KP Singh

Comedy

4  

KP Singh

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तूही प्यार,तू ही चाहत

तूही प्यार,तू ही चाहत

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आज बाहर बालकनी में खड़ा दोस्त को फ़ोन लगा शाम का प्रोग्राम तय करने जा रहा था,फ़ोन लगा तो रिंग की जगह कानो में,

   “तू मेरी ज़िंदगी हैं,तुही प्यार 

   तुही चाहत , तुही आशिक़ी हैं“

गाने वाली हेल्लो ट्यून सुन होंठों पर किसी ने छेड़ दिया वाली हल्की मुश्कान बिखर गयी ओर फ़ोन तुरंत काट नेट पर सर्च कर पुरा गाना सुनने बैठ गया,कानो में ईयरफ़ोन लगाए,गाने में पुरी तरह डुबा साथ में गुनगुना रहा था तभी कंधे पर किसीने हल्की थपकी दे मेरी तंद्रा तोड़ी,मुश्कुराते हुए देखा तो श्रीमती जी थी ओर बोली “ठीक डुबे हो कोई गाना सुन रहे हो” मैंने हा में सिर हिलाया तो तपाक से बीवी वाले रोब से ईयरफ़ोन छिन अपने कानो में लगा दिया थोड़ी देर में कानो से ईयरफ़ोन हटा बोली “गाना सुनते सुनते किसी की यादों में खो गए थे क्या ?” इतना मीठा वो कभी ना बोली तो मैं मिठास में बह गया ओर हाँ में सर हिला बैठा।मेरा जवाब पाते ही दूसरा सवाल दाग दिया “लास्ट कब मिले थे” मैंने भी गलती सुधारी ओर बोला “शादी के बाद नही मिला” अब श्री मती जी के चेहरे पर मेरे लिए दया वाले भाव आ रहे थे ओर बोली “पहला प्यार ?” मैंने कपकँपाते होंठों से जान की माफ़ी माँगते हुए वापस हाँ में सिर हिला दिया।मैं फ़ालतू में डरा जा रहा था आज मेडम ग़ज़ब मूड में थी ओर सोफ़े पर बैठाते हुए पुछ पड़ी “चलो बताओ अपने पहले प्यार के बारे में” मैं परम उत्साही हो गया शुरू ओर सोच रहा था इसी बहाने उसे याद भी कर लेंगे,उसके नाम को होंठों से चूम खुश हो जाएँगे।पहली बार उससे कोलेज के अंतिम दिनो मिला था।उस शाम वो ग़ज़ब की अच्छी लग रही थी,मैं घंटो बैठा उसे निहारता ही रहा पर छूने की हिम्मत ना कर सका डर बहुत ज़्यादा था पर दूसरी बार मिला तब तक अच्छी पहचान हो गई ओर थोड़ी देर निहार कर उसे होंठों से चूम लिया, वो शाम मुझे आज भी याद हे।इतना सुनते ही देखा श्रीमती का चेहरा लाल पड़ रहा था मैंने संभलते हुए जान की माफ़ी याद दिलाई तो मिसेज़ भी बनावटी मुश्कान लिए बोली आगे,मैं फिर शुरू,उस शाम के बाद मुलाक़ातें होने लगी कभी कभार मिलते उससे मिल कर मैं किसी दूसरी दुनिया में चला जाता जहाँ ना कोई डर था ओर ना ही फ़िक्र। अब मुलाक़ातें बढ़ रही थी हमारा प्यार पूरे शबाब पर था इसी बीच एक दिन मम्मी ने मुझे अपने प्यार के साथ देख लिया।मैंने भी मम्मी को हल्के में ही लिया पर मम्मी ने उस रोज़ मुझे खूब समझाया उससे ना मिलने की नसीहत भी थी पर मैं,मैं तो उसके रंग में रंग चुका था,मम्मी की नसीहत की परवाह ना करते हुए हमारी मुलाक़ातों का दौर यूँही चलता रहा ओर एक दिन मुझे प्यार में बहकता देख मम्मी से रहा नही गया ओर पापा के सामने मेरी पुरी किताब खोल दी उस रोज़ पापा में मैं हिटलर देख रहा था ओर वो भी फ़ुल उफ़ान पर पापा ने पहले खूब डाँटा फिर प्यार से,प्यार को भुलने को खूब समझाया ओर लास्ट में अपनी क़सम भी दे इमोशनल कार्ड भी खेला ओर इस तरह तीन चार साल चले हमारे प्यार का एंड हुआ।मेरी लव स्टोरी की सेड एंडिंग शायद मिसेज़ को भी दुखी कर गई ओर धीरे से पूछा फिर कभी ना मिले अपनी क़सम देकर पूछा अब उस से झूठ कैसे बोलता मैंने कहा “कभी कभार छुप छुपा मिलता था पर अब मिले खूब टाईम हो गया” 

पत्नी जी बड़ी सी आह भरते हुए बोली “अब कौन थी, कहाँ की थी,नाम क्या था,ये भी बता दो” 

मैंने भी फ़ुल मासूमियत वाले अंदाज़ से कोने में पड़ी ख़ाली बोतल की तरफ़ इशारा करके बोला “दारु”।


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