अनाथ कन्या
अनाथ कन्या
माता पिता की रोड़ एक्सीडेंट में मृत्यु के बाद इकलौती कन्या आठ साल की विभा असहाय हो गई। दादा-दादी, नाना- नानी कोई नहीं। सारे नजदीकी रिश्तेदार विभा को रखने के नाम पर कतराने लगे। अबोध विभा के सामने जीवन का संकट खड़ा हो गया। लड़की को कोई भी अपने पास रखने की जोखिम नहीं उठाना चाहता। बड़े बेमन से विभा की दूर की मामी सुनंदा उसे अपने साथ शहर ले आई ।पढ़ने लिखने की उम्र में उसे घर के काम में झोंक दिया।
सुनंदा (पति रोहित से) " आपके कारण इस मुसीबत को साथ में लाना पड़ा। लड़की की जात है। देखते ही देखते जवान हो जाएगी।"
रोहित " मजबूरी थी सुनंदा । करमजली को कोई ले जाना नहीं चाहता था । मजबूरी में मुझे अपने गले में घंटी बांधना पड़ी। सोचा घर का कामकाज करती रहेगी।"
सुनंदा "काम की न काज की दुश्मन अनाज की ।आए दिन बीमार पड़ जाती है ।कलिया कहीं की।"
पप्पू (सुनंदा का बेटा) " ना जाने कहां से ही कलमुही को पकड़ लाए। दिनभर सिर खुजाती रहती है।"
सुनंदा "तेरे पापा की दूर की रिश्तेदार है ।अब गले गुदड़ी पड़ गई ।साफ सफाई पर ध्यान नहीं देती। गंदी रहती है। सिर में ढेर सारी जुएं पड़ गई।"
विभा चुपचाप घर के सारे काम में लगी रहती। उसके साथ नौकरानी से भी बदतर व्यावहारिक होने लगा ।बचा खुचा बासी खाना उसके हिस्से आता ।स्कूल जाने के बारे में वह सोच भी नहीं सकती। उसकी पढ़ाई छूट गई ।सुनंदा थोड़ा भी नुकसान हो जाने पर पिटाई कर देती ।मासूम विभा का बचपन नरक बन गया। माता-पिता के न रहने की बहुत बड़ी सजा मिलने लगी। उसके घर के बाहर निकल पर पाबंदी लगा दी ।वह घर पर आए मेहमानों से बात करने के लिए तरस जाती। झाड़ू, बर्तन, पोंछा,प्रताड़ना उसकी दिनचर्या का अनिवार्य हिस्सा बन गये।
रोजाना की मारपीट और हाड़ तोड़ काम से तंग आकर एक दिन वह घर से भाग खड़ी हुई।यहां वहां ठोकर खाती, भटकती विभा अंततः अनाथ आश्रम में शिफ्ट कर दी गई।
सुनंदा ने राहत की सांस ली और बोली " लड़की की जात है ।कल से कुछ ऊंचा नीचा हो जाता तो हमारा मुंह काला करवा देती। जान बची लाखों पाए।"