टुकड़े-टुकड़े लाश
टुकड़े-टुकड़े लाश
झाड़ियों में अज्ञात व्यक्ति का क्षत-विक्षत शव पड़ा होने की खबर पूरे गांव में जंगल की आग की तरह फैल गई। इससे पहले कि पुलिस वहां पहुंच पाती, गांव के छूट भैया नेता दल बल के साथ पहुंच गए। किसी की जुबान पर कोई लगाम नहीं ।जितने मुंह उतनी बातें। तमाम कयास लगाए जाने लगे। सब एक से एक बढ़कर विशेषज्ञ। दुर्गंध मारते शव का दूर से पोस्टमार्टम करने लगे। देखते ही देखते सड़ांध मारती लाश जातियों में तब्दील होने लगी। हर कोई उसे अपनी जात का बताने के दावे ठोकने लगा।
मोहन (ग्रामीण) " अरे बाप रे, राक्षसों ने काट-पीटकर झाड़ियों में फेंक दिया।"
सोनू (ग्रामीण) हां भाई मोहन,करमजलों ने मुंह को भी कुचल डाला। वैसे आदमी जाना पहचाना लग रहा है।"
मोहन "हां सोनू, अरे यह तो हमारा आदिवासी भाई घासीराम नजर आ रहा है। वैसे ही कपड़े। वहीं टूटी फूटी चप्पल। बेचारा माथे पर तिलक लगाता था। फिर भी मार डाला।"
सोनू "हां भाई, खेतों में मजदूरी करके परिवार का पेट पाल रहा था। कुछ दिन पहले दबंग रामसिंह से झगड़ा हुआ था।"
देखते ही देखते लोगों की भीड़ इकट्ठा हो गई ।दूरदराज के लोगों को भी खबर करके बुला लिया। बदला लेने की बातें होने लगी। मरने मारने के नारे लगने लगे।
एक नेता " हमारे दलित भाई घासीराम की निर्मम हत्या कर दी ।गांव के ही दबंग से कुछ दिन पहले झगड़ा हुआ था। अकेला देखकर उसे निपटा दिया।"
सोनू "आप हमारे नेता हैं। खून का बदला खून से लेना होगा ।आज घासीराम को मारा है। कल हमारा नंबर लग जाएगा।"
नेता "इससे पहले कि पुलिस यहां आ जाए। हमें राम सिंह के घर पर धावा बोलना होगा।"
नेता के भड़काऊ भाषण सुनकर भीड़ का गुस्सा सातवें आसमान पर पहुंच गया। उत्तेजित भीड़ लाठी-डंडों से लैस होकर राम सिंह की तलाश में उसके खेत की ओर जाने लगी ।तभी पुलिस की वाहन सायरन बजाती हुई आ गई। उत्तेजित भीड़, पुलिस के खिलाफ नारेबाजी करने लगी। पुलिस वालों के साथ धक्का-मुक्की होने लगी। पुलिस की जीप जला देने के नारा लगने लगे। तभी पुलिस की जीप से घासीराम बाहर निकला। भीड़ घासीराम को देखकर आश्चर्यचकित रह गई।
घासीराम (भीड़ से)" भाइयों गुस्सा मत करो। मैं भला चंगा हूं। मुझे कुछ नहीं हुआ। मैं पुलिस थाने गया था।"
नेता "तो फिर यह सड़ी हुई लाश किसकी है। मुझे तो किसी दूसरे समाज की नजर आ रही।"
पुलिस ने तुरत फुरत लाश को अपने कब्जे में ले लिया। लाश की तलाशी ली गई। जेब में से आधार कार्ड और राशन कार्ड मिला।
पुलिस इंस्पेक्टर ने भीड़ से कहा " यह अज्ञात लाश नदी किनारे मंदिर के पुजारी बाबा की है। नाम महंत उमा शंकर दास।"
मोहन "अरे वह बाबा तो अकेला था। भला उसका फोन दुश्मन हो सकता है ?"
क्रुद्ध भीड़ को सांप सुंघ गया। लाठी-डंडों से हुड़दंग करते लोग एक दूसरे का मुंह देखने लगे। कथित नेताजी अचानक भूमिगत हो गए। धीरे-धीरे भीड़ घटने लगी। अकेला घासीराम दुर्गंध मारती लाश के पास रह गया।