Priyanka Gupta

Drama Inspirational Others

4.1  

Priyanka Gupta

Drama Inspirational Others

तपस्या -6

तपस्या -6

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निर्मला के दोनों देवरों की शादी एक -एक करके हो गयी थी। लेकिन दोनों देवर शादी के बाद ही अलग हो गए थे। किसी भी पारिवारिक समारोह में दोनों देवर किसी तरह की आर्थिक मदद नहीं करते थे। निर्मला की बड़ी ननदों के घर पर किसी भी प्रकार के आयोजन होने पर निर्मला के पति ही आर्थिक खर्चा वहन करते थे। देवरों से कभी कुछ माँगो तो उनका यही कहना होता था कि, "हमारा तो खुद का खर्चा ही बड़ी मुश्किल से चलता है। भाईसाहब की कमाई ज्यादा है, उन्हीं से लो। "


इसी बीच निर्मला की दूसरी बेटी भी हो गयी थी। दूसरी बेटी के जन्म से घर में शोक सा छा गया था। २० दिन के बाद ही निर्मला को घर के कामकाज में लगा दिया गया था। यह उसकी बेटी को जन्म देने की सजा थी। तब उन लोगों को कौन बताता कि पुरुष का गुण सूत्र तय करता है कि, "बेटा होगा या बेटी। "


निर्मला एक बात अच्छे से जानती थी कि, "उसकी बेटियों की ज़िन्दगी उसकी जैसी नहीं होगी। वह उन्हें खूब पढ़ायेगी और लिखायेगी ताकि वे दोनों अपने पैरों पर खड़े हो सकें। "धीरे -धीरे निर्मला के पति भी यह स्वीकारने लगे।


चाची ससुर फिर से घर पर आकर बैठ गए थे। उनकी बेटी ४ बार 10th में अनुत्तीर्ण हो गयी थी। अब लड़की को घर में कितने दिन बैठाये तो अब उसकी शादी की बात होने लगी थी। निर्मला और उनके पति को ही सारी जिम्मेदारी उठानी थी।


निर्मला की यह चचेरी ननद पूरी -पूरी रात लाइट जलाकर पढ़ाई करती थी, लेकिन फिर भी अनुत्तीर्ण हो जाती थी। वैसे भी घर के कामकाज यह कम ही करती थी, लेकिन परीक्षा के दिनों में तो पत्ता तक नहीं हिलाती थी। तेज़ इतनी थी कि सबसे लास्ट में अच्छे से घी डालकर अपनी मोयन वाली रोटी बनाती थी। अपना एक निजी संदूक रखती थी और उस पर हमेशा ताला लगाकर रखती थी।


निर्मला की एक दूर की बुआ की बेटी थी, उनका लड़का शादी लायक था। चचेरी ननद की बात चलाई गयी और लड़का, लड़की को देखने के लिए आया। निर्मला के पति और ससुराल वालों ने लड़के वालों को झूठ बोला था कि, "लड़की १०वीं पास है। "


निर्मला के भांजे यानि की लड़के को संदेह हो गया कि लड़की ने १०वीं पास नहीं की है। उसने निर्मला की चचेरी ननद से एक किताब पढ़वा ली और झूठ पकड़ा गया। उसने लड़की की 10 वीं की अंकतालिका माँग ली। निर्मला के ससुराल वालों न उन बेचारों को बिना कुछ खिलाये -पिलाये यह कहकर भेज दिया कि, "हमें तो अपनी बेटी की शादी तुमसे करनी ही नहीं।"


शादी -विवाह करवाने के लिए झूठ कल भी बोला जाता था और आज भी बोला जाता है। लोग यह क्यों नहीं समझते कि किसी भी रिश्ते की शुरुआत झूठ की बुनियाद पर नहीं होनी चाहिए। लेकिन मजे की बात है कि झूठ की बुनियाद पर होने वाली शादियाँ भी हमारे देश में खूब निभ जाती है।


निर्मला की खुद की बड़ी भाभी की शादी भी तो ऐसे ही हुई थी। निर्मला क अम्मा चाय की बड़ी शौक़ीन थी, वह आज भी हैं। एक लोटा भरकर चाय पीती थी और उस लोटे में कुछ आधा लीटर से थोड़ी कम ही चाय आती थी। इसी चाय प्रेम के कारण अम्मा ने बड़े भाईसाहब की शादी बड़ी भाभी से करा दी थी। शादी से पहले उन्होंने या घर में किसी ने भी बड़ी भाभी को नहीं देखा था।


बड़ी भाभी की आँखो में, कहीं पर निगाह है, कहीं पर निशाना वाला डिफेक्ट था। आज हम जानते हैं कि यह एक बीमारी है और जिसका इलाज भी संभव है। लेकिन उस जमाने में इसे आँखें ढेरना कहा जाता था और इसे बड़ा ही अशुभ माना जाता था।


बड़ी भाभी निर्मला की चाची के भाई की बेटी थी। निर्मला की यह चाची बाल विधवा थी, उन्हें लगता था कि उनकी भतीजी अगर इस घर की बहू बन जायेगी तो उनका बुढ़ापा चैन से कट जाएगा। लेकिन बेचारी चाची भी तो भाभी के साथ कहाँ चैन से रह पायी थी। बुआ भतीजी में कभी बनी ही नहीं। बड़ी भाभी ने एक भी दिन न तो निर्मला की अम्मा को और न ही चाची को रोटी बनाकर दी।


चाची ने मिशन 'भतीजी को घर की बहू बनाना' शुरू किया। चाची इस कार्य में बड़ी ही पारंगत थी, उन्होंने और भी कई रिश्ते करवाए थे। वह लगातार अनुनय करती रहती थी, लड़के या लड़की की तारीफों के इतने पुल बांधती थी कि सामने वाला चाहकर भी इनकार नहीं कर पाता था।


अब चाची रोज़ सुबह उठकर चाय बनाती वो भी चूल्हे पर और अम्मा को आवाज़ लगाती, " अरे खाटू वाली भाभीजी आ जाओ, चाय पी लो। " पहले ज्यादातर पीहर के गांव या शहर के नाम पर ही एक दूसरे को बुलाते थे। अँधा क्या चाहे दो आँखें, अम्मा बहुत ही खुश हो जाती, सुबह -सुबह उन्हें लोटा भरकर चाय जो मिल जाती।


दोनों देवरानी -जेठानी बैठकर चाय पीती और चाची अपनी भतीजी की तारीफ़ में कशीदे काढ़ती जाती, "अरे खाटू वाली भाभी जी, ऐसी लड़की कहीं न मिलेगी। घर सम्हालने में छोरी का कोई जवाब नहीं। इतनी सेवाभावी है, आपको तो तिनका भी उठाने नहीं देगी। सुन्दर तो ऐसी है कि नज़र ही नहीं हटती। "


चाची और अम्मा की रोज़ चाय पर चर्चा चलती रहती। अम्मा रोज़ बड़ी भाभी की तारीफ सुनती और एक दिन चाची का मिशन कामयाब हो ही गया। अम्मा ने कहा, "ठीक है, चौमू वाली, जब इतनी बढ़िया लड़की है तो बात चला और एक दिन लड़की को देखने चलते हैं। "


चाची ने कहा, "अरे भाभी जी, लड़की देखने में समय और पैसे क्या बर्बाद करने। अपने घर की ही तो बच्ची है। आपको मेरे ऊपर विश्वास नहीं है क्या ?वैसे भी आपको या मुझे शादी से पहले कोई देखने थोड़े न गया था .ये तो आजकल के चोंचले हो गए हैं .लाज -शर्म तो कुछ बची नहीं आजकल के बच्चों में मुझे तो ये देखना दिखाना बिलकुल बढ़िया नहीं लगता .फिर भी आप जोर दोगे तो ......"


अम्मा पर चाची की रोज़ -रोज़ की चाय और बातों का ऐसा जादू चल गया था कि अम्मा मान गयी और लड़की को देखे बिना ही शादी तय हो गयी। जब तक शादी हो न गयी तब तक चाची का चाय का कार्यक्रम जारी रहा।


शादी के बाद जब तक अम्मा और चाची जिन्दा रही, जब भी एक दूसरे से मिलती तो अम्मा कहती कि, "चौमू वाली, तूने तो मुझे चाय पिला -पिला कर के ठग लियो। "और चाची कहती, "खाटू वाली भाभी जी ,तुमसे ज्यादा तो मैं ठगी गयी हूँ। तुम भी ताना दे देवो हो और भतीजी तो मुझे बिलकुल ही पसंद न करे है। मैं तो समझी थी कि भतीजी बहू बन जावेगी तो बुढ़ापा चैन से कट जावेगो। लेकिन अब तो तुमसे और तुम्हारी दूसरी बहुओं से ही उम्मीद है। "

निर्मला के होंठों पर अपनी चाची की बात याद करके मुस्कुराहट की हल्की सी रेखा खींच गयी थी। लोग यूँ ही कहते हैं कि जोड़ियाँ स्वर्ग में बनती हैं, जोड़ियाँ तो निर्मला की चाची जैसे लोग बनाते हैं। 


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