ठेस
ठेस
रोमा, मेरी पीली सिल्क वाली साड़ी पहन कर तैयार हो जा थोड़ी देर में लड़के वाले आने वाले हैं -कहते हुए पार्वती हाथों में पीले फूलों से बनी वन्दनवार सजाने लगी।
लड़की देखने दिखाने का रिवाज कब खत्म होगा समय कितना बदल गया है बस नहीं बदली तो यह आप लोगों के वर्षों से बनाई रिवाज ,मुझे नहीं तैयार होना बस आप लड़के वाले को मना कर दो -तुनकते हुए रोमा ने कहा। लड़की वाले को दहेज चाहिए इसकी आड़ में वे मुझमें कुछ न कुछ कमियाँ निकाल कर रिश्ता तोड़ देते हैं पिछले दो साल से यही तो हो रहा है। बेटी ,आज बसंत पंचमी का दिन है और यह दिन बड़ा शुभ होता है। देखना इस बार ईश्वर मेरी जरूर सुन लेंगे और उन्हें तुम पसंद आओगी-पुचकारते हुए पार्वती ने कहा। न चाहते हुए भी अनमने मन से रोमा ने मां की पीली साड़ी निकाली। उसे याद आया पिछली बार भी मां ने उसे यही साड़ी तो पहनाई थी और निहारते हुए कहा था-" इस साड़ी में तुम दुनिया की सबसे सुंदर लड़कीलगती हो"।अब उन्हें कौन समझाए कि हर मां को अपने बच्चे सबसे सुंदर ही दिखते हैं।खैर, रोमा तैयार हो गई। पार्वती ने भी तैयारी कर ली उनके स्वागत की। ठीक पाँच बजे वे लोग आ गए। पर्वती का दिल जोरो सेधड़कने लगा। उसने मन ही मन रिश्ता पक्का हो जाने की न जाने कितनी मन्नतें माँग ली।
मनोज बहुत ही आकर्षक और स्मार्ट लड़का था। उसके माता-पिता ने बताया कि मनोज अब उनकी इकलौती संतान है। दो साल पहले उनकी बेटी का एक सड़क हादसे में निधन हो गया। अब उनका एकमात्र सहारा मनोज ही है। बातों में उन्होंने कहा- "हमें तो बस एक अच्छी बहू चाहिए जो घर की जिम्मेदारियाँ संभाल सके"। पार्वती ने डरते- डरते लेन-देन की बात छेड़ दी। उन्होंने बड़े ही सहजता से कहा- "बहन जी मेरे घर में ईश्वर की कृपा से सब कुछ है बस नहीं है तो एक बहू जिसे हम लेने आए हैं"। पार्वती की तो ख़ुशी का ठिकाना न रहा अपने पति की तरफ देखते हुए आंखों ही आंखों से खुशी का इजहार किया। किसी फिल्मी सीन की तरह ही रोमा चाय की ट्रे लेकर आई। जैसे ही उसकी नजर मनोज पर गई तो वह चौक कर बोल पड़ी -"अरे तुम"! तो क्या तुम दोनों एक दूसरे को जानते हो?- मनोज के पिता ने पूछा।
इस बार मनोज बोल पड़ा -"हाँ, हम दोनों एक दूसरे को जानते हैं। हम एक ही कॉलेज में पढ़ते थे। मुझे रोमा बहुत पसंद थी। मैंने फाइनल ईयर में उससे अपने प्यार का इजहार भी किया था पर तब उसने इनकार कर दिया था जिससे मेरे मन को ठेस पहुंची थी"। पार्वती बीच में बोल पड़ी -"पर इनकार करने की वजह तुम ने नहीं पूछी"? तब मैं बहुत दुबला पतला था और स्मार्ट तो बिलकुल नहीं दिखता था। मेरे घर की आर्थिक हालत भी अच्छी नहीं थी ये बात शायद रोमा को मालूम थी इसलिए इसने इनकार कर दिया था पर मैंने इस इनकार को इकरार में बदलने की ठान ली थी। मैंने मन में लगे उस ठेस को अपना जुनून बना लिया। खूब मेहनत की और कॉलेज में टॉप किया। पढ़ाई के बाद मेरी अच्छी नौकरी लग गई जिससे घर की हालत भी अच्छी हो गई। मैंने जीम भी ज्वाइन कर लिया था जिसका नतीजा आज आपके सामने है ,पर हां एक बात मैंने ठान ली थी कि जब भी शादी करूँगा तो मेरी जीवनसंगिनी रोमा ही बनेगी- आवेश में कहते-कहते मनोज थोड़ा शर्मिंदा हो गया। मनोज के माता-पिता ने रोमा को गले लगाते हुए उसके हाथ में शगुन के पैसे रख दिए। रोमा कॉलेज के समय की उस नादानी को याद कर झेंप गयी।उसने मनोज की तरफ देख कर इशारे से माफी मांगी। मनोज ने मुस्कुराते हुए उसे माफ किया और चाय का कप उठा चाय पीने लगा।