थोड़ा है ...
थोड़ा है ...
सुबह , सहायिका शन्नो को वेतन दिया तो वह हिसाब लगाने बैठ गयीःपांच सौ रुपया राशन,पांच सौ रुपए की बेटे की किताब ...
"अरे ! क्या घर के पूरे खर्चे का हिसाब तुम ही रखती हो , शन्नो ?"
"और का , भाभी , हमार मरद सारा दिन पी कर पड़ा रहत है .. I"
"अरे ! तो समझाती क्यों नहीं ? उसकी कोई जिम्मेदारी नहीं ?"
"अरे ! भाभी , बहुत सिर फोड़ा .. रोज रोज की किचकिच .. मारा पीटी ...मैने साफ बोला .. एक पैसा न दूंगी .. अपना इंतजाम खुद करो ... घर मैं सम्भाल लूंगी ..."
"पर , .. थोड़ा पैसा तो उससे लिया करो , उसे समझाओ .. ऐसे तो उसकी भी तबियत खराब हो जाएगी .."
"न ,भाभी .... शन्नो ने हाथ से इशारा किया ..मधुमक्खी शहद निकाल सकत है , मक्खी को विष्ठा खाने से नहीं रोक सकत ..."
आज , शन्नो ने बहुत बड़ी बात कह दी थी ...
हमें अपनी कुशलता पर काम करना होता है व्यर्थ के पचड़ों में पड़कर हम अपनी शक्ति की ही क्षति करते हैं ..हम सबको सुधार नहीं सकते ..पर , अपने ऊपर काम करके सफलता के शिखर पर पहुँच सकते हैं ."
थोड़ा है , थोड़े की जरूरत है
जिंदगी फिर भी खुबसूरत है ।
