ईश्वर का कोई धर्म नही
ईश्वर का कोई धर्म नही
भारत एक लोकतांत्रिक देष हैं। जहां पर प्रत्येक व्यक्ति को स्वतन्त्रता पूर्वक अपनी इच्छा द्वारा किसी भी धर्म को अपनाने का अधिकार है, जो कि भारत के संविधान के मुख्य मूल अधिकारों में धार्मिक स्वतन्त्रता का अधिकार आता है। अब प्रष्न यह उठता है कि कोई व्यक्ति अपना धर्म किन कारणों से परिवर्तित करता है? इसके पीछे अनेकों कारण हो सकते हैं। जैसा कि हाल ही में मीडिया द्वारा यह बात सामने आई कि कुछ मुस्लिम परिवारों को जमीन और धन का लालच देकर हिन्दू धर्म स्वीकार करने हेतु प्रेरित किया गया। इस समाचार से अनेकों बुद्धिजीवियों ने अनेकों मत प्रस्तुत किये। कुछ का कहना था कि यह बहुत अच्छा हुआ। मुस्लिम हो चुके हिन्दू परिवारों को पुनः सनातन धर्म में स्थापित करना कोई बुरा नहीं। कुछ के अनुसार लालच देकर इस प्रकार धर्म परिवर्तन करवाना उचित नहीं। इस प्रकार की अनेकों बाते निकल कर सामने आने लगी हैं। लेकिन यदि यथार्थ के धरातल पर रहते हुए इस पर बात करें तो सर्वप्रथम हमें इसकी जड़ों से प्रारम्भ करना होगा कि वास्तव में मनुश्य के जीवन में धर्म की क्या महत्ता है और उसे धर्म की आवष्यकता क्यों है? जैसे-जैसे इस विशय पर गहनतापूर्वक विचार करते चलेंगे, वैसे-वैसे परत-दर-परत यह बात स्पश्ट होने लगेगी कि जिसको हम धर्म समझ रहे हैं, वह वास्तव में कुछ और ही है और जिस धर्म की मनुश्य को वास्तव में प्रारम्भ से अब तक आवष्यकता है, उसका सत्य कुछ अन्य ही प्राप्त होता है।.
जैसा किसी का गुरु/पीर होता है। उसे मानने वाला क्षरधालु भी उसकी भांति बनने लगता है। उदहारण स्वरूप जैसे हम ईसाई की बात करते है। जीसस साक्षात प्रेम की मूरत थे, गरीब, दीन, दुखी का दुख हरना, सबसे प्रेम करना उनका मुख्य कार्य था। आज यदि हम देखते है तो उन्हे मानने वाले भी काफी हद तक समाज के नीचे तबके के लोगो की किसी न किसी तरह मदद कर रहे है, स्कूल, हॉस्पिटल, आवास ओर कई तरह से मदद कर सबमे यह विश्वास जगा रहे है की जब उन्हे मानने वाले ऐसे है तो फिर उनके गुरु या मसीह कैसे होंगे… कुछ लोग इनके कार्यो को देख ईर्ष्या वश यह कहने लगते है की यह धर्मांतरण करवा रहे है। लोगो को लालच दे रहे है। परंतु मुझे ऐसा नहीं लगता, की इस बात को हम कही से भी बुरा कहे। जिस व्यक्ति को कभी किसी समय एक दाना खाने को न था, घर की औरतों के पास पहनने को कपड़ा और सर ढापने के लिए घर न था, उस समय उनकी पुकार सुन जब ईश्वर ने कुछ लोगो को उसका नाम लेते हुए भेजा, जिनहोने सबसे पहले उन लोगो की भूख मिटाई, प्यास मिटाई, कपड़े-घर दिये ओर इस काबिल बनाया की वह भी ईश्वर को याद कर सके, तब उसे आप क्या कहेंगे। धर्मांतरण की साजिश या फिर किसी गरीब की मदद कर ऊपर वाले की राह पर चलना सीखाना। यदि कभी सच जानना हो तो दोस्तो उन गरीब लोगो के चेहरे के भाव देखना जो कितनी मुश्किलों के बाद ईश्वर कृपा से संभाल पाये है.
गरीब का कोई धर्म नहीं होता, वह न हिन्दू होता है, न मुसलमान, न सिख ओर न ही बोध। गरीब तो बस अपनी आवशयकताओ ओर भूख को जानता है। उसका धर्म मात्र रोटी। एक बड़ी ही मशहूर कहावत है:- भूखे पेट भजन न होत। बिलकुल ही सही कहा है। यदि व्यक्ति भूखा प्यासा ठंड से कांप रहा हो ओर आप उसे जाकर सिर्फ अच्छी अच्छी बाते सुनाये की ईश्वर तेरी भूख मिटाएगा, तेरी प्यास भूझेगी, तुझे कपड़े दे गर्मी प्रदान करेगा। परंतु वह व्यक्ति स्वयं समर्थ होते हुए भी उसकी कोई मदद न करे, तो क्या वो गरीब उसकी बात पर यकीन कर सकेगा? नहीं। ऐसा संभव नहीं है।
ऊपर से शायद डर कर वह कह भी दे परंतु भीतर उसकी पुकार वैसी की वैसी ही रहेगी जब तक ईश्वर किसी न किसी माध्यम से उस तक मदद न पहुचाए। क्यूकी ईश्वर कभी भी स्वयं नहीं आते वह सदा अपने बंदो के लिए बंदो की शक्ल मे ही मदद करते है… मैने आज तक कभी ऐसा नहीं सुना की राम को मानने वाला गरीब प्रार्थना करे ओर स्वयं राम धनुष बाण लिए मुकुट धारण कर उसे रोटी देने आए या अल्लाह, जीसस या कोई भी अन्य मसीह स्वयं आए। बहुत पहले एक कहानी पड़ी थी कही:- एक नगर मे बहुत भीषण बाड़ आई, एक आदमी घर की छत पर खड़ा अपने प्रभु को याद करने लगा ओर कहने लगा ‘हे प्रभु आप मेरी रक्षा करे, आप रक्षा करे… इतने मे कही से एक नाव आई, उसने नाव को देखा परंतु उस पर चड़ा नहीं… बाकी के लोग उस पर सवार हो निकाल गए ओर वह इस आस मे फिर प्रभु को याद करने लगा की वह स्वयं उसे बचाने आएंगे। इस तरह 3 बार नाव आई ओर गयी। किन्तु वह व्यक्ति न चड़ा ओर अंत मे बाड़ के कारण डूब कर मर गया। जब मर कर वह ईश्वर के लोक मे पाहुचा, तब ईश्वर से शिकायत करने लगा की आपने मेरी रक्षा नहीं की जबकि आपको मे हृदय से स्मरण कर रहा था। यह सुन प्रभु मुस्कुराए ओर कहा:- मेने तो तेरी रक्षा हेतु 3 बार नाव भेजी, पर तू ही मूर्ख न समझ सका। की उस नाव को चलाने वाले को कौन चला .
अंत में बस इतना ही कहना चाहूंगा कि धर्म चाहे कोई भी हो. धर्म प्रेम और सौहार्दतापूर्वक जिसके प्रति आपका अंतर्मन स्वीकार करता है, वही सही है। ईष्वर एक है. जिसका सम्बन्ध किसी जाति सम्प्रदाय और समूह से न होकर मानव के अंतर्मन से संबंधित है। अपनी इच्छा से किसी भी धर्म को स्वीकार करना कदापि गलत नहीं। किसी की इच्छा के विरूद् जबरदस्ती बल प्रयोग द्वारा अथवा डरा धमकाकर धर्मान्तरण अति निन्दनीय है जिसका पुरजोर विरोध करना उचित है।रहा है।