Priyanka Gupta

Drama Inspirational

4.5  

Priyanka Gupta

Drama Inspirational

तपस्या -11

तपस्या -11

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निर्मला अपने तीनों बच्चों ;दो बेटियों और बेटे के साथ बड़े शहर यानि कि राज्य की राजधानी में शिफ्ट हो गयी थी। निर्मला के पति का सरकारी नौकरी के कारण एक शहर से दूसरे शहर में स्थानांतरण होता रहता था। जब बच्चे छोटे थे ;तब निर्मला भी पति के साथ एक जगह से दूसरी जगह जाती थी। नयी जगह पर किराए का घर ढूँढो,सब कुछ सेट करो। नया सर्किल बनाओ ;लोगों से मेल -जोल बढ़ाओ और एक दिन फिर फुर्र से उड़ जाओ।

अब बच्चियाँ बड़ी कक्षाओं में आ गयी थी ;अच्छे से पढ़ -लिख सकें ;इसीलिए निर्मला एक ही जगह पर रहना चाहती थी।

निर्मला के सास -ससुर गांव में निर्मला के साथ ही रहते थे ;लेकिन जब निर्मला बच्चों की पढ़ाई के कारण नए शहर में शिफ्ट हो रही थी ;तब सास -ससुर को चाची ससुर ने भड़का दिया और उन्होंने अपने बड़े बेटे और निर्मला के साथ जाने से दो टूक शब्दों में इंकार कर दिया था।

"मम्मी जी -बाऊजी अगर कोई हारी -बिमारी हुई तो आपको कौन देखेगा ?बच्चों के ख़ातिर जाना पड़ रहा है। अगर हमारे साथ नहीं जाना तो देवर जी के पास जाकर रहो। ऐसे अकेले गांव में रहोगे तो पूरे गांव में हमारी बदनामी होगी। ",निर्मला ने कहा।

लेकिन निर्मला के सास -ससुर टस से मस नहीं हुए। निर्मला और उसके पति दोनों ने खूब हाथ -पैर जोड़े ;लेकिन वह नहीं माने। 

"आप जिन लोगों की बातों में आकर आज चलने से मना का रहे हो ;वो लोग आपको निहाल नहीं करेंगे। अपना बुढ़ापा खराब मत करो भाभी और बाऊ जी। ",निर्मला के पति ने कहा।

निर्मला के पति अपनी माँ को भाभी कहकर बुलाते थे। अपने चाचा को देख -सुनकर उन्होंने भाभी बोलना शुरू किया होगा और फिर बाद में किसी ने उन्हें टोका नहीं और यह आदत ही बन गयी थी। 

दोनों बच्चियों को सरकारी स्कूल में प्रवेश दिला दिया था। बड़ी बेटी स्नेहा के पास साइंस -मैथ्स था और छोटी बेटी नेहा अभी 10th में थी।दोनों बच्चियों को कोचिंग में प्रवेश दिलवा दिया था। बेटा ऋषभ 5th क्लास में था। स्नेहा और नेहा ने ज़िद करके भाई ऋषभ को इंग्लिश मीडियम स्कूल में डलवा दिया था।

"मम्मी,अब कम्पटीशन लगातार बढ़ रहा है। ऋषभ को इंग्लिश मीडियम में ही डालेंगे। ",बड़ी बेटी स्नेहा ने कह दिया था। स्नेहा अब काफी समझदार हो चली थी।

निर्मला और उनके पति को भी स्नेहा की बात जँच गयी थी। वैसे भी घर -परिवार की बड़ी जिम्मेदारियों से अब निर्मला और उनके पति मुक्त हो गए थे। सभी देवर -ननदों की शादी हो चुकी थी और अब शहर में रहने के लिए बिना एक पैसे का कर्ज लिए सिर पर छत हो गयी थी।

निर्मला और उनके पति ने घर के निर्माण से पहले ही यह निर्णय कर लिया था कि,"घर की एक ईंट भी उधार के पैसे से नहीं लगायेंगे। जैसे ही पास के पैसे ख़त्म होंगे ;वैसे ही घर का काम रोक देंगे। "

निर्मला और उनके पति जानते थे कि,"अब बच्चियों के खर्चे बढ़ जाएंगे। उच्च शिक्षा के लिए ज्यादा पैसों की जरूरत होगी। "

निर्मला ने घर खर्च में मदद के लिए पेइंग गेस्ट रखने का निश्चय किया। उसने आसपास कई महिलाओं को पेइंग गेस्ट रखते हुए देखा था।

 निर्मला के पति ने इसका विरोध किया और निर्मला द्वारा ज्यादा कहे जाने पर ;गुस्से में उसने निर्मला पर हाथ उठा दिया था। स्नेहा और नेहा बड़ी हो गयी थी ;इसीलिए निर्मला ने आज अपने पति को दो टूक कह दिया कि,"आज तो हाथ उठा दिया ;लेकिन आज के बाद नहीं। "निर्मला ने पेइंग गेस्ट रखने का विचार त्याग दिया था।

6महीने बाद निर्मला की सास सीढ़ियों से गिर गयी थी। देखने -दिखाने वाला कोई नहीं था ;निर्मला के पति छुट्टी लेकर आये और किराए की गाड़ी लेकर उन्हें गांव लेने गए। दोनों सास -ससुर अब अपने बेटे के साथ आ गए थे। छोटे ही नहीं,बड़े भी कई बार बड़ी गल्तियां करते हैं।

निर्मला की सासू माँ की हाथ की हड्डी टूट गयी थी। उनके हाथ में प्लास्टर चढ़ गया था। उधर एक दिन निर्मला के ससुर जी को हार्ट अटैक आया ;उन्हें तुरंत हॉस्पिटल ले जाना पड़ा और उनका ऑपरेशन हुआ। निर्मला के ऊपर सारी जिम्मेदारी आ ा गयी थी।

निर्मला की ननदें मेहमान की तरह एक -एक दिन आकर अपने मम्मी -पापा को देखकर चली गयी थी।सहयोग करना तो दूर की बात निर्मला को 2 बातें सुना और गयी थी।

सबसे बड़ी ननद बोली कि,"भाभी को दिन में कम से कम दो बार दूध देना। बाऊजी को एप्पल तो मँगाकर दे दिया करो। "

दूसरी वाली बोली कि,"निर्मला,बाऊजी के पैरों में अच्छे से तेल लगाकर मालिश किया करो। "

सबसे छोटी भी कहाँ पीछे रहने वाली थी ;उसने कहा कि,"निर्मला भाभी बाऊजी की रोटी पर अच्छे से घी लगाया करो ;बुजुर्ग आदमी को मुलायम रोटी चाहिए होती है। "

"दीदी,जो हम खाते हैं ;वही सब कुछ मम्मीजी और बाऊजी को खिलाते हैं। बाऊजी दिल के मरीज यहीं तो घी तो कैसे खिलाऊँ। ",निर्मला इतना सा कहकर अपनी रसोई में चली गयी थी। 

निर्मला खाना बनाती जा रही थी और उसके आँसू झरते जा रहे थे। तन,मन और धन से सबके लिए किया और करती ही जा रही है ;फिर भी उसे जरा भी यश नहीं ;बल्कि सब उसे ही ज्ञान देने चले आते हैं। बीच वाली दीदी की तो आर्थिक स्थिति अच्छी ही है ;खुद ही बाऊजी क लिए आज कुछ फल ले आती। ऊपर वाला सब देखता है। निर्मला के आँसू बदस्तूर जारी थे। 

देवर और देवरानी का तो वैसे ही कोई सहारा नहीं था। निर्मला और निर्मला के पति को अपने परिवार से ने आर्थिक सहायता मिली और न ही भावनात्मक सहयोग।

अक्सर ऐसा ही देखने में आता है ;संयुक्त परिवार में जो ज्यादा जिम्मेदारी उठाता है है;उसी पर जिम्मेदारियाँ डाल दी जाती हैं। निर्मला की तपस्या जारी थी ;उसे लगता था कि उसके अच्छे कर्मों का फल उसके बच्चों को जरूर मिलेगा।

निर्मला के सास -ससुर ठीक होने लग गए थे। लेकिन वृद्धावस्था में कुछ न कुछ तो चलता ही रहता है। निर्मला उनकी अच्छे से देखभाल कर रही थी। निर्मला के पति भी अपनी नौकरी पर लौट गए थे।

निर्मला की एक पड़ोसन अपने पति के पास शिफ्ट हो रही थी ;क्यूंकि उनके पति मधुमेह से पीड़ित थे;अतः उन्हें खाने-पीने की बड़ी दिक्कत थी।

उन्होंने निर्मला से निवेदन किया कि,"आप मेरे दोनों बेटों को 2 समय खाना खिला देना। आप जो अपने लिए बनाओ ;वही उन्हें ख़िला देना। आप मान जाओगे तो मैं बेफिक्र होकर चली जाऊँगी। जितने पैसे टिफ़िन वाले को देते,उतने ही आपको दे देंगे। लेकिन आपके हाथ का खाना,घर का खाना तो माँ का खाना होगा।"

निर्मला ने उन्हें हाँ कह दिया था और पहले 2 टिफ़िन के साथ निर्मला ने अपना टिफ़िन सेंटर शुरू कर दिया।निर्मला ने अपने पति को फ़ोन पर बता दिया था ; वहाँ नहीं होने और निर्मला के बदले रूप के कारण निर्मला के पति ने कुछ नहीं कहा था।

इस टिफ़िन सेंटर से होने वाली आय ने घर -खर्च चलाने में बड़ा सहयोग दिया। निर्मला की बड़ी बेटी स्नेहा बोर्नविटा डालकर ही दूध पीती थी। निर्मला हमेशा राशन में एक बॉर्नविटा का डिब्बा भी मँगवाती थी। वह कैसे न कैसे क़तर -ब्योंत करके एक डिब्बा बोर्नविटा तो मँगवा ही लेती थी।

निर्मला ने अपनी छोटी बेटी को साइंस बायो दिलाया ;वह उसे डॉक्टर बनाने का निर्णय बहुत पहले ही ले चुकी थी। निर्मला की बड़ी बेटी ने 12th के साथ ही राज्य द्वारा आयोजित की जाने वाली इंजीनियरिंग प्रवेश परीक्षा पास कर ली और इंजीनियरिंग कॉलेज में एडमिशन ले लिए था। तब तक कंबाइंड एग्जाम शुरू नहीं हुए थे। सभी राज्यों की अलग -अलग प्रवेश परीक्षा होती थी। कुछ बच्चे तो हर राज्य के लिए फॉर्म भरते थे। निर्मला और उनके पति है राज्य में बेटी को ले जाकर एग्जाम नहीं दिला सकते थे ;इसीलिए स्नेहा ने IIT-JEE और अपने राज्य की प्रवेश परीक्षा का फॉर्म भरा था। बिना तैयारी के तो IIT-JEE में चयन होने का सवाल ही नहीं उठता था।

नेहा ने मेडिकल प्रवेश परीक्षा की तैयारी शुरू कर दी थी। दो बार प्रयास करने के बाद अंतिम रूप से उसका चयन हो गया था। बेटियों की उच्च शिक्षा के लिए फीस,किताबें आदि के लिए निर्मला के टिफ़िन सेंटर से बड़ी मदद हुई थी। 

"अरे भाभी, यह बॉर्नविटा कौन पीता है?",एक दिन घर पर आयी हुई निर्मला की ननद ने उनसे कहा था। 

"अरे दीदी, स्नेहा पीती है। बिना बॉर्नविटा के वह दूध नहीं पीती, इसलिए उसके लिए लाकर रखती हूँ। ", निर्मला ने अपनी ननद से कहा।

"भाभी, स्नेहा 20 साल की हो गयी है। कुछ साल बाद आप उसकी शादी करोगे, ससुराल में कौन बॉर्नविटा पिलायेगा ? क्यों बेटी की आदतें बिगाड़ रही हो ? बॉर्नविटा लाना बंद कर दो, मेरी बात मानो तो। अपने अनुभव से कह रही हूँ। आपका अनुभव भी कौनसा भिन्न होगा ?", ननद ने कहा। 

"आप कह तो सही रही हो दीदी। ", निर्मला ने जवाब दिया। 

"हाँ भाभी, आपको तो याद ही होगा कि मुझे बूंदी के लड्डू कितने पसंद थे ?यहाँ पर तो कैसे ४-५ लड्डू मैं अकेले ही खा जाती थी। शादी के बाद तो आधा लड्डू भी बड़ा सोच -सोचकर खाती हूँ। कभी डर लगता है, कभी शर्म आती है, कभी सोचती हूँ लड्डू तो बच्चों को पसंद हैं। ", ननद ने कहा। 

"दीदी आपको कम से कम यह याद तो है न कि आपको खाने में क्या पसंद था ?मुझे तो यह याद ही नहीं कि मुझे खाने में क्या पसंद था ? क्यूंकि अब मुझे कुछ नापसंद ही नहीं है। घर में जो कोई भी नहीं खाता, मैं वह सब शौक से खा लेती हूँ। कभी -कभी तो शाम्भवी कहती भी है कि मम्मा आप डस्टबिन हो क्या, जो सब कुछ बचा -खुचा खा लेते हो। ", निर्मला ने अपनी ननद को बताया। 

"तब ही तो भाभी, आपको बोल रही हूँ। बेटी की आदतें मत बिगाड़ो। ससुराल में कैसे रह पाएगी ?", ननद ने कहा। 

"दीदी, मैं नहीं चाहती कि स्नेहा के साथ भी वही हो जो आपके और मेरे साथ हुआ। ", निर्मला ने कहा। 

"क्या मतलब भाभी ? यह तो हर लड़की की कहानी है। सभी के खाने -पीने का ध्यान रखने के कारण ही तो हमें अन्नपूर्णा कहा जाता है। अन्नपूर्णा हैं, इसलिए तो हमें अपनी नहीं दूसरों की इच्छा का ख्याल रखना चाहिए। ", ननद ने कहा। 

"नहीं दीदी, अन्नपूर्णा हैं इसीलिए हमें सबकी इच्छा का ख्याल रखना चाहिए। सबमें, हमें खुद को भी शामिल करना चाहिए। जो गलतियां हमने की, वह गलती मैं स्नेहा को नहीं करने दूँगी। इसीलिएस्नेहा के लिए बॉर्नविटा लाना बंद नहीं करूंगी, बल्कि उसे इस काबिल बनाऊंगी कि वह जब तक बॉर्नविटा पीना चाहे, बॉर्नविटा पी सके। ",निर्मला ने कहा।

"आप सही कह रही हो भाभी। ", तब ननद ने कहा था।

आज सही में स्नेहा अपनी ही नहीं,अपनी मम्मी की ख़्वाहिश भी पूरी कर सकती है। अपनी साड़ी की तरफ देखत हुए निर्मला मुस्कुरा दी थी। 

अच्छे से सेटल होने के बाद बच्चे निर्मला को टिफ़िन सेण्टर के लिए हेल्पर रखने के लिए फ़ोर्स कर रहे थे ;वह हेल्पर नहीं रखना चाहती थी ;इसीलिए उसने अपना टिफ़िन सेंटर बंद ही कर दिया था। अब निर्मला को पैसे की ज्यादा परेशानी नहीं थी ;अपनी अधूरी ख़्वाहिशों को वक़्त देने के लिए उसे टिफ़िन सेंटर बंद करना बेहतर ही लगा था ;वह अब अपने संगीत के शौक को पूरा करना चाहती थी। 

निर्मला ने अभी तक भी घेरलू सहायिका रखना शुरू नहीं किया था। एक तो उसे किसी का काम पसंद नहीं आता था और दूसरा उसका मानना था कि जब तक हाथ पैर चलते हैं ;तब तक दूसरे पर क्यों निर्भर रहा जाए। बच्चे और रमेश सभी कहते रहते हैं कि एक घेरलू सहायिका रख लो ;लेकिन निर्मला नहीं मानती है। आसपास के सभी पड़ौसी निर्मला के मेहनती स्वभाव के कारण उसकी प्रशंसा करते हैं।


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