ईर्ष्या के दीप..
ईर्ष्या के दीप..
"भाभी आपको शादी की पच्चीसवीं सालगिरह बहुत बहुत मुबारक हो। और पार्टी की तैयारियां कैसी चल रही हैं ?" सुलेखा ने चहकते हुए अपनी कजिन की जेठानी से पूछा
"अरे कुछ खास नहीं सुलेखा बस घर के लोगों को ही बुला लिया है।अब इस कोरोना के चलते क्यूँ इतना खतरा सर पर लिया।बाहर से ही खाना ऑर्डर कर दिया गया है। अभी कोई भी नहीं आया है सब आठ बजे तक ही आने को कह रहे थे। "। तनु ने जवाब दिया
"ठीक है ना भाभी फ़िलहाल पार्टी तो हो रही है ना बस यही बहुत है।चलिए फिर बात होगी आप भी बिजी लग रही हैं"
सुलेखा ने तनु से कहा
" हाँ सुलेखा ठीक है ओके बाय" तनु ने भी विदा ली।
भाभी बड़ी खुश नज़र आ रहीं हैं चलो जरा शीतल से बात कर ली जाए बहुत दिन हो गये उससे कोई बात नहीं हुई। आखिर भाभी से रिश्ता उसी की वजह से तो जुड़ा है।ये सोचते हुए सुलेखा ने अपनी कजिन शीतल को फोन लगाया
" हैलो।। हाय सुलेखा कैसी हो बहुत दिनों बाद मेरी याद आयी और सब कुशल मंगल?"
"हाँ शीतल सब राज़ी ख़ुशी है भगवान की दया से। तुम सुनाओ कैसी हो? अरे इस कोरोना काल ने समय ही कहाँ छोड़ा है। ऐसी बात नहीं है कि तुमको भूल गयी हूं रोज याद आती हो। बस बात करने का समय नहीं निकाल पाती हूं।
आज तुम्हारी जेठानी की शादी की पच्चीसवीं सालगिरह की बधाई के लिए बड़ी मुश्किल से फोन करने का समय निकाला तो उनसे बात करने के बाद तुम्हें भी फोन लगा लिया। भाभी तो गुलाब का सुर्ख़ फूल महसूस हो रहीं थीं।बड़ी खुश थीं।मानो उनके मन में खुशी के दीप जल रहे थे।"
" हाँ सुलेखा, खुश तो बहुत हैं पर उनके मन में खुशी के दीप हैं या हमारी ईर्ष्या के दीप जल रहे हैं ये पता नहीं। बस अपने देवर और देवरानी को छोड़कर बाकी पूरे खानदान को न्योता दिया गया है।हम ही इस लायक नहीं थे कि उनकी खुशी में शामिल हो सकें। "शीतल ने बड़े दुःखी मन से कहा
" अरे छोड़ो, ना दुःखी हो, जो जैसा कर रहा है करने दो और बस अपना काम करते जाओ। हमारी कोशिश यही होनी चाहिए कि हमारा रब हमसे राज़ी रहे। बाकी भगवान सब देख रहा है "मैंने शीतल को समझाते हुए कहा।
बस शीतल से इस समय ज्यादा बात नहीं कर सकती थी थोड़ी देर इधर उधर की बात करके मैंने फोन रख दिया और सोचने लगी कि शीतल और उसके पति कितने नेक हैं ये मैं भलीभाँति जानती हूँ । शायद इन दोनों का आज के समय में सच्चा और नेक होना सबको खल रहा होगा क्यूँकी लाख दुनिया में दिखावे को अपनाया जाता हो पर सच्चे और नेक लोगों की तारीफ दिल में करने से कोई ख़ुद को भी नहीं रोक पाता।भले ही ये सच्चाई कोई ज़ुबान पर नहीं लाना चाहता हो।और बहुत से लोग एक घरेलु राजनीति के चलते इनकी तारीफें भाभी के सामने करके अपने चने भुनाने में लगे रहते होंगे। भाभी भी लाख अपने को बहुत ऊंचा समझती रहें लेकिन मन के किसी कोने में इन दोनों नेकी उनके सारे दिखावे और चालाकी पर भारी पड़ रहीं होती है और शायद लोगों का भाभी के सामने इन दोनों की तारीफें करना और इनकी नेकी यही सब भाभी के मन में ईर्ष्या भाव पैदा कर देता हो।
मेरे दिमाग में शीतल की बात गूँज रहीं थी खुशी के दीप या ईर्ष्या के दीप। खैर दुनिया है और सब तरह की सोच के लोग यहां मौजूद हैं। बस ख़ामोश होकर लोगों के किरदारों को पढ़ते रहने के अलावा किया क्या जा सकता है ?
