Yogesh Kanava

Abstract Drama Romance

4.5  

Yogesh Kanava

Abstract Drama Romance

तुम्हारा साथ चाहिए

तुम्हारा साथ चाहिए

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आज पूरे दो बरस हो गए रोहित को गए हुए। राधिका रोहित की फोटो को लेकर गुमसुम सी बैठी थी एकदम अकेली। अँधेरा हो चला था लेकिन उसका मन नहीं कर रहा था कि वह उठकर बिजली का स्विच ऑन कर दे। जिसके जीवन में कुदरत ने ही अँधेरा भर दिया वह बिजली की रोशनी क्या करेगी। क्या होगा ऐसी रोशनी से ? आज ही का तो दिन जो पूरी दुनिया में फैली महामारी कोरोना के कारण रोहित हमेशा के लिए छोड़ गया था। उसकी अर्थी को कंधा भी तो नहीं दे पाई थी मैं। नगर निगम द्वारा निर्धारित आदर्श नगर कोविड श्मशान गृह में अंतिम संस्कार के लिए एंबुलेंस से शव ले जाकर बस उसके हाथ से अग्नि दिलवाई थी। कितना भयावह था वो समय वो दौर , इंसान से इंसान को डर लगता था एक दूसरे को देखते दूर भाग रहे थे। दोस्त रिश्तेदार तो कोविड का नाम सुनकर ही भाग खड़े हुए उसके बाद किसी ने भी राधिका से रोहित का हाल नहीं पूछा था। बेटी लंदन में सॉफ्टवेयर इंजीनियर अपने पति और बच्चे के साथ वहीं फंस गई थी। अपने पापा को व्हाट्सएप वीडियो कॉल पर ही देख पाती थी। 

खैर राधिका उठी और स्विच ऑन कर दिया पूरा कमरा रोशनी में नहा गया था। रोशनी में रोहित की फोटो और अधिक साफ हो गई थी जीवन कहाँ से कहाँ ले आया था। वो भी क्या दिन थे जब वो एक अल्हड़ लड़की थी। महारानी कॉलेज मे बीएससी फाइनल ईयर स्टूडेंट , लड़कों के लिए महाराजा कॉलेज था। अक्सर महाराजा कॉलेज के लड़के हम लड़कियों को छेड़ते ही थे। कई बार पुलिस भी आ जाती थी शरारतों में तो वैसे हम भी किसी तरह से कम नहीं थी, बस लड़की होने का फायदा थोड़ा सा मिल जाता था कि छेड़छाड़ केवल लड़के ही करते हैं। सारा का सारा दोष लड़कों के सर मान लिया जाता था। 

बात सन 1980 की है हमारे ग्रुप की लड़कियों ने तय किया की महाराजाओं को किस तरह से छेड़ा जाए और सारा कसूर भी उन्हीं का हो जाए महारानियों का नहीं, और आज छेड़ने का जिम्मा मेरा था। क्या किया जाए क्या न किया जाए यही गुत्थी सुलझ नहीं पा रही थी कि अचानक ही मेरे खुराफाती दिमाग ने कहा सामने लड़का आ रहा है उसे टकरा जा और गिरजा, हंगामा अच्छा हो जाएगा। फिर ग्रुप की लड़कियाँ तो थी ही तैयार क्योंकि लड़के भी हमेशा हमें छेड़ते तो थे ही इसलिए बदला भी लेना था। मैं नहीं जानती थी कि वह लड़का किस क्लास का है और क्या नाम है। कुछ लड़कों के नाम जानती भी थीे जो मुझ पर लट्टू थे। मैंने आव देखा न ताव और बिना ग्रुप की लड़कियों से सलाह मशविरा किए, सामने आ रहे लड़के से टकरा गई और गिरने का नाटक किया था, लेकिन नाटक पूरा नहीं हो पाया था। उसकी मजबूत बाँहों ने मुझे इस तरह रोक लिया था जैसे राज कपूर ने नरगिस को पकड़ रखा था। अचानक हुए इस ड्रामे से वह जरा भी नहीं घबराया था मेरे ग्रुप की लड़कियों ने तो कोई कसर नहीं छोड़ी थी। उसको सुनाने में वो चुपचाप शांत भाव से सुनता रहा। मैंने ग्रुप की लड़कियों की तरफ आँख मारी और इशारा किया काम हो गया लेकिन वह मुझे अभी भी उसी तरह संभाले खड़ा था आभास होते ही मैं देख शर्मा गई थी और सीधे खड़े होने का प्रयास करने लगी। उसने धीरे से कहा यूँ ही रहो ना अच्छा लग रहा है ,मैं तो पूरी जिंदगी तुम्हें यूं ही रखना चाहता हूँ। मैं सहम कर वहाँ से भाग खड़ी हुई थी। वह पहली मुलाकात थी हमारी ,लेकिन ना तो उसने नाम जाना और ना ही मैंने। अगले दिन ना जाने क्यों मेरी आँखें उसे ही ढूँढ रही थी। मैं नहीं जानती थी ऐसा क्यों हो रहा था , दिल बेचैन था। मेरा मन नहीं लग रहा था लेकिन क्लास में बैठना जरूरी था। ठीक एक बजे क्लास छूटते ही मैं सीधे मेन गेट पर जा धमकी, बस उसकी एक झलक पाने को। वह आया था एक हाथ से अपनी साइकिल के हैंडल पकड़े और शांत भाव से चलते हुए पता नहीं मुझे क्या सूझा, मैं उसके सामने जा खड़ी हुई और साइकिल के सामने खड़ी हो गई। वह कुछ नहीं बोला था बस अपनी साइकिल पकड़े खड़ा रहा। मैं ठीक उसके साइकिल के आगे रास्ता रोके खड़ी थी, तभी वह बोला किरण कैफे चलोगी? मैं जानती थी किरण कैफे रामनिवास बाग में लड़के लड़कियों के मिलने का एक सुलभ और सुरक्षित स्थान था। मैं हिप्नोटाइज सी उसके साथ हो ली थी। किरण वैसे तो मैं कई बार गई थी अपने ग्रुप की लड़कियों के साथ लेकिन इस बार किसी अजनबी लड़के के साथ पहली बार। हम आमने सामने की चेयर पर बैठ हुए थे, वेटर आया तो उसने कॉफी ऑर्डर किया और साथ ही एक-एक मसाला डोसा भी आर्डर कर दिया। मैं कुछ ना बोली थी, बस उसी को देखे जा रही थी। अभी भी मुझ पर हिप्नोटिज्म का असर हो रहा था, तभी उसने कहा मैं रोहित हूँ और तुम? मेरा नाम राधिका है। 

- बहुत प्यारा नाम है 

- केवल नाम ही प्यारा है ?

- नहीं वैसे तो तुम बेहद सुंदर हो और बहुत ही प्यारी हो

   - दिल से कह रहे हो 

- नहीं मुंह से कह रहा हूँ

उसकी इस बात पर हम दोनो ठहाका लगाकर हँस पड़े थे। आस पास वाले सभी हमारी तरफ देख रहे थे। धीरे-धीरे इस तरह मुलाकातें होती रही मेरा और उसका बीएससी कंप्लीट हो गया था। अब यूनिवर्सिटी में एडमिशन की बात थी। मैंने बॉटनी सबजक्ट चुना और उसने केमिस्ट्री। वह हमेशा कहता था कि तुम फूल पत्तियों में घास फूस मे क्या देखती हो ? केमिस्ट्री को नए से नए एक्सपेरीमेन्ट। तत्काल मैं बोली देना इनका स्वभाव है, पेड फूल फल पत्तियां टहनियां और कभी-कभी अपना सर्वस्व दे देते हैं। यह जो देने का स्वाभाव है ना बहुत कम होता है आज का इंसान तो बस लेना जानता है, छीनना जानता है। ओह हम भी किन बातों में उलझ गए , तुम केमिस्ट्री पढ़ो और मैं बॉटनी। अचानक ही एक रात जयपुर में बाढ़ आ गई थी हमारा सब कुछ उस बाढ़ में बह गया था घर, सोफे, कार सब कुछ। हाँ वो सन् 81 का साल था कॉलेज, यूनिवर्सिटी जाने के रास्ते पानी और गाद से भर गए थे। पानी और गाद सब जगह भरा हुआ था चांदपोल बाज़ार में कारें मिट्टी में दब गई थी। कहते हमारी कार भी शायद चांदपोल बाजार की गाद में ही फंसी थी। हम लोग बड़ी चौपड़ के पास रही रहते थे। इधर मुझे रोहित की भी चिंता हो रही थी वह जवाहर नगर में रहता था किराए के मकान में अपनी मां के साथ। उसके पिताजी शायद उन लोगों को छोड़कर कहीं चले गए थे बरसों पहले, तब से आज तक वापस नहीं आए। बस किसी तरह उनका गुज़ारा चल रहा था हाँ रोहित ट्यूशन भी पढ़ाने लगा था ताकि घर अच्छी तरह से चल सके। कई दिन बाद आज रोहित को देखा यूनिवर्सिटी, आज उसके पास साइकिल नहीं थी। उसने बताया कि उसका घर का सारा सामान और साइकल सब बाढ़ में बह गए। अभी वह सरकार के एक कैंप में रह रहे हैं। वहीं जब मैंने बताया कि हमारा भी आधा घर बाढ़ में टूट गया और ज़्यादातर मकान और घर का सामान बह गया तो वो बहुत अफसोस करने लगा। हमारी एम एस सी की पढ़ाई चल रही थी और साथ ही साथ हमारी मुलाकातें भी। अचानक ही एक दिन रोहित मुझसे बोला था - राधिका तुम शादी कर लो। यह सुनकर मुझे बहुत गुस्सा आया था। अगले चार-पाँच दिन तक मैंने उससे बात तक नहीं की थी। अचानक वह सामने आकर कान पकड़कर माफी माँगने लगा और उसने उसके इस अंदाज़ पर मुझे हँसी आ गई थी। मेरा हाथ पकड़ लिया और बोला सुनो मुझे घुमा फिरा कर कहने की आदत नहीं है एशियाड चल रहे हैं, रामगढ़ बांध में एशियाड का नौकायन है ,देखने चलोगी मेरे साथ? मैंने मन में सोचा था बेवकूफ आदमी रामगढ़ तो क्या मैं तो पूरी दुनिया तेरे साथ चल सकती हूँ , पूरा जीवन तेरे साथ रह सकती हूँ। मेरा जवाब नहीं आता देख वो फिर बोला - देखो तुम पूरी तरह से सुरक्षित रहोगी। मैं बोली थी - नहीं वो बात नहीं है लेकिन मम्मी पापा से परमिशन लेनी पड़ेगी ना। तो ठीक है ले लो, ओके विल सी। 

वैसे भी दोनों की जोड़ी पूरी यूनिवर्सिटी में मशहूर हो चुकी थी। कोई उन्हें हीर रांझा कहता कोई सीरी फरहाद तो कोई उन्हें रोमियो जूलियट कहता। एक बार एक लड़के ने उनको लैला मजनू कहा था तो यूनिवर्सिटी के एक दूसरे लड़के ने उसे थप्पड़ मारा था, कहा था बेवकूफ इतना भी नहीं जानता लैला काली थी और यह तो पूरी गोरी चिट्टी एकदम अंग्रेज मेंम लगती है, रोमियो जूलियट की जोड़ी है। रामगढ़ बाँध पूरा लबालब भरा हुआ था, देसी विदेशी न जाने कितने ही दर्शक। हम लोग बस से गए थे रोहित ने हम दोनों के लिए बैठने का इंतज़ाम कर लिया था। दोपहर में भूख लगी तो रोहित ने पास के गाँव में ही ठेठ देहाती खाना कड़ेली में पकी जो की रोटी, लहसुन की चटनी और कढ़ी खिलाई थी। शायद वह उसके कोई परिचित थे या शायद कोई रिश्तेदार मुझे नहीं मालूम। स्वाद इतना बेहतरीन कि मैंने जीवन में पहली बार इतना अच्छा खाना खाया था। मैं रोहित के साथ इतने करीब और करीब थी, मैं उसको पकड़ कर चल रही थी। कभी उसके कंधे पर अपना सर रख कर चल रही थी सच बताऊँ तो मुझे उसके साथ बहुत अच्छा लग रहा था। शाम का धुंधलका छाने लगा वह मुझे जमुआ माता मंदिर घुमाने ले गया था। वही मंदिर में उसने पहली बार मुझे अपनी बाहों में लिया था और मैं चाहती थी वह इसी तरह मुझे अपनी बाहों में जकड़े रखे। काफी देर तक हम दोनों यूँ ही एक दूसरे की बाहों में खोए रहे। अचानक ही कुछ आवाज सुनकर हम दोनों अलग हो गए ,संभल गए। उधर से कोई राहगीर गुज़र रहे थे। उनके जाने के बाद रोहित ने कहा 

- मुझसे शादी करोगी? बिना सोचे समझे मैंने कहा था 

- हां 

मम्मी पापा से पूछ लिया? 

    -नहीं लेकिन मैं शादी केवल तुमसे ही करूंगी।

- मुझ पर इतना भरोसा है 

- खुद से ज्यादा, इसलिए तो माता के मंदिर में मैंने अपने आप को तुम्हारी बांहों में छोड़ दिया है 

-मैं बहुत गरीब हूँ लेकिन अभी सब ठीक हो जाएगा

- मैं तुम्हारे साथ हूँ ना जीवन भर साथ निभाऊँगी

-मम्मी पापा ने मना कर दिया तो 

- मैंने आज से अभी से तुम्हें अपना पति मान लिया है तुम चाहो तो मंदिर में सिंदूर लेकर मेरी मांग भर सकते हो 

-नहीं शादी तो हम सबके सामने ही करेंगे हो सकता है तुम्हारे मम्मी पापा ना माने बस यही फिक्र है 

- मम्मी तो मान जाएंगे प्रॉब्लम पापा की है 

- यह प्रॉब्लम मम्मी सॉल्व कर सकती है 

बातें करते करते हम लोग बस अड्डे पर आ गए थे बस देर से आई थी आखि़री बस थी तो भीड़ बहुत ज्यादा थी। रोहित ने मुझे अंदर बैठने को कहा और खुद बस की छत पर चढ़ने लग गया। मैंने उसे कुछ नहीं कहा और उसके पीछे-पीछे बस की छत पर जा बैठी वह बोला तुम अन्दर नहीं गई ? जहाँ तुम वही मैं समझे मेरे बुद्धूमल। हमारा प्यार परवान चढ़ता जा रहा था। जब भी वो रोहित की बांहों में आती थी लगता था सारा जहाँ प्रीत की बाहों में है। वह कभी जयपुर के बाहर नहीं गई थी लेकिन अब जयपुर का कोई भी ऐसा स्थल नहीं छोड़ा था जहाँ उन दोनों ने साथ-साथ घुमक्कड़ी ना की हो। सिसोदिया रानी का बाग, विद्याधर शास्त्री का बाग, कनक घाटी, आमेर, नाहरगढ, जयगढ, रामगढ़ बांध, और भी इसी तरह से न जाने किन किन जगहों पर वो दोनों घूमते रहते थे। घुमक्कड़ी की बात पर याद आया स्टेच्यू सर्किल पर नाथ चाट वाले के यहांँ हम लोग जाकर जरूर बैठते थे। वैसे मुझे चांदी की टकसाल के पंडित चाट वाले की चाट सबसे ज्यादा पसंद थी लेकिन घर के बहुत ज्यादा नज़दीक होने के कारण मुझे यह डर भी लगता था कि अगर हम दोनों को कभी साथ देख लिया तो बवाल मच जाएगा। एक दिन रोहित माना और मुझे रामगंज चौपड़ से होते हुए पता नहीं किन किन रास्तों से पंडित चाट वाले के यहाँ चांदी की टकसाल लेकर गया। मुझे चाट खिलाई। और हम वहाँ तक पहुँचे कैसे थे उसकी साइकिल के ऊपर पीछे कैरियर नहीं था। हमेशा की तरह मैं साइकिल के आगे डंडे पर बैठकर ही उसके साथ गई थी और ऐसा लगा था साइकिल के डण्डे पर बैठी हुई मैं उसकी बांहों में हूँ। 

एम एस सी कंप्लीट होते ही दोनों को जॉब की चिंता होने लगी थी राधिका के लिए आए दिन लड़का देख करने में लगे हुए थे। एक दिन परेशान होकर राधिका ने अपनी मम्मी से कहा 

- मम्मी आप लोग बिना वजह परेशान हो रहे हैं मैंने तय कर लिया है कि मैं शादी करूंगी तो केवल रोहित से 

 इतना कहना था कि घर में कोहराम मच गया कहने लगे वह लड़का ना हमारी ज़ात बिरादरी का है ना हमारे बराबर का है ना ख़ानदान ना कोई ठिकाना। कई दिन घर में बस ऐसे ही कोहराम होता रहा। जब कई दिनों तक मम्मी पापा तैयार नहीं हुए तो एक दिन मैंने रोहित से कहा था 

- हमें आज ही शादी करनी है आर्य समाज रीत से मम्मी पापा बिलकुल राजी नहीं हो रहे हैं - लेकिन यह तो ठीक नहीं होगा ना 

- एवरीथिंग इस फेयर इन लव एंड वार अंडरस्टैंड माय हैंडसम 

- वह तो ठीक है लेकिन 

- लेकिन क्या तुम नहीं चाहते हो मुझसे शादी करना 

- कौन बेवकूफ होगा जो तुमसे शादी के लिए मना करेगा लेकिन मम्मी पापा का आशीर्वाद भी तो जरूरी है 

- मुझे केवल तुम्हारा साथ चाहिए मुझे कोई आशीर्वाद नहीं चाहिए। अब बताओ शादी कर रहे हो या नहीं अभी बताओ हाँ या ना 

वह तत्काल बोला था

- हाँ 

 तो चलो अभी इसी वक्त हमें शादी करनी है नहीं तो आज शाम मेरी सगाई हो जाएगी और फिर मैं तुमसे बिल्कुल नहीं मिल पाऊँगी। फिर देखते रहना मेरी राह इतना कहा और वह रोहित के कंधों पर लुड़क गई। रोहित ने उसे संभाला और आर्य समाज मंदिर में आर्य समाज से दोनों शादी कर सीधे अपनी माँ के पास गया और बोला आज से यही एक कमरा हमारा घर और यह तुम्हारी माँ है और सास भी। उसके ख्यालों की डोर तब टूटी जब डोर बेल बजी। बड़े ही अनमने से रोहित की तस्वीर को सेंटर टेबल पर रखा और दरवाज़ा खोला। दरवाज़ा खोलते ही एक सुखद आश्चर्य उसके सामने था उसकी बेटी, दामाद और छोटी सी प्यारी सी नन्ही सी उसके नातिन सामने खड़े थे। अपनी बेटी को गले लगाया तो आज उसे लगा यह तो रोहित ही है। रोहित भी ठीक इसी तरह से उसे गले से लगाता था फिर बांहों में जकड़ लेता था। आज पूरे दो बरस बाद फिर से वो सचमुच से प्रीत की बांहों में महसूस कर रही थी। अपनी बेटी की बांहों में आ कर एहसास था रोहित की बांहों का और लग रहा था वो प्रीत की बाँहों में ही है। 



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