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Kanchan Hitesh jain

Drama

4  

Kanchan Hitesh jain

Drama

थोडी सी तो है

थोडी सी तो है

4 mins
780

"सपना ये क्या कर रही हो बेटा रहने दो क्यों फेंक रही हो इसे।" विमलाजी ने कहा...


“मम्मीजी इतना सा ही तो है, अब इसके लिये इतना बडा डिब्बा और जगह भी कितनी रोक रहा है। इसे फेंक दूंगी तो थोड़ी जगह बन जायेगी और डिब्बा भी खाली हो जायेगा।”


“तो छोटी छोटी डिब्बियों मे ले लो बेटा...”


“अब हर थोड़ी थोडी चीजों को मै छोटी छोटी डिब्बों में कहा संभालती रहूं। फिर याद नहीं रहेगा और जब खराब होगा तब फेंकना पडेगा। इससे अच्छा अभी फेंक दू।”


सपना को शादी कर आये कुछ ही महीने हुए थे। आते ही घर-गृहस्थी का सारा काम संभाल लिया था उसने। और विमलाजी का भी खुब ख्याल रखती। 


विमलाजी ने सोचा यूं बार बार टोकना अच्छी बात नहीं। वैसे तो हर काम अच्छे से करती है एक ही तो बुरी आदत है समय के साथ साथ तजुर्बा भी आ जायेगा। यह सोच वे चुपचाप बाहर आ गई।


समय बितता गया लेकिन सपना की आदत नहीं बदली। वह विमलाजी से भी कहती... “मम्मीजी आप इतना कचरा क्यों इकट्ठा करते हो। हर छोटी छोटी चीजों को डिब्बे में भरकर रख देतो है। ये चीजें किसी काम की भी नहीं है।”


“बेटा तुम नही समझोगी ये छोटी छोटी चीजें, ये थोड़ी सी चीजें कभी कभी बहुत काम आती है। और तभी हम इनकी सही किमत समझ पाते है।”


एक दिन अचानक विमलाजी की बेस्ट फ्रेंड सविता उनसें मिलने आई।कुछ देर यहाँ वहाँ की बाते कर उसने कहा... “विमला कहाँ है तेरी बहू हम शादी में नहीं आ सके तो सोचा तुमसे भी मिलना हो जायेगा और बहू को भी आशिर्वाद दे आऊँ।”


विमलाजी ने आवाज दी, तो सपना कमरे से बाहर आई...


“सपना, ये मेरी बचपन की सखी है। मेरी बेस्ट फ्रेंड, हमदम, बहन सब कुछ यही है।”


“नमस्ते मौसीजी कैसे हो आप...” सपना ने पैर छूते हुए कहा।


सपना के मुँह से मौसी शब्द सुन बहुत अच्छा लगा सविता को मानो अपनापन झलक रहा हो। वरना आजकल के बच्चे तो सगी मौसी को भी आंटी कहकर बुलाते है।


“सपना तेरी बहू तो हीरा है, सुन्दर भी, और सुशील भी।”


“हाँ इसमे कोई दो राय नहीं, जब से ये आई है घर का पूरा काम संभाल लिया है और रसोई में तो पैर तक नहीं रखने देती मुझे।”


सपना रसोई में जा एक ट्रे मे नाश्ता ले आई।


“क्या लोगे मौसीजी आप, चाय-कॉफी?”


“नहीं, बेटा कुछ नहीं बस पहले ही इतना कुछ ले आई हो और मै अभी अभी खाना खाकर आई हूँ।”


“अच्छा तो मै आपके लिए नींबू शिकंजी बना देती हूँ वैसे भी गर्मी बहुत है।”


“मना मत करना सविता मेरी बहू शिकंजी बहुत अच्छी बनाती है।”


“ठीक है बेटा बना दो।”


सपना किचन में गई शिकंजी की तैयारी कर रही थी। जैसी ही शक्कर का डिब्बा उठाया अरे ये तो खाली है। और बाक्स में थोडा ग्लूकोज था वो भी मैंने आज सुबह ही फेंक दिया। अब अगर आंटी के सामने मै कटोरी लेकर पडोस में शक्कर मांगने जाऊँ तो वे मेरे बारे में क्या सोचेगी?अब करूँ तो क्या करूँ। आज ही किराने का सामान लिखाया था तो मैंने सोचा अब ये थोड़ा थोडा सामान फेंक डिब्बे साफ कर दू। अब इसमे मेरी क्या गलती। सपना इसी उधेड़बुन में खोई हुई थी करूं तो क्या करूं?


बहुत देर तक जब सपना बाहर नहीं आई। विमलाजी किचन में गई। सपना को देखते ही वे समझ गई। उन्होने स्टोर रुम में जाकर एक बडा सा डिब्बा ला सपना को दिया।


सपना ने डिब्बा खोला तो उसमे कई छोटी छोटी डिब्बियां थी। और जरुरत का थोडा थोडा सामान, उसमें एक डिब्बी में मिश्री थी। मिश्री देख सपना के चेहरे की रौनक लौट आई उसने फट से मिश्री ली, शिकंजी तैयार कर बाहर ले आई।


सविता आंटी ने भी उसकी बहुत तारीफ की और ढेर सारा आशिर्वाद भी दिया।


उनके जाते ही सपना कुछ पुछती उसके पहले विमलाजी ने कहा... “बेटा तुम अक्सर थोड़ी थोड़ी चीजो को फेंक दिया करती थी। तुम्हे बार बार टोकना मुझे सही नहीं लगता था। इसिलिए मैने ये उपाय सोचा।जब भी डिब्बों मे थोड़ा सामान रहता तुम बाहर फेंको उससे पहले ही मैं छोटी डिब्बों में भर उन्हे स्टोर रुम के इस डिब्बे में रख देती ताकि तुम्हे बुरा भी ना लगे और जरूरत पडने पर काम आ सके।”


सपना को अपनी गलती का एहसास हो चुका था। उसने तय किया कि आज के बाद वह भी अपनी सास की तरह... छोटी बडी चीजों को सहज कर रखेगी।


तो दोस्तों हमारे साथ भी कही बार ऐसा होता है कि जब जरूरत पडती है तब ही हमे थोड़ी सी और छोटी सी चीजों का महत्व समझ में आता है।


इसी तरह जीवन में भी कई बार छोटी छोटी खुशियाँ हमारे दरवाजे पर दस्तक देकर चली जाती है। लेकिन बडा पाने की लालच में हम उनकी किमत नहीं समझते और उन पलो को खो देते है।


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