Priyanka Gupta

Inspirational

4.2  

Priyanka Gupta

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तुम बहुत किस्मत वाली हो

तुम बहुत किस्मत वाली हो

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"अरु क्या कर रही है ?उसने तंग तो नहीं किया ?",एक के बाद एक मैंने कई प्रश्न कर डाले थे ?मेरी बेटी मनस्वी अपनी 6 माह की बेटी आराध्या यानि मेरी नातिन को लेकर आयी हुई थी.

मैं और मनस्वी अरु को घर पर छोड़कर घर के नज़दीक ही स्थित बुटीक पर चले गए थे । मनस्वी हमेशा इसी बुटीक पर अपने कपड़े सिलवाती है ।मैंने तो मनस्वी को कहा भी था कि ,"तुम अकेले चली जाओ । अगर हम दोनों चले गए तो अरु की देखभाल कौन करेगा ?"

"मम्मी ,आप ही चलो । आपके बिना कौन समझायेगा कि क्या अच्छा लग रहा है ?वैसे भी फैशन के नाम पर मैं तो जीरो हूँ । ",मनस्वी ने अपने अँगुठे और तर्जनी को मिलाकर शून्य बनाते हुए कहा था । 

"ठीक है ,बेटा । अरु को सुलाकर चलेंगे । ",मैंने कहा । 

मैं और मनस्वी ,अरु को सुलाकर बुटीक चले गए थे । आते हुए थोड़ी देर हो ही गयी थी । जब हम लौटे तो अरु सोकर जाग गयी थी और खेल रही थी । इसीलिए मैंने आते ही एक के बाद के सवाल पूछ डाले थे । 

"अरे मम्मी ,थोड़ा सा ब्रेक ले लो । अरु को हम उसके नाना और पापा के पास छोड़कर गए थे । अगर परेशान भी किया होगा तो दोनों ने सम्हाल लिया होगा । सम्हाल क्या लिया होगा ;सम्हालना ही चाहिए । ",मेरी बेटी मनस्वी ने विश्वास भरे शब्दों में कहा । 

"बेटा ,अभी अरु ६ महीने की ही तो है । इतने छोटे बच्चे आदमी लोग नहीं सम्हाल पाते । हम औरतें ही हैं जो घर -बच्चे सम्हाल लेती है और अब तो बाहर नौकरी भी कर लेती हैं । ",मैंने कहा। 

"अरु ने पॉटी कर दी थी । ",तब ही मेरे पति राजीव ने कहा ।

"फिर ?",मैंने पूछा ।

"फिर क्या ? अरविन्द ने पॉटी क्लीन कर दी ?",मेरे पति ने कहा । हम दामाद को कुँवरजी या अरविन्द जी नहीं कहते थे । जब मनस्वी की नयी -नयी शादी हुई थी ;तब हम अरविन्द जी कहते थे क्यूँकि हमारे जमाने में तो दामाद को जी लगाकर ही बोला जाता था । लेकिन अरविन्द ने 2 -4 बार जी लगाने से यह कहते हुए मना किया कि ,"वह बेटा तो नहीं है ;लेकिन बेटे जैसा है और बेटे की उम्र का तो है ही । "

"अरविन्द ने ?? आपने हमें कॉल क्यों नहीं किया ?हम यहीं पड़ौस में ही तो गए थे । ",मैंने कहा ।

"अरे मम्मी ,इसमें आपको क्यों बुलाते ?अरु मेरी भी तो बेटी है । पॉटी ही तो क्लीन की है। ",अरविन्द ने कहा ।

"फिर भी बेटा ?",मैंने कहा ।

"फिर भी क्या मम्मी ?बेटी, अरविन्द की भी है तो कुछ जिम्मेदारी उनकी भी है । मम्मी आज के पिता हिटलर पिता नहीं होते हैं ;वे भी अपने बच्चों के साथ समय व्यतीत करते हैं ;उनके दोस्त बनने की कोशिश करते हैं । आप तो बताते हो कि पहले तो पिता सबके सामने अपने बच्चे को गोदी में भी नहीं लेते थे ;हिचकते थे ;शर्माते थे क्यूँकि घरवाले ताना मार देते थे । ", मनस्वी ने कहा ।

"हां बेटा । आज तो पिता बहुत बदल गए हैं ।",मैंने कहा ।

"हां मम्मा ,माता को देवी बनाने के चक्कर में ; पिता ,पिता भी नहीं बन सके थे । मातृत्व के आभामंडल के सामने पितृत्व कहीं दब सा गया था । ",मिहिका ने कहा । 

"सही कह रही हो ,बेटा । चलो ,सबके लिए चाय बना लाती हूँ । ",ऐसा कहकर मैं किचेन में आ गयी थी । 

चाय बनाते हुए ,मुझे याद आ गया था कि मनस्वी कोई 4 महीने की रही होगी । मैं उसे कमरे में सुलाकर बाहर बर्तन साफ़ कर रही थी । हम किराए के घर में रहते थे ;वहाँ और भी कई परिवार रहते थे । हम ३-४ औरतें अक्सर एक साथ बर्तन माँजा करते थे । बर्तन मांजते हुए बातें करते रहते थे । किसी के बर्तन अगर मँज भी जाते थे तो वह वहीँ बैठकर दूसरों के बर्तन मँजवा दिया करता था । बर्तनों की सफाई के साथ -साथ बातों का दौर भी चलता रहता था । 

मैं जैसे ही बर्तन साफ़ करके कमरे में घुसी ,मनस्वी के पापा राजीव ने मेरे तड़ातड़ एक के बाद एक चाँटे मानने शुरू कर दिए ।

"तेरी बेटी ने पॉटी कर दी है और तू वहाँ आराम से गप्पे मार रही थी । ",थप्पड़ मारते हुए राजीव कहे जा रहे थे । 

वह वाकिया याद आते ही ,मेरा हाथ अपने गालों को सहलाने लगा था । लेकिन मैं अपनी बेटी मनस्वी ,वाकई मनस्वी ही नहीं बल्कि सभी औरतों के लिए खुश थी कि आज पुरुष पहले जैसे नहीं रहे हैं ;धीरे -धीरे ही सही उनमें बदलाव आ रहा है । वे पुरुष के अलावा पति और पिता भी बनने की कोशिश कर रहे हैं ।

"मम्मी ,चाय बन गयी है । आप कहाँ खो गए । ",किचेन में आकर गैस बंद करती हुई मनस्वी ने कहा ।

"कुछ नहीं , ",मैंने कहा ।

"तुम बहुत किस्मत वाली हो ;जो अरविन्द जैसा पति मिला । ",मैंने कहा । 

"क्या मम्मी ?अरु की पॉटी साफ़ कर दी इसलिए । फिर तो अरविन्द की किस्मत के क्या कहने ?मैं तो हमेशा ही अरु की पॉटी साफ़ करती हूँ । ",मनस्वी ने हँसते हुए कहा।

"क्या मतलब ?",मैंने कहा । 

"अरे मम्मी , पति -पत्नी दोनों जीवन साथी हैं । दोनों को एक-दूसरे को सहयोग करना चाहिए । ",मनस्वी ने मेरे गले में बाँहें डालते हुए कहा । 


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