ट्विलाइट किलर भाग -17
ट्विलाइट किलर भाग -17
हिमांशु की बात सुनकर सभी थोड़ी सोच में थे! अंडरवर्ल्ड की मीटिंग में हिमांशु और उसके साथियों का छुप कर जाना कल्पना के भी बाहर था। आंखों के सामने की दुनिया आधुनिकता का केवल दिखावा करती है और उतना ही इस्तेमाल में लाती है जितना आरामदायक जिंदगी के लिए जरूरी है पर अंडरवर्ल्ड के साथ ठीक उलट है। वहाँ पर केवल रहन-सहन कठिन है! आधुनिकता तो असल में अंडरवर्ल्ड ने ही अपनाई है, छुपने की बेहतर जगह, हथियार, सिक्योरिटी सिटेम्स और भी जिंदगी के कई आयाम वाहन पर असल दुनिया से बेहतर है, हों भी क्यों न? जहाँ हर सेकेंड जिंदगी और मौत का अंतर समझाता हो वहाँ इंसान अपनी सीमाओं को लांघने में देर नहीं करता।
“मैं समझा नहीं। क्या तुम छुप कर वहां पर जाने की कोशिश कर रहे हो?” अतुल का मुँह बन गया “मुझ से बेहतर तो तुम जानते हो कि ऐसा करना उतना ही कठिन है जितना संकरी गली से हाथी का निकलना”
इस पर हिमांशु एक बार फिर मुस्कुराया,
“जानता हूँ और वेसे भी हम छुप कर नहीं जाने वाले। पर फिलहाल आज हम कहीं और जाने वाले है”
“ओके, पर ध्यान से! मैं आज रात तक वापस नहीं आने वाला” अतुल ने बाहर जाते हुए कहा “मुम्बई सेंट्रल की पुलिस की आज एक बड़ी बैठक है, मैं भी वहीं जा रहा हूँ, कमिश्नर का आर्डर है”
अतुल के जाने के बाद भी जब किसी ने कोई सवाल नहीं किया तो हिमांशु ने उन्हें आज का शेड्यूल बताया। टीना हिमांशु के साथ जाने वाली थी, पुनीत को सौरभ की इंटरनेट की सहायता से जानकारी इकट्ठे करने के लिए कहा गया( चाहे उसे डार्क वेब की ही सहायता क्यो न लेनी पड़े) और राम-राघव भी बेस पर ही रुकने वाले थे एक बैक-अप के तौर पर। इसके बाद सभी ने साथ मिलकर ऑमलेट, कॉफी और उपमे का नाश्ता किया जो कि आसुना ने बनाया था। जब वो वापस पानी देने के लिए आई तो
“वाह आसुना! बहुत ही टेस्टी नाश्ता तैयार किया है तुमने” हिमांशु सच में बहुत खुश लग रहा था “कभी सोचा नहीं था कि उपमा खाकर यह कहूंगा पर तुम्हें इतना अच्छा इंडियन फ़ूड बनाना कैसे सीखा?”
“हां, मैं भी जानना चाहूंगी। मेरे पापा तो उपमे के नाम से ही दूर भागते है” तीन उत्सुकता भरी आंखे लिए हुए थी
“जय ने सिखाया था! वह बहुत अच्छा खाना बनाता है” आसुना के चेहरे पर भीनी सी मुस्कान आ गयी, जैसे गुलाब की पंखुड़ियों का खुलना हो “जब हम जापान में थे तो अक्सर वह खुद ब्रेकफास्ट बना कर लाता था और फिर कुछ दिनों में उसने जापनीज खाना बनाना भी सीख लिया....”
“वाओ! है रियली इस अमेजिंग(Wow,he really is amazing)” अचानक ही टीना के मुंह से यह सुनते ही राम-राघव की नजरों ने टीना को घेर लिया। वो दोनों उसे घूर रहे थे, यह देख कर आसुना कुछ हंसती हुई वहां से चल दी। उन दोनों ने हिमांशु की ओर देखा इस उम्मीद में कई वो टीना को कोई लेक्चर दे,
“क्या? वो सही तो कह रही है, अच्छा खाना बनाने वाले अमेजिंग ही तो होते है” हिमांशु के इस जवाब पर टीना ने जब राम-राघव के चेहरे देखे तो उसे हंसी आ गयी। उन दोनों का उल्लू बन गया था
फिर अगले ही पल उन दोनो ने भी नाश्ता मुह को लगाया और राम के मुंह से निकल गया।
“हम्म, वैसे सच में नाश्ता अच्छा है”
और यह सुनते ही राघव की तीखी नजरों ने राम को घेर लिया। एक जोरदार ठहाका उस टेबल से आया, उन सभी के दिन की शुरुआत बहुत मजेदार रही थी........
*************
करीब 10 बजे सुबह टीना और हिमांशु उस अस्पताल पहुंच गए थे जहां पर ह्यूमन ट्रेफिकिंग से बचाई गयी लड़कियों का इलाज चल रहा था। उस अस्पताल के अंदर एक बड़ी सी इमारत के साथ साथ, नीचे 150 लोगों की कैपेसिटी वाले 5 वार्ड रूम थे जिनमें से एक में केवल उन लड़कियों के इलाज में डॉक्टर्स और नर्सेज लगी हुई थी। आम तौर पर वहाँ पर उन पुलिस और उन लड़कियों के परिवार वालो के कोई और नहीं आ सकता था पर हिमांशु और टीना के पास उसका दिल्ली पुलिस का बैच भी था इसके तहत वो अंदर जाने के काबिल थे।
सभी लड़कियों का मुफ्त और बहुत ही अच्छे से इलाज हो रहा था पर अब भी उनकी मानसिक हालात बहुत खराब थी, उसके अंदर जो डर था, डर किसी से भागने का, वह बहुत प्रबल था पर कुछ लड़कियां बहुत मजबूत थी जिनमे से ज्यादातर 20 साल के ऊपर वाली थी। टीना और हिमांशु को इस बात की खुशी थी कि किसी ने भी आत्महत्या की कोशिश नहीं कि थी, वो सभी सुरक्षित थी। आरामदायक बिस्तर और महिला डॉक्टरों से भरा हुआ बहुत बड़ा हॉल जैसा वार्ड था वो, खाने-पीने की भी उत्तम व्यवस्था थी। मां-बाप के आंसू कभी इसलिए बहते थे कि उनकी बच्चियों के साथ यह कैसा अनर्थ हो गया था? तो कभी इसलिए कि कम से कम अब उनकी बेटियां सुरक्षित तो है। हिमांशु और टीना यह देख कर इमोशनल हो गए थे
“देखा सर” टीना की आवाज थोड़ी भारी थी “मां-बाप की अपनी औलाद की तकलीफों पर अब भी आंखे नम है। अगर हम उस दिन इन्हें नहीं बचा पाते तो न जाने इस सभी परिवारों की क्या हालत होती!”
हिमांशु की आंखें नम तो थी पर उन नम आंखों में एक अजीब सी बेरुखी थी जो टीना के लिए पहचान पाना अभी मुमकिन न था, हिमांशु ने अपनी कलाई से आंसुओ को पोछा
“काश हर माँ-बाप इतने ही उदार दिल के होते जिन्हें अपनी औलाद से बेमतलब का प्यार होता....काश!” उस ‘काश’ में जैसे एक भारीपन था। टीना कुछ पूवचती की इतना में एक महिला डॉक्टर उन दोनों के सामने आ गयी।
“आप सभी पुलिस वालों का शुक्रिया! आपकी ही वजह से आज ये सब लड़कियां सलामत है” महिला डॉक्टर के चेहरे पर ऐसी उजली मुस्कान थी कि देख कर ही बताया जा सकता था, वो दिल से निकली हुई मुस्कान थी।
“अच्छा हुआ जो आप लोगों ने कार्गो यार्ड के सामने वाला अस्पताल बन्द करवा दिया, वेसे भी वो अस्पताल लोगों का खून ही चूस रहा था” महिला डॉक्टर ने सामान्य भाव से कहा
हिमांशु और टीना को इस बारे में कोई भी खबर नहीं थी, उन दोनों के चेहरे एक दूसरे को तांक रहे थे।
“क्या मतलब है कि वो.......लोगों का खून ही चूस रहा था?” टीना ने पूछा
“क्या आप दोनों को नहीं मालूम? पुलिस ने ही तो उसे बंद करवाया है, उस हॉस्पिटल का ह्यूमन ट्रैफिकिंग से सीधा संबंध था!” महिला डॉक्टर ने दोनों को बताया
“ओह, तो यह बात थी!” हिमांशु को ज्यादा आश्चर्य नहीं हुआ “बताने के लिए शुक्रिया, हम कुछ दिनों की छुट्टियों में यहाँ आये थे इसलिए ज्यादातर मामलों की जानकारी नहीं है”
हिमांशु ने अपनी जेब में से एक कार्ड निकाला और महिला डॉक्टर की ओर बढ़ाते हुए कहा
“यह मेरा कार्ड है, जब भी जरूरत पड़े तो कॉल कर लीजिएगा”
महिला डॉक्टर ने उस कार्ड को पढ़ा और जैसे ही सर उठा कर देखा तो वो दोनों वहाँ पर नहीं थे। अब जो नई जानकारी मिली थी उसे लेकर वहां पर ज्यादा देर रुकना भी किसी मतलब का नहीं था। तेज कदमों के साथ ही दोनों वार्ड रूम से बाहर आ गये। हिमांशु ने पुनीत को कॉल किया
“हेलो! पुनीत, अभी पता चला है कि कार्गो यार्ड के सामने वाला हॉस्पिटल ह्यूमन ट्रैफिकिंग में जुड़े होने कारण बन्द हो गया है.....उसकी सारी जानकारी निकाल लो, हम कुछ ही देर में वहां आ रहे है” इतना कह कर हिमांशु ने फ़ोन जेब में ठूस लिया।
“अब हम कहाँ जा रहे है? कोई और भी जगह काम है क्या?” टीना ने पूछा
“नहीं, बस रेशमा के यहाँ पर रुकते है कुछ देर, आज वैसे भी घर पर अकेली बोर हो रही होगी। अतुल का पता नहीं कब आना होगा?”
दोनों ने कार को वापस अतुल के घर की ओर दौड़ाया। घर हमेशा की तरह ही सुना पड़ा हुआ था, जब वो अंदर गए तो रेशमा के साथ 2 बूढ़ा-बूढ़ी बैठे हुए थे और तीनों ठहाके मार-मार कर हंस रहे थे। सामने TV में कोई कॉमेडी शो चल रहा था, रेशमा ने जैसे ही हिमांशु को घर के अंदर आते हुए देखा तो उसे पूरे आदर के साथ बैठ कर TV देखने की बात कही पर हिमांशु TV देखन के के लिए तो बिल्कुल भी नहीं रुकने वाला था। उसने रेशमा को कह दिया कि अतुल अगर ज्यादा लेट हो जाये तो वो उसके साथ बेस पर चली आएगी जिस पर रेशमा ने बहुत ही प्रसन्नता के साथ हामी भरी। रेशम की खुशी को देख कर हिमांशु समझ गया कि वो आसुना और निहारिका से मिलने को उत्सुक थी। उन तीनों को TV देखते हुए छोड़ कर दोनों वापस बेस पर आ गए। बेस के अंदर आते ही दोनों हैरान थे। पुनीत कंट्रोल पैनल पर कुछ बड़े-बड़े पन्नो को पढ़ रहा था! खैर यह कोई आश्चर्य की बात नहीं थी..आश्चर्य तो यह था कि राम-राघव, आसुना और निहारिका के साथ कुर्सी पर बैठ कर शतरंज की चालें चल रहे थे। राघव बहुत चिढ़ा हुआ लग रहा था क्योंकि आसुना जीत की ओर बढ़ रही थी।
“वोsssह!...” हिमांशु की आवाज को सुनकर राघव चोंक पड़ा, वह झट से छोटे बच्चों की तरह सीधे बेथ गया जैसे वह खेल ही नहीं रह था। हिमांशु और टीना आश्चर्य भर लोमड़ी जैसा चेहरा लेकर उन के पास गए,
“मुझे तो लगा था तुम दोनों एक दूसरे पर छुरियों लिए पड़े होंगे!” हिमांशु व्यंग से हंसता हुआ बोला “अब यह अजूबा देखने की उम्मीद बिल्कुल भी नहीं थी”
“बताओ, आखिर कौन सा जादू चल गया यहाँ पर, हमारी गैरहाजिरी में!” टीना ने हिमांशु की बात के ठीक बाद दबाव दिया
आसुना और निहारिका बड़ी-बड़ी मुस्कान से कोई जवाब नहीं दे रहीं थी। राम-राघव भी चुप थे कि तभी पीछे से आवाज आई
“सब आसुना जी और निहारिका जी के खाने का कमाल है” बिना एक भी नजर पैनल से हटाये पुनीत ने कहा “आसुना जी ने कहा था कि वो मशरूम और पनीर की सब्जी बनाने वाली है खाने में पर हमारे राघव को बिरयानी खानी थी। राघव ने बिरयानी बनाने को कहा तो निहारिका जी ने कहा कि अगर वो आसुना को शतरंज में हरा देगा तो जो भी खाने को मांगेगा वो बना देंगी! सो ये लोग लगे पड़े है, अब तीन बाजियां हार चुका है पर संतुष्टि कहाँ मिली?”
पुनीत का व्यंग भरा जवाब सुनकर तो वो सभी हंस-हंस कर पागल से हो गए। पर आखिर में भूख से पेट गुड़गुड़ाये तो सब हंसी निकल गयी। आसुना और निहारिका को उन पर तरस आ गया और दोपहर का खाना भी उन्होंने ने ही बनाया। करीब 1 घण्टे के इंतजार के बाद टेबल पर मशरूम और पनीर की सब्जी के साथ रोटी और धनिया-जीरे से सजे हुए चावल की परात सज गयी जो कि निहारिका लेकर आई थी। बेचारे राघव का कितना मन था बिरयानी खाने का! कि तभी कमरे में खड़े मसालों और इलायची की महक किसी परफ्यूम की तरह छा गयी, किचन से बिरयानी की हांडी लिए आसुना आ चुकी थी। राघव का तो मुँह पानी-पानी हो गया, वह किसी छोटे प्यारे कुत्ते के पिल्ले की तरह दिख रहा था, उसकी आंखे बिरयानी को देख कर चमक उठी थी। बिना देरी के खाना परोसा गया और एक बार फिर सभी ने दोनों की तारीफों के पुल बांध दिए, साथ मे बैठ कर खाना खाया, एक परिवार की तरह। सभी के चेहरे पर एक अजीब सी खुशी थी, ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे किसी चिड़िया का आबाद घोंसला हो.......................
******************
थाने, मुम्बई! के पास एक छोटा सा गांव है माजीवाड़ा, जिस से लग कर एक रोड गयी है- साकेत-कलवा रोड। ठीक समय एक छोड़े पात की नदी जो 12 महीने बहती रहती है। वेसे तो उसे पर करने के लिए एक प्रॉपर पुल है जो आम इंसान उपयोग करता है पर करने के लिए। उस पात के दूसरे छोर पर एक छोटा सा जंगल है जिसके दूसरी ओर एक फार्म हाउस और मछली पालन का केन्द्र भी है। उस केंद के मानवनिर्मित तालाब मछलियों से भरे पड़े रहते है आज भी। रात गहराती जा रही थी और उस रात की गहराई के अंदर वो बड़ा सा फार्म हाउस किसी जुगनू से कम नहीं था, आज रात जैसे वहाँ पर कोई जश्न हो रहा था। बड़ी-बड़ी गाड़ियां आ रहीं थी, हर किसी की पोशाक बहुत ही महंगी और आकर्षक थी। और हमारे हिमांशु की टीम भी सूट-बूट में तैयार होकर यहीं पहुंच गए थे, टीना अकेली लड़की थी पर उसने भी खुला काला सूट वाला जैकेट और सफेद शर्ट पहनी हुई थी। पांचो सूट-बूट में इस पार्टी में उपस्थित होने को तैयार थे, फार्महाउस अंदर की ओर था और कार पार्किंग बाहर करीब 500 मीटर की दूरी पर। उन पांचों ने भी उस चकाचौंध भरी जगह में जाने के लये अपनी गैजेट्स से लैस जीप खड़ी की।
“क्या आपको पूरा यकीन है, यहीं वो जगह है जहाँ पर अंडरवर्ल्ड की मीटिंग होंने वाली है?” पुनीत ने जीप से नीचे उतर कर पूछा, सभी एक साथ आजू-बाजू एक लाइन में वहां उस आर्टिफीसियल घांस से बनी हुई सड़क पर खड़े हुए थे। उस जगह की चकाचौंध एक शानदार पार्टी से कम नहीं थी ऐसे में अंडरवर्ल्ड की मीटिंग यहाँ पर होने पर पुनीत को शक हो रहा था।
“अब जगह तो यहीं बताई थी, तो यहीं पर होगी” हिमांशु भी एक बार को इस कंफ्यूज़न में था कि कहीं उस से एडरेस सुन ने मैं गलती तो नहीं हो गयी
“तुमने पता किए यह फार्महाउस किसका है?” सभी ने चलना शुरू किया
“हां, किया तो है” पुनीत ने एक सामान्य टैब निकाल कर देखा “यह फार्महाउस किसी ‘आनंद चौधरी’ के नाम से है। उसने यह एक नीलामी में खरीदा था...दूर और जंगली जगह होने के कारण इसकी कीमत 10 करोड़ से सीधे 2 करोड़ पर आ गयी थी”
इसके बाद किसी ने कोई भी सवाल नहीं किया, कुछ देर चलने के बाद सामने एक रंगीन फूलों से भरा हुआ बगीचा आया जिसके ठीक सामने एक क्रीम रंग का बहुत बड़ा बंगला सा था जो रोशनी से ऐसे जगमगा रहा था जैसे किसी राजा का महल हो। उसे देख कर राघव के मुंह से निकला
“पक्का हम किसी अमीरजादे की बिज़नेस पार्टी में नहीं आये है?” राघव का खुला मुँह इस बात का गवाह था कि यह जगह वाकई शानदार थी।
उस शानदार बंगले की लाइट्स की सजावट ही इतनी शानदार थी कि उसकी सिंपल डिज़ाइन और भी नखर कर सामने आ रही थी। पास मैं जंगल और तालाब हों एकी वजह से चल रही मद्धम हवा बहुत ही फ्रेश और हम थी जिसमे सांस लेकर शरीर में ठंडक की लहर दौड़ गयी। इसके अलावा वहाँ की सिक्योरिटी में भी कोई कसर नहीं थी। काले सूट वाले काफी सारे गार्ड किसी मूर्ति की तरह लंबी बंदूकों से पहरे पर लगे थे। आसमान में काफी सारे ड्रोन्स उड़ रहे थे रात के अंधेरे में छुपे हुए थे। अंदर जाने से पहले गार्ड्स एक मेटल डिटेक्टर से सभी की जांच कर रहे थे ताकि कोई हथियार अंदर न ले जा पाए।
“सर, हमारे हथियार भी हमे अंदर नहीं ले जाने देंगे अब क्या करें?” राम ने कहा
“उसकी चिंता मत करो!” हिमांशु ने बेफिक्र होकर कहा
“पुनीत सब संभाल लेगा”
पुनीत अपने हाथ में एक काला ब्रीफकेस लेकर आगे बढ़ा, गार्ड्स ने उसे हाथ दिख कर रोका।
“माफी चाहता हूँ सर पर मुझे आपकी तलाशी लेनी होगी, अगर आपके पास कोई हथियार यही तो अभी हमें दे दीजिये। जाते समय हम से ले लीजिए गा!”
“मेरे पास कोई हथियार नहीं है, आप तलाशी ली सकते है” पुनीत ने एक मुस्कान के साथ कहा और टैब में एक एंट्री पास दिखाया जिसे देख कर ही गार्ड ने आगे कुछ नहीं कहा।
उस गार्ड ने उसकी तलाश ली पर कुछ भी नहीं मिला केवल एक टैब के। उसने मेटल डिटेक्टर से भी तलाशी ली और पूरा ब्रीफकेस भी खोल कर देखा। अंदर केवल 2 मोटी पुस्तकें, कुछ नेकलेस और परफ्यूम की कुछ बोतलें थी। सब कुछ ठीक देख कर उसने पुनीत को जाने दिया, पुनीत के पीछे आ रहे हिमांशु और बाकी साथियों की भी तलाशी ली गयी। उन सभी के पास एक-एक अभूत ही अच्छी क्वालिटी और तकनीक की पिस्टल्स थी जिन्हें देख कर एक पल के लिए तो गार्ड भी चोंक गए, पर फिर उन्होंने एक नंबर लिखे सूटकेस में उन्हें डाल कर हिमांशु को एक 07 नम्बर का बिल्ला पकड़ा दिया।
अंदर सभी की एंट्री होते ही उन्हें हॉल के बीच में बहुत सारी भीड़ घेरा लगाए हुए दिखी। वह किसी आकर्षण का ही केंद्र था, लोगों का हो-हल्ला लगा हुआ था। वो किसी चीज पर ‘बेट’ लगा रहे थे।
“यहाँ पर क्या हो रहा है?” टीना ने पास से निकलते हुए एक वेटर से पूछा
“यह इस बंगले का एरीना है। कुछ ही देर में फाइट शुरू होने वाली है....पर आज की फाइट में किसी कंपनी की भागीदारी नहीं है। एक मनोरंजन वाली फाइट है आज” कहते हुए वेटर ने सभी को वाइन से भरे कांच के लंबे गिलास थमाए।
अभी उन सभी ने मुस्कुराते हुए वाइन के गिलास को मुँह से लगाया था ही कि सभी की नजरें एक संगीत की धुन के शुरू होने से ऊपर उन चौड़ी सीढ़ियों की ओर चली गयी। वहाँ से काले रंग की एक सुंदर सी ड्रेस में किसी अप्सरा की काया लिए वो चली आ रही थी, उसकी नजाकत भरी चाल दर्शन के काबिल थी। बांहे काले लिबास से ढंकी हुईं थी और वो पोशाक घुटनो से भी नीचे तक चिपकी हुई । उस सुंदर युवती के उभार, गोरा रंग किसी को भी मोहने के लिए काफी थे। खुले हुए हल्के घुंघराले काले बाल रेशम को मात दे रहे थे, उसका हाथ पकड़ कर उसे नीचे ला रहा वो युवक युवती से हाइट में थोड़ा छोटा था पर हैंडसम वह भी था, उस अप्सरा के काबिल। सीढ़ियों से पास खड़े हुए एक एंकर जिसने सफेद कोट-पेंट पहने हुए थे, माइक लिए कहना शुरू किया,
“तो आप सभी के सामने पेश है, इस पार्टी कि आयोजक, ‘रूबी फार्मासूटिकल’ की मालकिन मिस रूबी राठौर!”
बिना किसी आदेश के तालियों की गड़गड़ाहट वहाँ पर गूंज उठी, पर हिमांशु के चेहरे पर जीभ से भाव थे जैसे उसे इस सब की उम्मीद नहीं थी!.........
वैसे जिन लोगों ने ‘The 13th’ पढ़ी है उन्हें अंदाजा हो गया होगा कि यह रूबी कौन है और आखिर हिमांशु के चेहरे पे अजीब भाव क्यों है१ पर जिन्हें यह सब समझ नहीं आ रहा उन्हें बता दूं कि यह कहानी मेरी पिछली कहानी ‘the 13th’ से जुड़ी हुई है।आगे कहानी को अच्छे से समझने के लिए मैं The 13th पढ़ने को कहना चाहता हूँ।
बाकी सभी नए पाठकों से मेरी यह नुमाइश है कि जिन्हें भी कहानी पसन्द आ रही है वो मुझे फॉलो जरूर करें साथ ही समीक्षा भी लिखे ताकि मुझे अपने लेखन के बारे में पता चलता रहे और सुधार सम्भव हो।
