टूटी दीवार
टूटी दीवार
बाउजी के देहांत के बाद अजय विजय शहर से अपने घर वापस जाने लगे और उन्होंने अम्मा को कहा "अम्मा अब ये टूटे-फूटे खंडर मकान को बेचकर हमारा हिस्सा हमको आधा-आधा बांट दे।"
अम्मा "ऐसा तो मैं कर दूंगी लेकिन मैं किसके साथ रहूंगी ।यह तो तुम लोगों ने बताया कि नहीं। "
इतने में दोनों बोले अजय ने कहा विजय रखेगा विजय ने कहा अजय रखेगा।
अचानक यह सुनकर अम्मा के दिल की दीवार जो पहले ही जर्जर थी बाबूजी के जाने के बाद और दोनों भाइयों के झगड़े में आज और खिरने लगी।
वह कमरे के अंदर गई और बाबूजी की बनाई वसीयत अजय विजय दोनों को बताई। अजय विजय ने वसीयत पढी तो उसमें यह साफ-साफ लिखा था कि अम्मा ही मकान की मालकिन है । और जो अम्मा की देखभाल करेगा यह मकान उसी के नाम होगा।
इतना पढ़ते ही अजय व विजय दोनों बोल पड़े की जो मां को रखेगा वह पूरा मकान उसका ही होगा। और दोनों कहने लगे की मां को मैं रख लूं ।
अम्मा जी को यह एहसास हो गया कि बेटों की ममता के रिश्तो की दीवार पैसों पर टिकी है।
अम्मा जी ने अब तक यह निर्णय ले लिया था कि जिस तरह टूटे दिल की दीवार की मरम्मत होनी मुश्किल है वैसे ही मेरी खंडर रूपी घर की मरम्मत होनी मुश्किल है इसको नया रूप देना ही श्रेष्ठ रहेगा।
उन्होंने अजय विजय दोनों के साथ जाने से इनकार कर दिया। और जिस घर को वह खंडर कह रहे थे उसी में ही अपना जीवन अकेले व्यतीत करने का फैसला किया।
थोड़े दिनों बाद अम्मा जी ने जो बाबूजी पैसा छोड़ गए थे उससे घर को एक लघु उद्योग का रूप देकर औरतों के लिए सिलाई केंद्र की स्थापना कर दी। और वह टूटी दिवारी नवीनतम हो उठी।