तेरी मेरी कहानी..
तेरी मेरी कहानी..
ए दोस्त। ।
तेरी मेरी कहानी में बस इतना सा ही सच है कि हम कभी दोस्त थे। दोस्त थे भी या बस मिलना हो जाता था अक्सर तो शायद मैंने ही उसे दोस्ती मान लिया। बस फिर तुझसे शिकायत करने का कोई मतलब नहीं बनता क्यूँकी तूने कभी कहा ही नहीं कि हम दोस्त हैं। हमेशा मज़ाक में हम एक दूसरे को दुश्मन ही बुलाते रहे।
तूने जो हीरे की अंगूठी दी थी उसको वापस करने की वजह शायद तुझे आज तक पता ही नहीं। तेरी मौसी के वो कड़वे शब्द जब तू मुझे अंगूठी दे रहा था आज भी याद हैं मुझे।
"सम्भाल कर रखना इस अंगूठी को आज से पहले कभी देखी नहीं होगी हीरे की अंगूठी। "
किस हक़ से वो मुझसे ऐसे बात कर रहीं थीं। तू मुझे तोहफ़ा दे रहा था तो शायद उनको अच्छा नहीं लगा। तेरे कहे शब्द भी याद हैं मुझे, "कभी इस अंगूठी को उतारियेगा नहीं। " शायद कभी मैं उस अंगूठी को निकालती ही नहीं बहुत खास थी वो मेरे लिए मगर जब जब उस अंगूठी को देखती थी तो अपनी बेइज्जती भी याद आती थी। इसीलिए एक अच्छा सा मौका देखकर मैंने वो अंगूठी वापस कर दी। जानती हूँ तू बहुत हर्ट हुआ था।
लेकिन मेरे लिए हीरे पन्ने से ज़्यादा रिश्ते अहमियत रखते है मैं तेरी मौसी जैसी नहीं जो बस घरों में राजनीति खेलती हैं। बस यहीं से तेरी मेरी दोस्ती हंसी मज़ाक शायद धीरे-धीरे ख़त्म होने लगा।
और फिर एक बड़ा झगड़ा हुआ तेरे मेरे बीच उसमें भी वजह तेरी मौसी ही थीं। फिर उन लोगों ने तेरे जो खास थे खूब गलतफहमियां तेरे कानों में डालीं।
मैं सब देखती रही, सुनती रही तुझे दूर जाता देखती रही। आज तू बात तो करता है पर कहीं ना कहीं तेरे दिल में मुझसे शिकवे हैं शिकायतें हैं। मुझे तेरी दोस्ती की कमी खलती है पर मैंने तुझे खुले आकाश में उड़ने दिया क्यूँकी...
"तू एक आजाद परिंदा तुझे ना आशियाने की फिक्र
खुद में ही जी रहा है नहीं तुझे वफा निभाने की फिक्र
रहने देंगे तेरी खुशियों में खुश तुझे तुझसे दूर होकर
यकीन है कोई फर्क नहीं पड़ेगा तुझे मुझसे दूर होकर"
