STORYMIRROR

Priyanka Gupta

Inspirational

4  

Priyanka Gupta

Inspirational

तुम्हें भी खुश रहने का हक़ है

तुम्हें भी खुश रहने का हक़ है

13 mins
393

"तुम्हें आराम करने के लिए केवल रविवार ही तो मिलता है और आज रविवार को भी किचेन में घुसी हुई हो । ",प्याज़ काट रही सुमित्राजी ने कहा । 

"अरे मम्मी ,आप से कुछ सीख लूँ ;वैसे भी आप तो हेल्प करते ही हो । दालचीनी कितनी डालनी है ? यह बताओ । एक रविवार ही तो मिलता है ;जब मैं कुछ बना पाती हूँ । आपको बता नहीं सकती कि कुकिंग मुझे कितना सुकून देती है । ",वाणी ने छोलों में छौंक लगाने की तैयारी करते हुए कहा । 

"तुमसे बातों में भला कौन जीत सकता है । आधा इंच दालचीनी का टुकड़ा ले ले । तू खुद भी सब जानती है ;सब कुछ तो कितना अच्छा बनाती है । हर काम में परफेक्ट है । काश तेरी ज़िन्दगी भी परफेक्ट हो जाती । ",सुमित्राजी ने कहा । 

"मम्मी ,कितनी तो परफेक्ट ज़िन्दगी है । आप ,मैं और पापा । ",वाणी ने बात पलटते हुए कहा । वाणी ने बात पलट दी थी ;लेकिन वह भी जानती थी कि उसकी ज़िन्दगी परफेक्ट नहीं है । वह परफेक्ट ज़िन्दगी के लिए अपने मम्मी -पापा को नहीं छोड़ सकती थी । आज वह जो कुछ भी है ;जहाँ भी है ;उन्हीं की बदौलत है । 

डिंगडोंग ..............................डिंगडोंग ................................डिंगडोंग ........................डिंगडोंग ..........................डिंगडोंग तब ही दरवाज़े की घंटी बजी ।

"सुनिए ,ज़रा दरवाज़े पर देखिये ;कौन आया है । "सुमित्राजी ने अपने पति किशनजी को आवाज़ लगाते हुए कहा ।

"वाणी के साथ ऑफिस में काम करने वाला वैभव आया है । ",किशन जी ने आवाज़ लगाते हुए कहा ।

"वैभव ,लेकिन, आज छुट्टी वाले दिन क्यों ?",वाणी ने मन ही मन सोचा । 

"बेटा वाणी ,ज़रा जल्दी बाहर तो आ जाओ वैभव के मम्मी -पापा भी आये हैं । ",किशन जी ने मेहमानों को ड्राइंग रूम में बिठाते हुए कहा ।

"तुम जाओ । ",वाणी के हाथ से कढ़छी लेते हुए सुमित्राजी ने कहा ।

"अरे मम्मी ,छोले तो बन जाने दीजिये । पापा तो हैं ही । ",वाणी ने वापस हाथ में कढ़छी लेते हुए कहा । 

"नहीं बेटा ,तुम्हें जाना चाहिए । मैं यहाँ सब सम्हाल लूँगी । ",सुमित्राजी ने वाणी को समझाते हुए कहा । 

"ठीक है ,मम्मी । ",वाणी ने कहा । कहने के बाद वाणी ने ड्रायर से ट्रे और गिलास निकाले । रेफ्रीजिरेटर से ठन्डे पानी की बोतल निकाली और पानी गिलासों में डालने लगी । 

"मम्मी ,पानी लेकर जा रही हूँ । आप भी गैस बंद करके जल्दी से आ जाओ । बाकी काम हम दोनों वैभव के जाने के बाद निपटा लेंगे । ",वाणी ऐसा कहकर किचेन से निकल गयी थी । 

"लो वाणी भी आ गयी । ",वाणी को देखते ही किशन जी ने बोला । 

"अरे ,आओ -आओ बेटा । ",वैभव की मम्मी ने प्यार से कहा । 

वाणी ने वैभव के मम्मी -पापा का अभिवादन किया और उन्हें पानी का गिलास पकड़ाया । वैभव को पानी का गिलास पकड़ाते हुए वाणी ने आँखों ही आँखों में उसके इस तरह एकदम से अचानक आने का कारण पूछा । 

वैभव के जवाब देने से पहले ही वैभव की मम्मी ने कहा ,"भाईसाहब ,वैभव तो सारा दिन वाणी की ही तारीफ करता रहता। हमेशा कहता है कि वाणी हर काम में परफेक्ट है । ऑफिस में कभी किसी को शिकायत का कोई मौका नहीं देती । "

"वो तो है ही । ",सुमित्राजी गैस बंद करके ड्राइंग रूम में आ गयी थीं । उन्होंने वैभव की मम्मी की हाँ में हाँ मिलाते हुए कहा । 

"दोनों साथ में काम करते हैं । एक दूसरे को अच्छे से जानते -समझते हैं ।हम वाणी को अपने घर की बहू बनाना चाहते हैं । ",वैभव की मम्मी ने बिना लाग-लपेट के कहा । 

वाणी के साथ -साथ सुमित्राजी और किशनजी भी एक बार चौंक गए । लेकिन फिर किशन जी ने कहा ,"अगर वाणी को इस रिश्ते से कोई ऐतराज नहीं तो हमें भी कोई दिक्कत नहीं है । "

"हाँ ,वाणी को अगर वैभव पसंद है तो हम इस रिश्ते से सहमत हैं । ",सुमित्राजी ने वाणी की तरफ देखते हुए कहा । 

"वैभव ,तुमने अपने मम्मी -पापा को यहाँ लाने से पहले एक बार मुझसे पूछना भी जरूरी नहीं समझा । ",वाणी ने वैभव की तरफ देखते हुए कहा । 

"वाणी ,मुझे लगा कि तुम्हें कोई ऐतराज़ नहीं होगा । ऑफिस में तुम सबसे ज्यादा मेरे ही करीब हो । हम दोनों साथ में काफी अच्छा वक़्त गुजारते रहे हैं । हम दोनों एक दूसरे के साथ खुलकर हँस लेते हैं और बात कर लेते हैं । मुझे लगा कि हम दोनों एक दूसरे के जीवन साथी बन सकते हैं । तुम्हारे विचारों से मुझे महसूस हुआ कि मुझे बड़ों के जरिये ही बात करनी चाहिए । ",वैभव ने कहा । 

"लेकिन वैभव मैं तुमसे शादी नहीं करना चाहती । ",वाणी ने कहा । 

"क्यों ? तुम किसी और को पसंद करती हो । ",वैभव ने पूछा । 

"बेटा ,यह क्या तमाशा लगा रखा है ? यह लड़की हमारे सामने ही हमारे बेटे का रिश्ता ठुकरा रही है । अब चलो यहाँ से । ",वैभव के मम्मी -पापा ने नाराज़ होते हुए कहा । 

"मम्मी -पापा रुकिए । गल्ती तो मेरी ही है । एक बार वाणी की बात तो ख़त्म होने दीजिये । 

"नहीं वैभव ,मैं किसी और को पसंद नहीं करती । लेकिन मैं ,तुमसे ही क्या किसी और से भी शादी नहीं कर सकती । मैं इस घर की बेटी नहीं हूँ ;जिसका रिश्ता तुम माँगने चले आये हो । मैं इस घर की बहू हूँ ;विधवा बहू । ",वाणी ऐसा कहकर वहाँ से उठकर चली गयी थी । 

वैभव और उसके मम्मी -पापा ने अपने आँखों में अनेक प्रश्न लिए सुमित्राजी और किशन जी की तरफ देखा । 

"वाणी का कहा एक- एक शब्द 100 टका सच है । लेकिन इस बच्ची ने जितना प्यार और सम्मान हमें दिया है ;हमारी अपनी बच्ची भी शायद नहीं दे पाती । हमारे ही कारण वह दूसरी शादी नहीं करना चाहती । ",सुमित्राजी ने रूँधे गले से कहा । 

"लेकिन क्यों ?",वैभव ने पूछा । 

"बेटा ,तुम्हें क्या करना है जानकर ?अब चलो यहाँ से । ",वैभव की मम्मी ने कहा । 

"मम्मी ,मुझे जानना है । आप ज़रा सोचिये वाणी जैसी रिश्तों की कद्र करने वाली लड़की मुझे कहाँ मिलेगी । जो वाकई में अपने सास -ससुर को मम्मी -पापा ही मानती है । ",वैभव ने कहा । 

वैभव के पापा ने उसकी हाँ में हाँ मिलाते हुए कहा ,"सही कह रहा है ,वैभव । तुम थोड़ा सब्र करो । "

वाणी के सास -ससुर अतीत की गलियों से गुजरते हुए वाणी के बारे में बताने लग गए थे । पाँच बेटियों में तीसरे नंबर की वाणी का रिश्ता जब हमारे एकलौते बेटे शरद के लिए आया तो हमें वाणी बहुत पसंद आयी और हमारे बेटे शरद को भी । दोनों में यहीं कोई 5 वर्ष का उम्र का फासला था ।वैसे 5 साल बहुत ज्यादा नहीं होता है ;फिर वाणी स्नातक ही कर रही थी ; हमने वाणी के मम्मी -पापा को एक बार और सोचने के लिए बोला था । लेकिन वाणी के मम्मी -पापा वाणी की शादी जल्द से जल्द कराना चाहते थे । उनका कहना था कि लड़के की उम्र नहीं आमदनी देखी जाती है । पढाई का क्या है ;कौनसा इसे नौकरी करनी है । हमें तो रिश्ते से कोई ऐतराज़ नहीं था ;तो वाणी हमारी बहू बनकर हमारे घर आ गयी । 

 शादी के बाद वाणी ने अपनी पढ़ाई जारी रखने की इच्छा जाहिर की। हमने भी उसे प्रोत्साहित ही किया।शादी के बाद उसने बहुत अच्छे नंबरों से स्नातक पास किया । वाणी शुरू से ही एक मेधावी छात्रा रही थी ;लेकिन हमारे समाज में बहुत कम लड़कियाँ ऐसी होती हैं ,जो अपनी मेधा का इस्तेमाल अपनी इच्छा से कर सकें । हम तो महिलाओं की उपलब्धियों का उत्सव मनाना ही नहीं जानते ;हमेशा उनकी सगाई ,शादी या प्रेगनेंसी को ही सेलिब्रेट करना चाहते हैं ।

वाणी ने स्नातक के बाद एम बी ए करना चाहा। वाणी एम बी ए के अंतिम वर्ष में आ गयी थी। सब कुछ अच्छा चल रहा था । लेकिन किस्मत को कुछ और ही मंजूर था । हमेशा की तरह शरद अपने ऑफिस के किसी काम से शहर से बाहर दो दिन के लिए गया था।दो दिन बाद शरद और वाणी की शादी की सालगिरह थी । हम सब बेसब्री से शरद के लौटने का इंतज़ार कर रहे थे। वह नहीं लौटा ;केवल उसका शरीर लौटा । किशनजी का बताते- बताते गला रुँध गया था ।

लेकिन किसी के चले जाने से दुनिया नहीं रूकती है । मरने वाले के साथ मरा नहीं जा सकता ;ज़िन्दगी अपनी रफ़्तार से चलती रहती है । इसी बीच वाणी का mba पूरा हो गया और उसकी नौकरी भी लग गयी । वाणी के मायके वाले उसे लिवाने के लिए आये ।उनकी बोझ बेटी अब कमाऊ जो बन गयी थी ।हमने तो शरद की मौत के बाद अपना दिल पत्थर का कर लिया था । बेटे को तो खो ही चुके थे ;मन को समझा लिया था कि जब बेटा ही नहीं रहा तो उसके पीछे आयी लड़की को क्यों रोकें ।उसके सामने तो अभी पूरा जीवन पड़ा है। लेकिन वाणी ने जाने से इंकार कर दिया ।

"मम्मी -पापा का मेरे सिवा अब दुनिया में बचा ही कौन है ?मैं उन्हें छोड़कर नहीं जाऊँगी । आज मैं जिस भी मुकाम पर हूँ ,इन्हीं की बदौलत हूँ । आपने तो वैसे भी कह दिया था कि ससुराल ही तेरा घर है । डोली में जा रही है ;अब अर्थी में ही वापस आना । ",वाणी ने अपने मायके वालों को ऐसा कहकर लौटा दिया था । तब से वाणी हमारी बहू नहीं बेटी ही बन गयी थी । सुमित्राजी का कहना जारी था । हमने बहुत समझाया कि ,"वाणी ,ज़िन्दगी का सफर अकेला नहीं काट सकते । तुम दूसरी शादी कर लो । "

लेकिन इसने हर बार मना कर दिया । फिर हमने भी कहना छोड़ दिया । हमने मान लिया कि ,"कितने दूर -दूर हों उन दोनों के रास्ते ,लेकिन वो मिल ही जाते हैं ;जो बने हों एक -दूजे के वास्ते । भगवान् ने वाणी के लिए भी किसी को तो बनाया ही होगा । "

आज जब बेटा तुम आगे से रिश्ता लेकर आये तो कुछ उम्मीद बँधी थी कि हमारी बेटी का दोबारा घर बस जाएगा ।सोचा था कि वो सुबह कभी तो आएगी ;जब हमारी बेटी के जीवन में खुशियों का सूरज चमकेगा । लेकिन यह पागल लड़की तो हम वृद्ध लोगों के लिए अपनी ज़िन्दगी तबाह करने में लगी हुई है । सुमित्राजी की आँखें बहने लगी थी । 

वैभव की मम्मी की आँखों से भी गंगा जमना बहने लगी थी । "बेटा ,अब तो तेरी शादी वाणी से ही करेंगे । ऐसी निश्छल प्यार करने वाली लड़की कहाँ मिलेगी । ",वैभव की मम्मी ने रुँधे गले से कहा । 

"आंटी ,क्या मैं वाणी से जाकर बात कर सकता हूँ ?",वैभव ने पूछा । 

"हाँ ,हाँ बेटा क्यों नहीं ?",सुमित्राजी ने कहा । 

वाणी अपने कमरे में बैठी हुई खाली दीवार को टकटकी लगाए देख रही थी । वाणी ,शरद के मम्मी -पापा को छोड़कर नहीं जा सकती थी । वह अच्छे से जानती थी कि ,हमारा समाज चाहे कितना ही आधुनिक होने का दम्भ भरे ;लेकिन आज भी शादी के बाद लड़की न तो अपने माता-पिता की देखभाल कर सकती है और न ही उन्हें अपने साथ रख सकती है । अगर रखना भी चाहे तो ,अव्वल तो लड़की के माँ -बाप ही मना कर देते हैं और अगर वे मान भी जाएँ तो लड़की के ससुराल वालों को सहन नहीं होता । फिर सुमित्राजी और किशनजी तो वाणी के सास -ससुर थे ।

वाणी अगर अपनी ज़िन्दगी में आगे बढ़ने की सोचती भी तो सुमित्राजी और किशनजी को पीछे छोड़ना पड़ता । शरद के जाने के बाद वह उन्हें अकेले नहीं छोड़ सकती थी । उन्होंने हमेशा उसे अपनी बेटी से बढ़कर माना था । उसके खुद के माँ -बाप ने कभी उसके सपनों की परवाह नहीं की थी ;लेकिन रस्मों -रिवाज़ों से बने माँ -बाप ने उसे सपने देखने में ही नहीं,बल्कि उन्हें पूरा करने के लिए भी प्रोत्साहित किया।वह अपने इन माँ -बाप को अकेले उनके हाल पर छोड़ देना ;उसे नैतिक दृष्टि से ही नहीं ,भावनात्मक दृष्टि से भी गलत लगता था ।इसीलिए वह हमेशा दूसरे विवाह की बात टालती जा रही थी ।

वैभव ने वाणी के कमरे के दरवाज़े को धीरे से खटखटाया । दरवाज़ा खुला हुआ ही था ;लेकिन वैभव ने शिष्टाचार वश दरवाज़े पर नॉक किया था । वैभव के आने के संकेत से ,वाणी अपने विचारों की दुनिया से बाहर आ गयी थी । 

उसने मुड़कर देखा तो दरवाज़े पर वैभव को खड़े पाया । "तुम अभी तक गए नहीं । मैं तुम्हें पसंद करती हूँ ;लेकिन तुमसे कभी शादी नहीं कर सकती । ",वाणी ने एक साँस में अपनी बात कह दी और दोबारा दीवार को घूरने लगी । 

"वाणी ,एक बार मेरी पूरी बात तो सुन लो । फिर तुम जो कहोगी ;जैसा चाहोगी ;वैसा ही होगा । मैं फिर कभी तुम्हारे रास्ते में नहीं आऊँगा । अपने दोस्त को इतना मौका तो दो । ",वैभव ने अंतिम कोशिश करते हुए कहा । 

"कहो । ",वाणी ने वैभव की तरफ देखते हुए कहा । वाणी की स्वीकृति मिलते ही ,वैभव कमरे के अंदर आकर वाणी के सामने खड़ा हो गया था । 

"वाणी ,आज सब कुछ जानने के बाद मेरे दिल में तुम्हारे लिए सम्मान और बढ़ गया है । ",वैभव का बोलना जारी था । 

"बैठ जाओ । ",वाणी ने साइड में रखी चेयर की तरफ इशारा करते हुए कहा । 

"वाणी ,मैं तुम्हारे जज्बे की कद्र करता हूँ । मैं स्वयं यह मानता हूँ कि शादी के बाद भी हर लड़की को अपने माता-पिता के प्रति सभी फ़र्ज़ उसी तरीके स पूरे करने चाहिए ;जैसे एक लड़का करता है । साथ ही बहू जैसे अपने सास-ससुर का ध्यान रखती है ,वैसे ही दामाद को भी रखना चाहिए । ",चेयर पर बैठते हुए वैभव ने कहा । 

"अच्छा ,ये सब बातें सुनने में और कहने में जितनी सहज लगती हैं ;निभाने में उतनी ही मुश्किल होती हैं ।वाकई में ,निभाना नामुमकिन सा ही होता है । लड़के के माता -पिता ही यह सब बर्दाश्त नहीं कर पाते । ",वाणी ने दीवार की तरफ देखते हुए ही कहा । 

"जो तुम कर रही हो ;वह भी सुनने में नामुमकिन सा ही लगता है । बहू होकर भी ,बेटी से बढ़कर फ़र्ज़ निभा रही हो । अगर मैं तुमसे वादा करूँ कि शादी के बाद भी ऐसे ही तुम अपने फ़र्ज़ निभा सकोगी ;तब भी क्या तुम इंकार करोगी ?",वैभव ने वाणी की आँखों में देखते हुए कहा । 

"कहने और करने में बड़ा फर्क होता है । तुम पर कैसे विश्वास करूँ ?",वाणी ने कहा । 

"चलो ,मुझ पर न सही खुद पर तो विश्वास कर सकती हो न । जिस पल भी तुम्हें लगे कि मैंने तुम्हारे विश्वास को तोड़ा है ;उसी पल, तुम अपने आपको इस रिश्ते से मुक्त कर लेना । ",वैभव ने कहा । 

"बेटा वाणी ,ज़िन्दगी के सफर में एक हमसफ़र की बहुत ज्यादा जरूरत होती है । हमने तो एक लम्बी ज़िन्दगी जी ली है ;थोड़ी और बची है । तुम्हारे सामने तो पूरी ज़िन्दगी बची है । तुम अकेली नहीं हो ;यह सोचकर हम भी चैन से मर सकेंगे ;नहीं तो ऊपर जाकर शरद को क्या जवाब देंगे । तुम्हें भी खुश रहने का पूरा हक़ है और शादी क बाद भी तुम अपने फ़र्ज़ निभा सकती हो । ",वाणी के कमरे में आते हुए सुमित्राजी और किशनजी ने कहा । 

"हां बेटा ,तुम्हारे सास-ससुर बिल्कुल ठीक कह रहे हैं । ",सुमित्राजी के साथ आये वैभव के मम्मी-पापा ने कहा । 

"बेटा ,हमें हमारी नज़रों में तो मत गिरने दो । हम इतने स्वार्थी नहीं हो सकते कि अपनी बेटी की खुशियों को अपने अकेलेपन की बलिवेदी पर कुर्बान कर दें ।बेटा ,शादी के लिए मान जाओ । ",सुमित्राजी ने एक बार फिर कहा । 

"मम्मी -पापा ,मैं केवल इसी शर्त पर शादी कर सकती हूँ कि शादी के बाद आप दोनों हमारे साथ ही रहेंगे । ",वाणी ने कहा । 

"हां ,बेटा ;बिलकुल हम चारों तुम दोनों के साथ ही रहेंगे । लेकिन कभी -कभी तो हमें अपनी मर्ज़ी से इधर -उधर घूमने जाने की इज़ाज़त दोगे ?",वैभव के मम्मी-पापा ने मुस्कुराते हुए कहा । 

"और कोई शर्त ?",वैभव ने वाणी की तरफ देखते हुए कहा । 

"नहीं ,अब जैसा आप सब लोग चाहे ।मैं सबके लिए चाय बनाकर लाती हूँ । ",ऐसा कहकर वाणी वहाँ से चली गयी थी । 

"बेटा ,अब कुछ मिठाई भी आर्डर कर दे । आज तो मीठा खाना बनता है । ",वैभव के पापा ने मुस्कुराते हुए कहा । 

"जी ,पापा । ",वैभव ने कहा । 

सुमित्राजी और किशनजी के चेहरे पर सुकून और संतुष्टि स्पष्टतया देखी जा सकती थी । आज उनकी एक बहुत बड़ी जिम्मेदारी पूरी हो गयी थी । 


Rate this content
Log in

Similar hindi story from Inspirational