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amar singh

Abstract

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तिलिस्म

तिलिस्म

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जीवन में अनेकों प्रश्न हैं जिनके लिए मनुष्य अपना पूरा जीवन लगा देता है जो एक सुखद जीवन के लिए आवश्यक भी हैं। उनमें से एक अत्यन्त ही महत्वपूर्ण प्रश्न है जो स्वयं के अस्तित्व से सम्बन्धित हैं। कहने को तो अनेकों विचारकों ने इस प्रश्न के अनेकों उत्तर अपने अनुभवों द्वारा प्रस्तुत किये हैं किन्तु उन सबके पश्चात भी जो मानव मन अत्यन्त ही उलझनों और पीड़ाओं से घिरा रहता है, मन की व्याकुलता और बिना किसी कारण के मन की अत्यन्त गहराईयों में रहने वाली न समझ आने वाली अकारण पीड़ा इस बात का स्पष्ट संकेत है कि बाहर से मिलने वाले जीवन के अस्तित्व से संबंधित उत्तर चाहे कितने भी तार्किक क्यों न हों वह मानव जीवन के लिए व्यर्थ ही सिद्ध होते हैं। जीवन क्या है? क्यो हैं? जीवन का उद्भव किसने और क्यों किया है? मृत्यु क्या है? मृत्यु के बाद क्या है? ऐसे अनेकों प्रश्न जिनके उत्तर बाहर से कभी प्राप्त नहीं हो सकते। यह तो मात्र अनुभव का विषय है, ज्ञान का विषय है।


वास्तव में जीवन-मृत्यु और उसके बीच घटने वाला वह समय जिसे हम जीवन कहते हैं वह एक तिलिस्म है। तिलिस्म क्या है? जो किसी विशेष प्रकार से बांधा गया हो, तिलिस्म है। जिसके भीतर एक बार प्रवेश कर लेने के पश्चात, व्यक्ति परत दर परत जितने गहरे में भी हो, या फिर चाहे किसी भी स्थान पर हो, बाहर निकलने का कभी संकल्प उठता है तो कभी उस तिलिस्मी दुनियां के जादुई प्रभाव से प्रभावित हो, व्यक्ति भूल जाता है कि वह सब वास्तव में सत्य नहीं है, शाश्वत नहीं है। कभी दुखपूर्ण स्थिति होने पर फिर याद आता है कि यह दुनियां तो व्यर्थ है, इससे अवश्य बाहर निकलना चाहिए। कभी ऐसा भी होता है कि बाहर से समस्त सुख होने पर भी मन के भीतर गहरे में एक अकेलापन, एक उदास कर देने वाला दुख व्यक्ति को इस तिलिस्म से बाहर निकलने को प्रेरित करता है। जो वास्तव में शुभ लक्षण है लेकिन अज्ञानतावश इस दुख और उदासी को न समझ पाने के कारण व्यक्ति इसका सही उपयोग नहीं कर पाता। इस स्थिति से बाहर निकलने के लिए अनेकों ऋषियों-मुनियों ने अनेकों उपाय बताये हैं, प्रेममार्ग, भक्तिमार्ग, ज्ञानमार्ग, कर्ममार्ग इत्यादि इत्यादि। किन्तु जैसे जैसे युग का परिवर्तन हो रहा है जैसे कि सर्वविदित है कि वर्तमान समय में कलियुग चल रहा है। इस युग में अनेकों विधियां जो पहले के समय में उपयोगी थी, क्योंकि जीवन रूपी तिलिस्म इतना सुदृढ़ न था, व्यक्ति का मन शान्त, प्रेमपूर्ण और सहयोगी था। ल

ेकिन जैसे-जैसे समय का प्रभाव बढ़ता गया। व्यक्तियों की आयु घटने लगी। लम्बाई घटने लगी, शक्ति का हास होने लगा और ज्ञान क्षीण होने लगा। इसके विपरित वर्तमान में मनुष्य को यह अवश्य लगने लगा कि वह प्राचीन मानवों की अपेक्षा अधिक बुद्धिमान और शक्तिशाली हो गया है और उनके प्रत्येक पहलू में श्रेष्ठ है यह मात्र उसका भ्रम ही है जो उसे किसी द्वारा निर्मित इस अत्यन्त जटिल तिलिस्म से निकलने में और अधिक अक्षमता उत्पन्न कर देता है। समय के प्रभाव में यह तिलिस्म न ही केवल और अधिक जटिल होता चला जा रहा है और अनवरत निर्माण और विघ्वंस की और गति कर रहा है। जैसा की वर्तमान समय के वैज्ञानिकों ने भी सिद्ध कर दिया है कि सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड दो शक्तियों द्वारा नियंत्रित हो रहा है। एक जो सृष्टि को फैला रही है और दूसरी जो उसे दूसरी और खींच रही है। 


मानव मन की समस्त रहस्य एक ऐसे बिन्दु पर सुरक्षित हैं यदि जिन्हें धीरे-धीरे खोलकर उन्हें बाहर आने दिया जाये तो वह अनेकों उन रहस्यों को उद्घाटित कर सकते हैं जिनके द्वारा मानव इस तिलिस्म से बाहर आने लगता है। बाहर आने का अर्थ यह नहीं है कि उक्त व्यक्ति कहीं गायब हो जायेगा या फिर कहीं चला जायेगा। उसे इस बात की जबरदस्त अनुभूतियां होने लगेंगी जो वह अनेकों जन्म जन्मांतरों से इसके मध्य होकर प्राप्त कर चुका है। अधिकतर उसकी स्मृतियों के उन बिन्दुओं को पुनः जाग्रत कर जो वह जी चुका है, महसूस कर चुका है, और अनेकों ऐसे अहसास जिनके बारे में बता पाना संभव नहीं है। यह मात्र प्रयोग में लायी जाने वाली ऐसी विधि है जिसको मात्र प्रयोग करके ही जाना जा सकता है और एक ऐसी अलौकिक दुनियां से जुड़कर जो आपकी अपनी है और जिससे जान लेना प्रत्येक मनुष्य के लिए अत्यन्त ही आवश्यक है, इस जीवन के तिलिस्म से होते हुए बाहर निकल जाने के लिए।


इसे अनुभव करने के कई चरण हैं जिसके लिए आवश्यक है विश्वास और धैर्य की और सबसे महत्वपूर्ण उस भाव की जो आपको आपसे मिलने और स्वयं को जानने के लिए प्रेरित करती है। मात्र स्वयं को जान लेना ही पर्याप्त नहीं, जैसा कि अधिकतर धर्मगुरूओं का कहना है। आत्मसाक्षात्कार तो मात्र प्रथम चरण है। सृष्टि के इस तिलिस्म से परत दर परत बाहर निकलने का एक माध्यम। इसकी उपमा हम एक जलती रोशनी से कर सकते हैं जिसकी सहायता से हम अंधेरों में देख सकते हैं लेकिन उसके लिए उस आंख की आवश्यकता है जो वहां देखने के लिए आवश्यक है। 


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