Saroj Verma

Romance

4.5  

Saroj Verma

Romance

तृप्ति--भाग(५)

तृप्ति--भाग(५)

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इधर गौरीशंकर के निवास स्थान पर___

गौरीशंकर और श्याम के मध्य हुईं बातें सौभाग्यवती ने सुन लीं थीं,रात्रि के भोजन के पश्चात सौभाग्यवती ने गौरीशंकर से कहा____

"स्वामी! आपने कमल के लिए किवाड़ क्यों नहीं खोले?आपकी मनोदशा से मैं भलीभाँति परिचित हूँ,आपका प्रेम आपको पुकार रहा है और आप उसे अनदेखा,अनसुना कर रहे हैं,आपके हृदय में जो कमलनयनी के लिए अपार प्रेम है,वो मुझसे छुपा नहीं है,मुझे ये भी ज्ञात है कि कमलनयनी ने आपके प्रेम में वशीभूत होकर ही इस घर में आना प्रारम्भ किया था,क्योंकि कमलनयनी की आँखों में जो प्रेम आपके लिए दिखता है वो पवित्र और शुद्ध है,आपने उसके संग ऐसा व्यवहार क्यों किया?ये देखकर मेरे हृदय को अत्यधिक पीड़ा पहुँची है स्वामी!"

"इस समय कुछ ना पूछो,सुभागी!मैं कुछ भी कहने में असमर्थ हूँ," गौरीशंकर बोले।।

"परन्तु,क्यों स्वामी!आप अपने प्रेम को स्वीकार क्यों नहीं कर पा रहे हैं,मुझे इस बात से ना तो कोई पीड़ा है और ना ही कोई आपत्ति,"सौभाग्यवती बोली।।

"नहीं ,सुभागी!इन सब निरर्थक बातों के लिए मेरे पास समय नहीं है और ना ही तुम्हारे प्रश्नों का मेरे पास कोई उत्तर है,मेरे पास बहुत से कर्तव्य हैं जो अभी निभाने शेष हैं,यदि मैने कमलनयनी का प्रेम स्वीकार कर लिया और कर्तव्यों का पालन नहीं किया तो समाज मेरा परिहास करेगा,इतना सरल नहीं है सबकुछ,जैसा कि तुम समझ रही हो,मैं अभी कमलनयनी का प्रेम स्वीकार नहीं कर सकता,"गौरीशंकर बोला।।

"अच्छा तो आप अपना हाथ मेरे सिर पर रखकर वचन दीजिए कि जब आप अपने कर्तव्यों से मुक्त हो जाएंगे तो तब आप कमलनयनी को अवश्य अपना बनाऐगें",सौभाग्यवती बोली।।

सौभाग्यवती के मुँह से ऐसी बातें सुनकर वो सौभाग्यवती से लिपटकर फूट फूटकर नन्हें बालकों की भाँति रोने लगा और उसने सौभाग्यवती से कहा___

"सुभागी! आज मैनें अपनी आत्मा को अत्यधिक कष्ट दिया है,आज जो मैनें कमल के संग व्यवहार किया है उसके लिए ईश्वर मुझे कभी क्षमा नहीं करेगा,तुम मेरी सच्ची मित्र हो इसलिए तुमने मेरे हृदय की बात समझ ली और मैं ये तुम्हारे समक्ष स्वीकार करता हूँ कि मैं कमलनयनी से प्रेम करता हूँ ,

परन्तु माँ,देवव्रत और तुम्हारा, मेरे जीवन में कमलनयनी से भी उच्च स्थान है,मेरे संस्कार मुझे इस प्रेम को स्वीकार करने से रोक रहे हैं,मैं विवश हूँ,मुझे क्षमा करो,जिस दिन मेरे कर्तव्य पूर्ण हो जाएंगे,उस दिन मैं स्वयं कमलनयनी को अपने हृदय से लगाकर ,अपने जीवन में उचित स्थान दूँगा।"

इसके उपरांत कमलनयनी,श्याम और मयूरी उस राज्य को त्याग कर कहीं और चले गए और गौरीशंकर उसी राज्य में रह गया!

कई वर्षों के पश्चात् किसी गाँव के बाहर बहुत दूर स्थित एक छोटी सी पहाड़ी के निकट बरगद के वृक्ष के तले एक छोटा सा मन्दिर है,मन्दिर के बगल में एक छोटी सी कुटिया बनी है,निकट ही कुआँ भी स्थित है,उसी पहाड़ी से उतरकर नीचे की ओर एक कच्चा मार्ग है,उस मार्ग से चलकर एक आठ दस वर्ष की बालिका उस कुटिया की ओर चली जा रही है,उस कुटिया से एकतारे के संग किसी जोगन स्त्री के मधुर भजन की ध्वनि सुनाई दे रही है।।वो बालिका उस रास्ते से होती हुई ,पहाडी़ पर चढ़कर जाती है,जब बालिका कुटिया के भीतर प्रवेश करती है तो ध्वनि बंद हो जाती है।।और वो बालिका कहती है___

"अरे,बड़ी माँ!आपने भजन क्यों बंद कर दिया?"उस बालिका ने जोगन से पूछा।।

" मुझे ज्ञात हो गया था कि मेरी कादम्बरी बिटिया आ गई है,"जोगन बोली।।

" परन्तु ,आप तो नेत्रहीन हो ,आपको कैसे ज्ञात हुआ कि मैं कादम्बरी हूँ," बालिका ने पूछा।।

"मेरे पास मन की आँखें हैं जो सबकुछ देख लेंतीं हैं और तू गाँव से इतनी दूर मुझसे मिलने पुनः चली आई,कितनी बार मैने मयूरी से मना किया है कि कादम्बरी को अकेली यहाँ ना भेजा करे,परन्तु मेरी बात ना तो श्याम को समझ आती है और ना ही मयूरी को,बालिका को अकेले भेज दिया,मार्ग में वन्यजीवों का कितना भय है,बालिका के संग कुछ हो जाए तो,"जोगन क्रोधित होकर बोली।।

"परन्तु, बड़ी माँ! आज माँ ने खीर-पूरी बनाई थी ,मैनें ही हठ की उनसे कि मैं आपके लिए ले जाऊँगी,मैं आज आपके संग भोजन करना चाहती थी,इसमें ना तो बाबा का दोष है और ना ही माँ का,परन्तु आप तो इतना क्रोधित हो रहीं हैं,"कादम्बरी बोली।।

"ना !मेरी प्रिय बेटी! मैं क्रोधित नहीं हो रही हूँ,तू यहाँ गाँव से अकेले आ जाती है ना! मार्ग में वन्यजीवों का अत्यधिक भय है इसलिए",जोगन बोली।।

"अच्छा,ठीक है बड़ी माँ,अब इस बात का ध्यान रखूँगी,"कादम्बरी बोली।।

"मेरी अच्छी बेटी! अच्छा अब चल कुएँ पर चलकर हाथ मुँह धो लेते हैं,"इसके उपरांत भोजन करते हैं,जोगन बोली।।

"ठीक है बड़ी माँ!"कादम्बरी बोली।।

और दोनों कुएँ पर गईं,कुएं से जल निकालकर दोनों ने हाथ मुँह धोएँ और भीतर आकर भोजन करने बैंठ गईं,कादम्बरी अत्यधिक वाचाल प्रवृत्ति की है,उसने अपनी बड़ी माँ से पुनः वार्तालाप प्रारम्भ कर दिया और कई भाँति के प्रश्न पूछने प्रारम्भ कर दिए,वो बोली____

"कितना अच्छा भजन गातीं हैं आप,बड़ी माँ!" मुझे सिखाएंगी।।

"हाँ !सिखाऊँगी, क्यों नहीं सिखाऊँगी?" अपनी प्यारी बेटी को ,जोगन बोली।।

"आपको ज्ञात है बड़ी माँ! मयूरी माँ कह रही थी कि पहले आप नृत्य किया करतीं थीं,जब आपकी आँखें ठीक थीं,उन्होंने ये भी बताया कि आप लोंग पहले किसी महल में रहते थें,तब माँ और बाबा का विवाह नहीं हुआ था,माँ ये भी कहती थी कि अधिक रोने से ही आपकी आँखों की ज्योति चली गई है,पहले सब आपको कमलनयनी के नाम से जानते थे ,अब हर कोई आपको जोगन कहता है,"कादम्बरी बोली।।

"अच्छा,पहले शाँत मन से भोजन कर लो ,तब भोजन करने के उपरांत वार्तालाप कर लेना,"जोगन बोली।

"ठीक है बड़ी माँ! जैसा आप उचित समझें,"कादम्बरी बोली।।

"परन्तु,अब तू अकेली घर कैसे जाएगी,"जोगन ने पूछा।।

"बड़ी माँ! आप बिल्कुल भी चिन्ता ना करें,मैं आज रात्रि आपके संग ही रूकूँगी,माँ-बाबा कह रहे थे कि कल एकादशी है तो वे दोनों भी मन्दिर आएंगे,तब मुझे साथ में ले जाएंगें,इसलिए तो माँ ने इतना सारा भोजन बाँध दिया है,"कादम्बरी बोली।।

इसी तरह समय बीतता रहा,और आठ वर्ष ब्यतीत हो गए,अब कादम्बरी अठारह की हो चुकी थी।।



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