Akshat Garhwal

Action Fantasy Thriller

4.0  

Akshat Garhwal

Action Fantasy Thriller

The 13th अध्याय 12

The 13th अध्याय 12

17 mins
253


आज तीनों घर पर ही थे, संडे (Sunday) का दिन था पर बारिश के कारण उन तीनों ने बाहर घूमने का प्लान कैंसिल(Cancel) कर दिया था। वैसे अपने बिस्तर पर बैठे हुए कांच की दीवार बराबर की खिड़की से बाहर की बारिश का नजारा देखने का अलग ही मजा होता है। वो जमी हुई बूंदे, रह-रहकर कभी तेज तो कभी धीमा होता हुआ पानी, ठंडी हवाओं से लहराते हुए पेड़ और उनसे छन कर आती AC से भी ठंडी हवा। वाह! ऐसे मौसम का मजा लेना तो बनता है

“चाय पियेगा क्या?” अपने बिस्तर से उठता हुआ सृजल, कांच की खिड़की से टिके हुए आनंद से पूछता है

“तू बनाएगा तो जरूर पियूँगा” आनंद ने पलटते हुए कहा वो भी ऐसी हंसी के साथ कि सृजल को भी हंसी आ गयी

“अब जब चाय बना रहा है तो उसके साथ कुछ खाने को भी ले आना..........!” एक बड़े से गद्दे दार कुर्सी में आधी सी धंसी हुई रूबी भी बोली “ऊँSsssss...पकोड़े बना ले न यार”

रूबी की बात सुनकर सृजल ने हाँ में सर हिलाया और वहां से जाने लगा

“अरे सृजल!” आनंद सृजल के मुड़ते ही उसे आँख मारकर बोला “पकोड़े रहने दे, वर्ना ये पहले जैसी मोटी हो जाएगी।

याद है ना स्कूल में इसके गाल ऐसे फूले रहते थे जैसे दोनों गालों में पान भरकर बैठी हो” आनंद के इतना बोलते ही सृजल जो कि रूबी के सामने ही खड़ा हुआ था जल्दी से हट कर गेट के पास पहुंच गया.... एक अजीब सी हंसी उसने आनंद को दिखाई। 

रूबी इतनी तेजी से उठते हुए आनंद के पास पहुंच गई जैसे उसके पैरों में पंख लगे हो और उसके बाद उसने जो उसे बिस्टेर और जमीन पर लिटा-लिटा के मारा ना!.... कि उसकी सिर्फ चीखें ही सुनाई दी क्योंकि उसकी पिटाई देखने के लिए सृजल वहां रुक नहीं।

सृजल नीचे आकर चाय बनाने लगा, उसका किचन(Kitchen) भी काफी साफ सुथरा और आधुनिक था। बढ़िया आयताकार(Rectangular) किचन था, अंदर घुसे ही सबसे सामने दूरी पर एक दो दरवाजे वाला फ्रिज रखा हुआ था, जिससे टिक हुआ एक बड़ा सा चौकोर फ्रीज़र रखा हुआ था जैसा अक्सर आइस क्रीम की दुकानों में देखने को मिलता है। बाई तरफ गैस के साथ लंबा से प्लेटफार्म था और पीछे फ्रिज के पास कोने में सिंक जहां पर बर्तन धोते और उसी के नीचे बर्तन रखने का दर्ज सा था, उसी के थोड़े ऊपर से दीवारों पर तंज लकड़ी के बने दराज थे जिनमें मसले वगेरह रखे हुए थे और सबसे आखिर में दरवाजे के पास एक बड़ा सा माइक्रोवेव भी था। सृजल ने फ्रीजर में से एक फ्रोजेन फ्रेंच फ्राइज और आलू पकोड़े का 500ग्राम वाला पैकेट निकाला और प्लेटफॉर्म पर रख दिया। कढ़ाई में तेल रख कर गैस चालू की और दोनों पैकेट को खोल कर तेल गरम होने का इंतज़ार करने लगा

“आज तो पूरे 5 दिन हो गए, उसने एक बार भी मैसेज तक नहीं किया.....आखिर बात क्या है?” सृजल खुद से बड़बड़ाता हुआ बोला, उसके चेहरे पर थोड़ी चिंता वाले भाव थे।

गरम कढ़ाई और उसमे उबाल हुए तेल में स्रजल ने वो पहले से बने हुए फ्राइस और आलू के पकोड़े तलना शुरू किया। तेल में तलने की वो कुरकुरी सी आवाज पूरे किचन में फैल सी गयी,कुछ खोया हुआ सा सृजल पकोड़ों क पलटते हुए टालने लगा। कुछ ही देर के बाद ही जब फ्राइज और आलू के पकोड़े तला गए, सृजल ने दो बड़े से कांच के बाउल(कटोरे) निकले और उनमें उन पकोड़ों को रख लिया। फिर जल्दी से उसने चाय भी बना ली....आखिर घर का काम करते हुए उसे काफी साल हो गए थे। वो उन्हें एक ट्रे में रख कर ऊपर लेके जाने ही वाला था कि उसके मन में एक खयाल आया! उन ट्रे को वापस प्लेटफॉर्म पर रख और अपना फ़ोन निकाला, उस में मैसेज का ऑप्शन खोला और किसी को मैसेज करने लगा

‘तुमने काफी दिनों से कोई मैसेज या कॉल नहीं किया है। जनता हूँ कि तुम ज्यादा व्यस्त हो सकती हो पर एक बार मुझे कॉल या मैसेज करके बता दो। तुम्हारे जवाब का इंतजार रहेगा हनी(Honey) ’

सृजल ने जल्दी से ये मैसेज सेंड किया और ट्रे लेकर ऊपर पहुंच गया। दरवाजा खोलते ही उसे सबसे पहले जो चीज दिखी वो थी.......आनंद के सर पर पड़ा लाल गम्मा(Swell) और अपने सर को पीछे से मलता हुआ आनंद! रूबी और आनंद बिस्तर पर बैठे हुए सृजल के टेबलेट मैं कुछ फोटोज देख रहे थे जिनमें से उनके स्कूल के टाइम की तस्वीर सृजल को भी आते हुए दिख गयी थी।

“अब क्या कर रहे हो तुम दोनों? फोटोज़.....” सृजल ने बिस्टर के दूसरी ओर जाते हुए कहा, वो जाकर बैठा और दोनों को चाय के कप पकड़ा दिए.....जिसमें से रूबी ने पकोड़े का बाउल उठा लिया और आनंद ने फ्राइज का। सृजल ने सिर्फ चाय का बचा हुआ कप उठाया और ट्रे को लैंप के पास रखी छोटी सी मेज पर रख दिया

“हम्मSSSSSSSSS.. चाय तो एक दम शानदार बनी है। इतनी अच्छी चाय हमेशा कैसे बना लेता है यार” रूबी ने चाय को बिना आवाज के एक घूंट लेकर कहा, उसके बोलते ही सबसे पहले आनंद ने एक घूंट चाय पी और फ्राइज को मुँह में दबाते हुए बोला

“क्या यार सृजल, इतनी शक्कर क्यों डाली...रूबी को मोटा करके मानेगा क्या?”

‘पट्ट!’ आनंद के इतना बोलते ही रूबी ने झट्ट से आनंद के माथे में अपनी उंगली ऐसे मारी जैसे करें की गोटी को निशाना लगाया हो...और एक बार फिर बेचारा आनंद हल्की सी बात पे हल्का सा फाटक ले बैठा

“आउंSSSSSS...यार हर बात पर मारना जरूरी है क्या? तेरे हाथ क्यों बंद नहीं रहते” अपना माथा मलते हुए आनंद थोड़ी मासूमियत के साथ बोला, रूबी ने फिर से चेहरा थोड़ा सिकोड़ते हुए अपना हाथ उसके माथे की ओर बढ़ाया...और वो बुध्दु बस आंखें मीच कर उसके मार का इंतजार करने लगा। ऐसी आंखें मीची हुई थी की जबरदस्ती भी न खुलवा पाते और फिर रूबी का हाथ उसके माथे पर साध गया........!

इस बार उसने आनंद को मार नहीं बस उसके माथे पर जहां पर पहले उसने मार था वहां पर प्यार से हाथ फेरा पर उतना प्यार उसके चेहरे पर नहीं दिखाया। कारण-.....तुम खुद ही सोच लो यार?, हाँ उसकी आंखें उतना झूठ नहीं बोल पाईं, उनमें आखिरकार थोड़ी सी नमीं और नरमी आ ही गयी। जिसे देख कर आनंद थोड़ा मुस्कुराया.....फिर थोड़ा और मुस्कुराया और उसकी मुस्कान देख रूबी ने उसके माथे पर हल्का सा धक्का दे कर अपना मुंह कुछ पल फेर लिया ताकि उसकी गालों की वो ऊषा(सूरज की पहली किरण) आनंद को न दिखे। पर आनंद की नजर रूबी पर नहीं थी, जब वो पलटी तो देखा कि आनंद थोड़ा चिंतित रूप में सृजल कई और देख रहा था.......जो कि उस बड़ी सी कांच की खिड़की से टिका हुआ बारिश में खोया हुआ मालुम पड़ रहा था।

“ए सृजल! क्या हुआ यार? इतना खोया-खोया कहाँ है?” सृजल ने कोई भी प्रतिक्रिया नहीं दी, उसकी नजरें कांच के बाहर टिकी हुई थी। इस देख कर आनंद झट से उठ गया और उसके पास जाकर उसे छुआ, तब भी कोई प्रतिक्रिया नहीं हुई तो आनंद ने उसका नाम लेकर उसे थोड़ा सा तेज हिलाया

“सृजल!” अब कहीं जाकर सृजल अपनी दुनिया से बाहर निकला था, उसकी आनंद और रूबी को देखती आंखें बता रहीं थी कि वो समझ गया है कि आनंद और रूबी ने उसे खोया हुए देख लिया है

“हाँ, क्या कह रहा है?” सृजल जल्दी से कांच के पास से हटा और सीधे जाकर बिस्तर पर बैठ गया

“आखिर बात क्या है सृजल? तू कल भी ऐसे ही खोया खोया से लग रहा था” आनंद ने दूसरी तरफ बिस्तर के बैठते हुए कहा और नजरें रूबी से मिलाई

“कुछ खास नहीं यार, बताने जितनी कोई ही बात नहीं है” सृजल ने अपने आप को सामान्य दिखाते हुए चाय का घूंट लिया

“फिर भी जो भी बात है वो हम से साँझा कर ले तो मन हल्का हो जाएगा। वैसे भी अगर ज्यादा दिक्कत की बात नहीं होती तो तू ऐसे चुप थोड़े ही होता?” रूबी ने थोड़ा सा जोर देते हुए कहा। सृजल ने एक गहरी सांस ली और बताया

“लगभग 1 हफ्ता हो गया है, न उसका कोई फ़ोन और न ही मैसेज! ऐसा कभी भी नहीं हुआ कि वो मुझे कांटेक्ट करने से भूल गयी हो”

“तो इसमें इतना चिंता करने की क्या जरूरत है?” आनंद ने बोलना शुरू किया “तुझे भी मालूम है कि उसकी नौकरी में कितना कम समय मिलता है। जरूर वो किसी काम में फंस गई होगी और उसके चक्कर में वो मैसेज-कॉल नहीं कर पाई होगी”

“और तू कुछ उल्टा सीधा मत सोचने लगना। वो बहुत ही सही लड़की है और सच कहूं तो उसका व्यहार इतना स्वाभिमान भरा है कि वैसी लड़की पूरी दुनिया में कोई नहीं होगी” रूबी की बात सुनकर सृजल के चेहरे पर हल्की सी मुस्कान आ गयी जिस पर आनंद की मस्ती नहीं रुकी

“ओहो..हो! अब तो बहुत ही मुस्कुरा रहे होssssssss!” नाक फुला चेहरा थोड़ा तेज कर वो ऐसे बोला कि दोनों को हंसी आ गयी। वो सारी तन्हाई एक पल में डोर हो गयी और उन तीन दोस्तों की महफिल फिर से रौनक हो गयी। अब जब चाय खत्म तो बचे हुए पकोड़े और फ्राइज खाने की होड़ में वो आपस में ही झूम पड़े.........जैसे वो हमेशा से किया करते थे, बचपना गया नहीं अभी...

रूबी, आनंद और सृजल 5 साल के समय के बाद अभी कुछ महीनों पहले ही मिले थे तो उसमें भी सृजल की गर्लफ्रैंड से तो दोनों में से कोई भी नहीं मिले थे पर जब सृजल ने दोनों को बताया था उसके बारे में तभी से ही रूबी और सृजल कि गर्लफ्रैंड की आपस में कई बार बातें हुआ करती थी और मात्र बात करने से रूबी को सृजल की गर्लफ्रैंड के बारे में काफी कुछ पता चल गया था। वो दोनों दोस्त भी बन गए थे हालांकि रूबी भी काफी व्यस्त रहा करती थी तो अब उन दोनों में काफी समय से बात नहीं हुई थी। वैसे भी सृजल की चिंता जायज थी क्योंकि हमारे अपनों का व्यवहार जैसे ही कुछ अजीब होता है तो हम खुद थोड़े सतर्क हो जाते है...यह तो आम बात है।

जल्दी ही छुट्टी वाला दिन खत्म हो गया और सोमवार आ गया। वहीं हमेशा वाला सामान्य दिन और काम, रूबी फार्मसूइटिकल में कदम रखते ही तीनों का रवैया एकदम प्रोफेशनल(Professional) हो जाता कि पता ही नहीं चलता कि तीनों बहुत अच्छे दोस्त भी है। वैसे भी आज उनका शाम को एक इंटरनेशनल कंपनी के एग्जीक्यूटिव(Exicutive) से मिलने का प्लान था और जान के वाले वो तीनों ही थे। क्योंकि ये एक तरह की सीक्रेट मीटिंग होने वाली थी, रूबी ने ही फैसला किया था कि वो तव्वनों ही वहां पर मिलने जाएंगे। वो तीनों रात तक मुख्य कार्यालय में ही रुके और 9 बजट ही बिना खाये वहां से रूबी की काली BMW में बैठ कर निकल पड़े अपनी मंजिल की ओर....... गारापुरी के पास एक छोटे से टापू पर। गारपुरी में मंदिर वगैरह बहुत है, काफी धार्मिक जगह मालूम पड़ती है और उससे करीब 10 किलोमीटर की दूरी पर वो बेनाम टापू था जिसके बारे में गूगल भी कुछ नहीं जानता और न ही उसके बारे में कोई जानकारी दी गयी है। एक प्राइवेट बोट लेकर वो तीनों निकल पड़े उसी टापू की ओर जहां पर आज की ये मीटिंग रखी गयी थी........वो बोट पानी की लहरों को चीरती हुई पानी की हल्की फुहारें मार रही थी जिस पर रूबी और सृजल मजे में बैठे हुए थे और आनंद बोट चला रहा था।

“वैसे इतनी सुनसान जगह पर मीटिंग रखने का मतलब क्या है? मीटिंग तो वहीं रख सकते थे ना, ऑफिस में!” आनंद ने बोट को उस सुनसान टापू की और मोड़ते हुए कहा

“वो एक ऐसी मेडिसिन का फार्मूला बेचना चाहते है जो कि एक रेगेंरेशन ड्रग (Regeneration) की तरह काम करती है और उन्हें इसकी अच्छी खासी कीमत मिल सकती है...और हमारी फार्मसूइटिकल पिछले मुनाफे के कारण हर जगह छाई हुई है इसलिए हमें भी बुलाया गया है”

“और कौन आ रहा है?” सृजल ने टापू को पास आता देख अपनी जगह से उठते हुए कहा

“मेरी पहचान के अमेरिकी मेडिसिन कंपनी के CEO मिस्टर पॉल आ रहे है” रूबी ने फिर जवाब दिया

कुछ ही देर में उनकी कश्ती किनारे से जा लगी और उस कहते से टापू का पूरा दृश्य उनके सामने आ गया। ये टापू ना सिर्फ देखने में चोट था बल्कि असल में उसका क्षेत्रफल 10 से 12 एकड़ के आस पास का ही था.......नारियल के काफी सारे पेड़ थे वहां पर और उससे मिलते जुलते भी लंबे ऊंचे पेड़ थे, चमचमाती वो ठंडी रेत जो चांद की रोशनी में मोती सी चमक रही थी और उसी के बीचों-बीच एक लकड़ी का बना हुआ छोटा सा घर दिख रहा था जिसकी छत पर सूखी घांस-फूस पड़ी हुई थी और उसकी कांच की बनी खिड़कियों से उजाला आ रहा था। तीनों बोट से उतरे और उस घर की ओर बढ़ने लगे

“ये जगह इतनी शांत क्यों है? तुमने तो कहा था कि यहां पर और भी लोग आने वाले है?” आनंद ने रूबी की ओर देख कर पूछा

“हाँ, शायद वो लोग दूसरी तरफ से आये होंगे इसलिए यहां नहीं दिख रहे” रूबी ने चलते हुए कहा

अचानक ही सृजल की चलने की गति धीमी हो गयी, कुछ पल बाद आनंद भी थोड़ा सतर्क हो गया और उसकी चाल भी थोड़ी धीमी पड़ गयी। रास्ते में उस घर से पहले एक लोहे का बड़ा सा कचरे का आयताकार लंबा कंटेनर रखा हुआ था

“क्या तूने वो देखा सृजल!” आनंद की इस तरह की हल्की आवाज सुनकर रूबी को समझ आ गया कि कुछ गड़बड़ है, उसके कदम उस कचरे के कंटेनर के पास रुक गए

“तो......तुझे भी वो साये दिख गए, काफी अच्छी नज़र है तेरी” सृजल ने उस कंटेनर के पास रुकते हुए कहा। रूबी उस कंटेनर के सबसे पास थी और सृजल-आनंद उसके सामने किसी ढाल की तरह खड़े हुए थे

“क्या कुछ गड़बड़ है सराज......!” रूबी के शब्द बीच में ही रुक गए जब उसने कुछ सायों को अपने आस-पास पेड़ों और झाड़ियों से हिलते देखा, उसका शरीर कुछ पल के लिए सख्त से हो गया, डर के मारे!

“लगता है किसी ने हमें फंसाया है, इस टापू पर आने के लिए....और हम उनकी चाल में फंस भी गए” सृजल ने अपना शरीर बिल्कुल रिलैक्स करते हुए इधर-उधर हिलाया, आनंद ने भी अपनी मुट्ठी बनाई और उसकी उंगलियां चटखा ली। सृजल और आनंद ने पहले उन सभी की चाल ढाल को देख कर ये अंदाज लगाया कि उनके पास कौन-कौन से हथियार है?

“गन्स(Guns) किसी कभी पास नहीं दिख रही है, शायद ये ट्रेनेड(Trained) असासिंस (assassins) है” सृजल ने अपना हमेशा वाला फाइटिंग स्टांस ले लिया

“सही कहा, पर कुछ के पास बड़े से चाकू है......!” आनंद ने अपने कोट को उतार कर बाये हाथ में फंसा लिया और कोट के अंदर किसी चोर जेब से निकाला एक बाटोन! जिसे देख कर एक पल के लिए तो सृजल और रूबी की नजरें उसी पर आ गयी जैसे कहने वाले हो ‘तू पूरी तैयारी के साथ आया था क्या?’ वो पूरे चांद को जैसे ही बादलों ने खुला छोड़ा, मौत का खेल शुरू हो गया.......

वो सभी चारों तरफ से उन्हें घेरते हुए आ रहे थे, ज्यादातर देखने में अफ्रीकन लग रहे थे पर सृजल की नजरों ने कुछ जाने-पहचाने से रशियन्स को भी पहचान लिया........अब जब सभी के चेहरे सामने थे और दूरी कम होने लगी थी, लड़ाई का आगामी वार हुआ

“हाsssssअ!” और वो आगामी वार किया सृजल ने! इससे पहले की वो सभी तरफ से उन तीनों को घेर लेते सृजल ने अपनी तरफ सामने से आ रहे तीन रशियन की ओर तेजी से झपट्टा मारा पर ये लोग पहले से ही इस तरह के एक्शन(Action) के लिए तैयार थे। उनके जेब से चाकू निकले और सृजल कि ओर तन गए, यह कोई फिल्म नहीं थी जो ये सब एक एक करके आते- तीनों एक साथ ही आगे बढ़े

“खच्चsssssssss!” चांदनी भारी उस रात में पहला रक्त अर्पित हुआ........जो कि उन तीनों रशियन्स का था! जो हुआ वो सभी ने देखा पर उन्हें भी अपनी आंखों पर यकीन से नहीं हुआ, सभी ने एक बार आंखों को मला और उन तीनों के शवों को गिरते हुए देखा। वो तीनों हथियारबंद थे और एक साथ सृजल पर हमला किया था। बस गलती ये कर दी कि उनके आपस में बहुत कम जगह बची हुई थी; सृजल ने इसी बात का फायदा उठा लिया क्योंकि सृजल की रफ्तार उनसे तेज थी बाईं तरफ वाले कि कलाई को पकड़ते हुए उसका चाकू दांये वाले कि गर्दन में और दांय वाले का चाकू बीच वाले कि गर्दन से होता हुआ बांये वाले कि गर्दन को चीर गया! सृजल ने उन्ही की गलती से उन्हें मार गिराया.........और इतना देखते ही आधे से ज्यादा असैसिन्स सृजल की ओर कूद पड़े।

पर अब भी खतरा रूबी और आनंद के ऊपर था क्योंकि वो दोनों इस तरह की सिचुएशन(Situation) के लिए तैयार नहीं थे। इन्हीं में से एक पीछे से जहां पर सृजल पहले खड़ा हुआ था वहां से घुसता हुआ सीधा वार अपने लंबे से चाकू से रूबी की ओर कर दिया...........’तड़क’! पर आनंद भी वहाँ पर यूं ही बाटोन(Baton) लेकर नहीं खड़ा था इससे पहले की वो चाकू लेकर रूबी के पास भी पहुंचता आनंद ने घूम कर बिजली से कड़कता बाटन उसकी कनपटी पर दे मारा.......मुँह से झाग गिरता वो रेत पर गिर पड़ा

“रूबी से दूर रहने में ही तुम्हारी भलाई है......वरना यहीं बाटन ऐसी जगह डालूंगा की न तो खड़े हो पाओगे और न ही बैठ पाओगे” आनंद को एक्शन में देख कर रूबी के तो होश से ही उड़ गए जिस पर आनंद ने उसके आश्चर्य भरे चेहरे से नजरें मिलते हुए आंख मारी और उसका आश्चर्य तोड़ दिया। सृजल के चेहरे पर आनंद को लड़ता देख मुस्कान आ गयी क्योंकि अब सृजल अपनी पूरी पावर(Power) के साथ लड़ सकता था

लगभग वो सभी असैसिन्स थोड़ी दूरी बनाये हुए सृजल की ओर आये, शायद अपने साथियों की गलती उन सबने इतनी जल्दी पहचान ली थी। .....’धाड़ssss!’ सृजल ने सामने से आ रहे एक को रफ्तार के साथ गर्दन में मुक्का जड़ दिया और उसके हाथ से चाकू छीन कर सामने से आ रहे और 2 को सर के ऊपर और जबड़े में चाक़ू का उल्टा हिस्सा मार कर नीचे गिर दिया। सृजल कि रफ्तार और निशाना इतना तेज था कि वो असैसिन्स उसके सामने फीके पड़ रहे थे। उधर आनंद भी उन असैसिन्स को बहुत ही आसानी से संभाल रहा था, ऐसे जैसे वो अपनी जगह पर आसानी से खड़ा हुआ था, टहल रहा था और वो असैसिन्स उसी जगह पर आ रहे थे जहां पर आनंद अपना बाटन घुमा रहा था। कभी किसी के पैर में मार कर गिरता और छाती में कड़कती बिजली का झटका दे देता.....और तो और एक बार तो उसने एक के मुँह के अंदर ही बाटन डाल कर चालू कर दिया था,शरीर के अंदर तक कि चीज़ें हिला डाली। आनंद के साथ रूबी पूरी तरह सुरक्षित थी और सृजल ने अब लगभग सभी असैसिन्स को ठिकाने लगा दिया था। उन्हीं में से एक अब धीरे-धीरे पास आ रहा था उसका शरीर भरा-पूरा और बड़ा था, हाथ की मांसपेशियां अलग ही दिख रही थी ,चेहरे पर हल्की दाढ़ी थी और चेहरे से तो कोई भी उसे सामान्य नहीं कह सकता था। उसने अपनी जेब से एक मोटा सा हरा चश्मा निकाला जो तैराकी के काम आने वाले चश्मों जैसा था पर काफी आधुनिक था उसके अंदर स्मार्टफोन जैसा कोई सिस्टम था। एक नजर सृजल को देखा, फिर रूबी को...और फिर आनंद को। वो चश्मा उतरते हुए उसके चेहरे पर क्रूरता वाली हंसी थी.....वो आगे बढ़ा

सृजल के सामने अब तीन ही असैसिन्स खड़े हुए थे पर अब वो ज्यादा करीब नहीं आये बल्कि उन्होंने सृजल की ओर चाकुओं के फेंकने का निशाना लगा

लिया.........’सररSsssss!’व सृजल ने उनके मंसूबों को भांप लिया और रेत में पैर गहरा करते हुए एक राउंड हाउस किक चला दी। वो चगमकीली रेत उन तीनों की आंखों में गयी और वे अपनी दृष्टि कुछ पल के लिए खो बैठे... मौका देख कर सृजल ने एक से चाकू झटके से छीन कर उसी की छाती में घुसेड़ दिया, फिर वो चाकू निकालते हुए बाजू में खड़े वाले कि गर्दन में जबरदस्त हाई किक मार कर बेहोश किया और अपने हाथ में रखा चाकू फेंक कर आखिरी वाले का भी काम खत्म कर दिया।

“धम्म!” बहुत तेज आवाज को सुनकर सृजल आनंद की ओर पलटा जो अभी अभी उस भारी भरकम असासिं के पैरों तले कुचले जाने से बाल-बाल बचा था, उसके पैर लड़खड़ाये और वो रेत में गिर गया। इतनी देर में पहली बार आनंद को अहसास हो रहा था कि इस लड़ाई में जान भी जा सकती है, उसके चेहरे पर पहली बार कुछ डर दिख रहा था

“मछली कितनी भी शातिर क्यों ना हो, उसे अपनी औकात देख कर ही गहराई में उतारना चाहिए......!” उस अफ्रीकन असैसिन ने अपने कदम बढ़ाते हुए कहा

रूबी तुरंत ही दौड़ कर आनंद के पास गई और उसको संभाला, उठने में मदद की। आनंद की दिल की धड़कन बहुत तेज चला रही थी, यहां तक कि उसके कान भी बज रहे थे। अगर उस समय वो जल्दी से नहीं हटा होता तो सच में आनंद किसी कुरकुरे की तरह टूट कर बिखर जाता।

“आई विल बी टेकिंग यूँ विथ मी(I wil be taking you with me)” कहता हुआ वो रूबी और आनंद की ओर बढ़ने लगा

‘धप्प’! तब तक सृजल ने रफ्तार बढ़ा कर पास आते ही एक जबरदस्त मुक्का उस भारी असैसिन् के मोह की ओर दे मारा पर उसने सृजल का मुक्का बड़े ही आसानी से अपने बांये हाथ से पकड़ लिए

“ये हथकंडे मेरे चमचों पर काम कर गए पर में किसी का चमचा नहीं हूँ!” कहते हुए अपने दांये हाथ से एक लिवर अपरकट(Liver Uppercut) दे मारा!..............कुछ पल के लिए आनंद और रूबी के चेहरे पर डर छा गया.... फिर कुछ पल बाद उस असैसिन के चेहरे पर हल्का सा आश्चर्य आ गया जब उसे अहसास हुआ कि सृजल ने अपने बनी हाथ से उसकी कलाई को कस के पकड़ लिया था और उसका पंच सृजल की बाजू से कुछ दूरी पर ही रुक गया था।

किसी शिकारी सी आंखों को लिए सृजल की मुस्कान बदल गई, और उस असैसिन से आंखें मिली

“मैं भी किसी का चमचा नहीं हूँ..........आई एम डोमीनेटर! (I am Dominator!)”



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