देर में वह श्राइन के पास पहुंच गया। सामने बहुत बड़ा फरसियों का बना हुआ पत्थर फर्श था, एक चौकोर के आकार में। उसकी आँखों के सामने ही थोड़ी दूरी पर वह श्राइन था जिसके अंदर लगी हुई कटे पत्थर की नक्काशी की हुई एक फॉक्स की लंबी सी मूर्ति थी और उसके आजु-बाजू दो बिल्लियों जैसे मास्क पहने हुए लड़कियों की मूर्तियां थी जैसे कोई पहरेदार हो और सामने घण्टी, बड़ी सी सुनहरी घण्टी लगी हुई थी। बैग हाथ मे लिए उसने पहले जूते उतारे और वह घण्टी बजायी और हाथ जोड़ आंख बंद प्रार्थना करने लगा। पता नहीं उसने आखिर क्या मांग लिया, आंखें खुलते ही उसने देखा कि 6-7 कटाना उसकी गर्दन की ओर रखे लोग वहां खड़े हुए थे! हिमांशु को कुछ समझ नहीं आया उसने हाथ ऊपर किये और खड़ा रहा। उसकी नजर कमजोर नहीं थी पर वो सभी जिन ने तलवार पकड़ी हुयी थी उनके चेहरे पर कोई भी भाव नहीं था जैसे उनका इरादा उसे मारने का नहीं था।

“जिस तरह से तुम्हारे हाथ खून से रंगे हुए है, लगता नहीं है कि तुम यहाँ प्रार्थना करने आये हो”

पीछे से आई हुई यह आवाज ताक़त भरी थी जैसे उस आवाज में डर नाम का कोई अंश कभी-था ही नहीं। हिमांशु पीछे मुड़ा तो उसके सामने एक 70-80 साल का सफेद शर्ट और काला पेंट पहने बूढ़ा खड़ा हुआ था जिसके चेहरे की झुरीयां भी उसके तेज को कम नहीं कर पायीं थी। उसकी लंबी दाढ़ी सीने तक लंबी थी ऐसा लग रहा था जैसे काफी समय से ट्रिम नहीं की।

“और मंदिर में प्रार्थना करते हुए लोगों पर तलवार उठाना, इसका क्या मतलब समझूँ मैं?” हिमांशु दराजे नहीं था बस सिचुएशन समझ नहीं आयी थी।

“जिसके हाथ खून से रंगे हो...उस पर तो तलवार उठानी ही पड़ती है, वेसे भी आजकल भेड़ की शक्ल में भेड़िये बहुत घूम रहे है” उस बूढ़ा पास आया “तो...कौन हो तुम और तुम्हें किसने भेजा है”

“मुझे गाओ-पेंग ने भेजा है, उसने कहा की वह जगह आसुना का मायका है”

“तुम आसुना को कैसे जानते हो?” वह बूढ़ा हिमांशु के बहुत पास आ गया और उसने यह सवाल ऐसे पूछा जैसे अगले जवाब से हिमांशु की जिंदगी और मौत का निर्धारण हो जाएगा। हिमांशु ने भी काफी लोगों का सामना किया था पर पहली बारी...एक बूढ़े व्यक्ति के शरीर के सामने वह खुद को कमजोर महसूस कर रहा था।

“मैं इंडिया से यहाँ पर आया हूँ.....आसुना और जय के बारे में जानने के लिए1”

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18 जनवरी 2030

मुम्बई शहर के कई रातों से चेन की सांस नहीं ली थी। इसलिय केवल दिन के समय ही लोग अक्सर आराम से जिंदगी बिताते हैं बिना किसी चिंता के। Twilight Killer की कोई खबर नहीं थी CBI के लोग अब खुले आम हर जगह पर तलाश कर रहे थे पर बिना लोगों की नजरों में चुभे। पर पूरी मुम्बई की तलाश करना आसान नहीं था, वहीं एक कॉफ़ी शॉप में बैठे हुए राजन गुस्से भरा चेहरा लिए कॉफी पी रहा था जैसे अगर कोई उसके सामने भी आ गया तो वो उसे बिना बात के मारने लगता। तभी उसके फोन पर एक कॉल आता है;

(हेलो...क्या हुआ? कुछ पता चला क्या) राजन ने गुस्से पर कॉफी डालते हुए कहा

(अभी तो कुछ भी पता नहीं चला सर, यहाँ पर लोगों ने Twilight killer जैसे दिखने वाले किसी को भी नहीं देखा) फोन पर उसके किसी साथी की आवाज आई

(अंडरवर्ल्ड से कोई खबर है क्या?)

(हाँ, सर बहुत बुरी खबर है!) आवाज आई

(तो इतनी देर से कुछ बोल क्यों नहीं रहे!) राजन झल्लाया

(अंडरवर्ल्ड के 3 में से 2 हेड्स मारे गए है और जल्दी ही एक युद्ध छिड़ने वाला है)

राजन को समझ नहीं आया कि उसके साथ को हो क्या गया है! वह इस तरह से बर्ताव कर रहा है जैसे यह कोई चिंता का विषय नहीं है।

(कौन हो तुम....?)

(जल्दी ही पता चल जाएगा पर पहले मेरा जितना नुकसान हुआ है उसकी भरपाई तो कर लूं...) अचानक ही वो आवाज चेंज हो गयी और..........

“बूम!”

राजन के सामने वाली दुकान में एक बहुत बड़ा धमाका हुआ, इतना तेज की राजन की कॉफी शॉप के शीशे ऐसे टूट गए जैसे धूल उड़ी हो। हर तरफ अफरा-तफरी मच गई लोग डरे, सहमे चीखते हुए जमीन पर छुपे हुए थे। बाहर लगी आग और नीचे पड़ी हुई लाशों को नजरंदाज करते हुए सभी लोग वहां से भागने लगे, राजन के कान बजने लगे उसे समझ नहीं आया कि इतनी कड़ी सुरक्षा वाली जगह में कोई बम कैसे ले आया? पर उसका कॉल अभी चालू था.....

(जिंदा हो या मर गए....)

(हरामखोर, एक बार सामने आ जा फिर बताऊंगा की कौन मरता है उर कौन जीता है) गुस्साई हरकतों से राजन चीखा

(जरूर.....बस थोड़ा इंतजार करों! जल्दी ही इस जगह को श्मशान बना दिया जाएगा तब कोशिश कर लेना)

और कॉल कट हो गया।



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