टीचर
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"अरे अनिमेषबाबू जरा सुनिए आपका काम हो गया है,इस माह हम आपको आपकी मासिक तनख्वाह के साथ पुराने बकाए पैसों का भी पूर्ण भुगतान कर देंगे।"अकाउंटेंट साहब ने अपनी टेबल पर आए अनिमेष से कहा।
उनकी बात सुन अनिमेष बोला "शुक्रिया बाबूजी,पर आपसे एक निवेदन है कि उस रकम मेसे आप पहले मेरी कक्षा में पढ़ने वाले सूरज की फीस की तिमाही किश्त भर दिजिएगा उसके बाद बचा हुआ पैसा ही मुझे देना।"
उसकी यह बात सुन अकाउंटेंट साहब आश्चर्य से बोले,"भाई अनिमेष तुम भी अजीब आदमी हो पिछले कई महीनों से मुझसे तनख्वाह के साथ बकाए पैसों को देने की अर्ज कर रहे थे।
जिससे अपने बेटे को एक महंगी साइकिल दिला सको, जिसका तुमने कई महीनों पहले वादा किया था। जिसके लिए तुम्हे आज भी जबतब अपने बेटे के सामने शर्मिंदा होना पड़ता है और आज जब",वो आगे कुछ कह पाते उसके पहले ही अबतक खामोश अनिमेष बोला।
"सर इस सूरज के पिता नही है,बेचारी माँ ही हाड़तोड़ मेहनत कर उसे पढा रही है। जो पिछले कुछ दिनों से बीमार है,शायद इसीलिए फीस न भरने के कारण अब सूरज नाम भरी क्लास में पुकारा जाता है।जिसके कारण मारे शर्म से उसका सर नीचे धस जाता है।" मैं उसके दोस्तों के सामने उसकी यह दशा अब और नही देख सकता। बस इसीलिए आपसे यह कह रहा हूँ सर,फिर अपने बच्चे को साइकिल तो मैं आगे भी दिला सकता हूँ।और फिर आप ये क्यों भूल रहे है कि मैं केवल एक पिता ही नही बल्कि एक शिक्षक भी हूँ।"
