अभिशप्त औरत
अभिशप्त औरत
जिस उम्र में युवा अपना कैरियर बनाने के बाद सोचते हैं ।उस उम्र में संकेत और शिखा का प्रेम परवान चढ़ने लगा। शैशव की अतृप्त कामनाएं साकार होकर बावला बनाने लगी ।परिवार समाज की चिंता किए बिना दोनों नित नए वादे कसमें खाने लगे। माता-पिता की आंखों में धूल झोंककर तीसमार खां बनते रहे। लड़कपन की जिद के सामने परिवार को नतमस्तक होना पड़ा। दोनों शादी के बंधन में बंध गए। दो बच्चे हो गए ।पारिवारिक जिम्मेदारियों से अनभिज्ञ संकेत शिखा पर दोषारोपण करने लगा।आकर्षण की खुमारी जल्दी ही उतरने लगी। सात जन्म तक साथ निभाने की कसमें खोखली साबित हुई ।धीरे-धीरे मांसल आकर्षण बोझ लगने लगा। हवाई सपने दिखाकर अपने प्रेम जाल में फंसाने वाला संकेत एक नंबर का गंजेड़ी भंगड़ी निकला। नशे का गुलाम हो गया ।आए दिन मारपीट, प्रताड़ना, गाली गलौज उसकी दिनचर्या का अनिवार्य हिस्सा बन गया।
संकेत (शिखा से) " तुमने मुझे अपने प्रेम जाल में फंसाकर मेरा जीवन बर्बाद कर दिया।"
शिखा " माता पिता के विरोध के बावजूद मैंने आपसे शादी की है। सोचा था शादी के बाद सुधर जाओगे लेकिन मैं गलत साबित हुई।"
संकेत " मैं स्वतंत्र रहना चाहता हूं। तुमसे शादी मेरे जीवन की सबसे बड़ी भूल है।"
शिखा "आपने मुझे अंधेरे में रखा। मेरे सामने भले आदमी होने का नाटक करते रहे। पीठ पीछे अय्याशी में लगे रहे।"
संकेत " मेरी धन दौलत को हड़पने के लिए तुमने मेरा इस्तेमाल किया है। तुमसे शादी के अतिरिक्त उस समय मेरे पास कोई विकल्प नहीं था।"
संकेत आए दिन देर रात नशे में धुत होकर घर लौटता । शिखा से मारपीट करता । यदा-कदा अपनी प्रेमिका को घर लाने लगा।
दो बच्चों की मां बन चुकी शिखा बच्चों में अपना भविष्य तलाशने लगी। संकेत को दोनों बच्चों से कोई मतलब नहीं। आए दिन उनके साथ मारपीट करता। मजबूरन शिखा को नौकरी करना पड़ा। उसने पूरा ध्यान बच्चों की शिक्षा दीक्षा पर केंद्रित कर दिया। शंकालु प्रवृत्ति का संकेत शिखा पर चरित्रहीन होने के अनर्गल आरोप भी लगा देने से बाज नहीं आया। बच्चों के खातिर शिखा शातिर पति संकेत के विरुद्ध कार्यवाही करने से झिझकती रही। रोज-रोज अपमानित होकर जीवन जीने की उसे आदत हो गई। अब उसे संकेत का व्यवहार सामान्य लगने लगा। एक छत के नीचे अभिशप्त जीवन जीना उसकी मजबूरी बन गई।
शिखा को कुछ बेहतर विकल्प भी मिले। लेकिन वह अपना और अपने बच्चों का भविष्य दाव पर नहीं लगाना चाहती। लोक लाज की मारी शिखा मन मसोसकर चारदीवारी में स्वेच्छा से कैद हो गई।