NOOR EY ISHAL

Others

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NOOR EY ISHAL

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हमें तुमसे प्यार कितना

हमें तुमसे प्यार कितना

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फोन की घंटी बजे जा रही थी. जितना मुझे जाने की जल्दी थी उतनी ही तेजी से से फोन भी बज रहा था.

"उफ्फ.. क्या मुसीबत है.. लोगों को ज़रा भी तमीज नहीं की फोन की एक दो बेल करके फोन बंद कर दिया करें.. अगर कोई बिजी है तो चाहे कितनी भी घंटियाँ बजा लो बंदा फोन कैसे उठा सकता है. "

मैंने उलझते हुए आख़िरकार फोन उठा ही लिया.

"हैलो नूर, मैं सबा....पहचाना मुझे?"

"हैलो सबा, कैसी हो, क्यूँ नहीं पहचानूँगी.. तुम्हारा नंबर सेव किया हुआ है मैंने. हाँ माना इधर काफी दिनों से बात नहीं हुई तो इसका मतलब ये नहीं कि मैं तुम्हें भूल जाऊँगी. अच्छा बताओ घर में और तुम्हारी लाइफ में सब कैसा चल रहा है? "

" नूर मैं तुमसे मिलना चाहती हूँ,क्या हम मिल सकते हैं? "सबा ने कहा

"सबा,आज तो मैं थोड़ा सा बिजी हूँ..मैं कोर्ट जा रही हूँ. एक क्लाइंट से मिलना है..हम ऐसा करते हैं कल शाम को कैलाश चौराहे वाले कैफे में मिलते हैं.इज इट पॉसिबल फॉर यू? "

मुझे सबा कुछ परेशान सी महसूस हो रही थी

" ठीक है नूर कल शाम को पाँच बजे मैं वहाँ आ जाऊँगी. अल्लाह हाफ़िज़ नूर "

" अल्लाह हाफिज सबा "मैंने जल्दी से फोन काट दिया अभी मेरे पास सबा के बारे में सोचने का टाइम नहीं था मुझे जल्दी से कोर्ट पहुँचना था मैं पंद्रह मिनट लेट हो चुकी थी

मैंने जल्दी से क्लाइंट को फोन लगाया..

" हैलो किशोर, मैं रास्ते में हूँ बस मुझे पहुँचने में दस मिनट लगेंगे. "

मुझे किसी को बेवजह इन्तेज़ार कराना बिल्कुल पसंद नहीं है.. बेहतर है कि उसे सही बता दिया जाये कि हम अभी बिजी हैं या कब तक पहुंचेंगे? अक्सर लोग ऐसा कहते हैं कि बस पाँच मिनट में आ रहा हूँ और पूरा एक घंटा इन्तेज़ार करवाकर हाज़िर होते हैं.. इससे बंदा उस पाँच मिनट के इन्तेज़ार में बँधा बैठा रहता है अगर उसे सही पता चल जाये कि मुलाकात में अभी एक घंटा है तो वह कोई और काम कर सकता है.

ख़ैर ये मेरा अपना मानना है..हर एक कि अपनी सोच होती है रिश्ते को,परिवार को,समाज को,देश को और दुनिया को साथ लेकर चलने के लिये सबकी सोच की इज़्ज़त करना और उसके लिये छोटे छोटे एडजस्टमेंट करना ज़रूरी होता है. तभी सुकून और मोहब्बत क़ायम रह पाएँगे.

कोर्ट में किशोर का काम कराने में बहुत ज़्यादा टाइम लग गया था. शाम होने को थी मैं तेज़ी से रिक्शा तलाश कर रही थी जिससे जल्दी घर जा सकूँ.. आज मौसम थोड़ा बारिश का तो हो रहा था लेकिन उमस बहुत हो रही थी .. जल्दी में छाता लाना भी भूल गयी थी. आज कोर्ट में कुछ ऐसा हुआ था कि मन थोड़ा भारी हो रहा था.. वैसे मेरे लिये कोई नयी बात नहीं थी इस तरह के फिकरेबाज़ी,ताने मैं किसी ना किसी से अपने कोर्ट जॉइन करने के पहले दिन से सुन रही थी.

इससे पहले मैं अपने उस दिन की यादों में वापस जाती कि अचानक मुझे एक खाली रिक्शा आता दिखाई दिया.. मैंने जल्दी से हाथ हिलाकर उसे बुलाया और पूछा, "भैया, बंजारा हिल चलोगे"

रिक्शावाला बोला, "नूर बीबी बैठ जाइए, हम घर छोड़ देंगे आपको. हम यामीन हैं, क्या पहचाना नहीं आपने?"

"ओह, अरे हाँ, मैंने जल्दी में देखा ही नहीं तुम्हें, कैसे हो यामीन?"

"बस नूर बीबी आपके बाबा की वज़ह से बहुत बढ़िया हैं अब अल्लाह आप सबको बहुत ख़ुश रखे.. आप खूब तरक्की करें."

"अच्छा सलीम की नौकरी लग गयी है क्या? "मैंने यामीन से पूछा.

" नहीं बीबीजी, गरीब को नौकरी इतनी आसानी से कहाँ मिलती है. गरीब तो हर रोज़ दो वक़्त की रोटी के लिये दिन भर में नाजाने अपने कितने अरमानों को अपनी ही मेहनत के नीचे कुचल देता है. हर कोई साहब जैसा नहीं होता है.

वैसे साहब ने कहा है कि वो सलीम के लिये कोशिश करेंगे कि कहीं लग जाये. बस बीबी जी सलीम कहीं लग जाये तो चार पैसे घर में आने लगेंगे फिर चूल्हा ज़रा और सही से जलने लगेगा ."

यामीन के लहजे में सलीम की फिक्र तो थी ही साथ ही घर के बढ़ते खर्चों से भी परेशानी साफ़ दिख रही थी.

" हौसला रखो यामीन.. सबके हाल अल्लाह जानता है.. अपने बन्दे को कब, कैसे और कहाँ अता करना है ये उससे बेहतर और कोई नहीं जानता सही वक़्त आने पर सबकी मुरादें आ जाती हैं. बस हम पर फ़र्ज़ है कि सब्र,शुक्र और उसके ज़िक्र से गाफिल ना हों."

यामीन हमारे घर में मुलाजिम रह चुका था.. जब हमें दादी की देखभाल की वजह से कामवाली की ज़रूरत हुई तो रुखसाना को हमने नौकरी पर रखा. रुखसाना के साथ उसका शौहर भी बेरोजगार था तो उन दोनों को बाबा ने सारी देखभाल करके नौकरी पर रख लिया था. पर बाबा ने पहले यामीन को सेट कराया उसके बाद उसे नौकरी से हटाया था.

काश बाबा की तरह सब सोचते तो हमारे आसपास कोई भी भूखा या परेशान नहीं दिखता.अल्लाह ने अपने करम से अगर अपने बंदों को साहिब ए हैसियत करार दिया है तो बंदों को भी ख़ुशनुदिए ख़ुदा की ख़ातिर गरीबों की मदद करने जैसे नेक काम अंजाम देने चाहिये.

इससे ना सिर्फ़ अमीर गरीब के बीच की खाई कम होगी बल्कि इसके अलावा हमारे मुआशरे में प्यार.मोहब्बत,भाईचारा और ख़ुलूस भी क़ायम होगा.

घर आ गया था मैंने यामीन को उसका किराया देना चाहा मगर उसने लेने से इंकार कर दिया.बहुत इसरार के साथ मैंने उसे किराया दे दिया.. मैं इस तरह किसी की मेहनत को जा़या करने के बहुत खिलाफ़ हूँ.

माना कि बाबा ने उसके साथ बहुत नेकी की जिसकी वजह से वह मुझसे किराया नहीं ले रहा था पर किसी के साथ नेकी करके उसपर अहसान जताना या उस नेकी के बदले में उससे कोई उम्मीद रखना उसूलों के खिलाफ़ होता है. नेकी करके भूल जाना ही अच्छा होता है.

यामीन इतनी उमस भरी गर्मी में पाँच किलोमीटर दूर रिक्शा चलाकर लाया था तो उसका किराया देना बहुत ज़रूरी था. ये उसकी शराफत थी कि उसने किराया लेने से मना कर दिया.

बारिश का मौसम ज़रूर था लेकिन उमस बहुत बढ़ चुकी थी मैं खुद गर्मी से बहुत बेहाल थी.. घर पहुँचते ही मैं जल्दी से कूलर के सामने बैठ गयी.

"रुखसाना खाना यहीं ले आना" आज तबियत ठीक नहीं लग रही थी. एक तो कोर्ट में मूड ख़राब हो चुका था और गर्मी ने भी तबियत हलकान कर दी थी इसीलिये कूलर के सामने से हटने का मन नहीं था.

खाना खाकर आँखें बंद कर सोने की कोशिश करने लगी मगर नींद आँखों से कोसों दूर थी. लेटते ही आज सुबह कोर्ट का वाके़या आँखों के सामने आ गया था .किशोर के वकील मुझसे काफी ख़फ़ा थे. तलाक का केस था मैं किशोर की बीवी की वकील थी.

मेरी पहली कोशिश हमेशा इस तरह के केस में ये रहती थी कि किसी का भी घर ना टूटे. मैं कोर्ट से बाहर पहले दोनों पक्षों का मामला सुलझाने की कोशिश करती थी. कई तलाक के केस मैंने कोर्ट में जाने नहीं दिये बल्कि दोनों पक्षों में सुलह करा कर कई घर टूटने से बचा लिये.

पर शायद पुरुष प्रधान कचहरी परिसर में मेरी ये कोशिशें खल गयी थी. मेरा मज़ाक उड़ाया जाने लगा था मुझे शांति दूत कहकर बुलाया जाने लगा था . सही कहूँ तो मैं सिर्फ़ अपने बाबा की ख्वाहिश पर कचहरी में जाने लगी थी. मुझे वकालत में कोई इंट्रेस्ट नहीं था मगर बाबा की खुशी की ख़ातिर मैंने लॉ किया और कोर्ट जॉइन कर लिया

अपनी ख्वाहिशें अपने अंदर क़ैद कर ली थी. मुस्कराते हुए अपनों की ख़ुशी की ख़ातिर आसानी से अपनी चाहतों की कुर्बानी देना औरत को रब ने सिखाकर कर भेजा होता है तभी तो इतने बड़े फ़ैसले अपनों की ख़ुशी की ख़ातिर बड़े आराम से कर जाती है.

पुरानी बातें एक बार फिर सोचकर ख़ुद को दुःखी करना नहीं चाहती थी.वैसे भी जो यादें तकलीफ़ देती हैं और हमारे आज को दुखी कर देती हों तो बेहतर यही होता है कि उन यादों को ख़ुद पर हावी नहीं होने देना चाहिये.

मूड अच्छा करने के लिये मैंने टीवी ऑन कर लिया था.कल छुट्टी थी आज काफी थकान भी हो गयी थी इसलिए थोड़ी देर बाद डिनर करके मैं सोने चली गयी.

सुबह दस बजे माँ की आवाज़ से मेरी आँख खुली, "नूर बेटा, दस बज गये हैं.. तबीयत तो ठीक है आपकी.. कल से देख रही हूँ कुछ परेशान सी हैं."

"ओह, इतनी देर हो गयी. नहीं माँ, सब ठीक है, बस किशोर के केस ने थोड़ा टेंशन दिया हुआ है. समझ नहीं आ रहा कि अपने दिल की पहले सुनूँ या फिर अपने प्रोफेशन की. किशोर के वक़ील भी काफ़ी नाराज हैं मुझसे. पर मुझे उनकी नाराज़गी की कोई परवाह नहीं है.मुझे जल्दी ही कोई फैसला करना होगा. "

मेरा फोन बजने लगा था इसलिये माँ नाश्ता लगाने चली गयीं. मैंने तेज़ी से उठकर फोन उठाया.फोन सबा का था.

" हैलो, सबा, क्या हाल हैं? "मैंने उससे पूछा

" नूर, क्या हम अभी मिल सकते हैं बहुत ज़रूरी काम है मैं शाम तक इन्तेज़ार नहीं कर सकती हूँ.. "

" सबा, क्या हुआ,सब ठीक तो है ना,कुछ परेशान सी हो." मुझे उसकी फ़िक्र होने लगी थी

"नूर, मिलने पर बात करते हैं.. वहीं कैफे में मिलते है" ये कहकर सबा ने फोन काट दिया.

मुझे अब उससे मिलने की जल्दी थी तो मैंने माँ को आवाज़ देकर कहा," माँ, मेरा नाश्ता नहीं लगायें, मैं सबा से मिलने जा रही हूँ. उसे कुछ काम है मैं उसके साथ ही नाश्ता कर लूँगी."

मैं जल्दी से तैयार होकर सबा से मिलने के लिये निकल चुकी थी.

सबा कैफ़े में पहले से ही मौजूद थी.मुझे देखते ही तेज़ी से आकर मेरे गले लग गयी और रोने लगी.मैं थोड़ा हैरान थी.. पर कुछ देर मैंने उसे रोने दिया फिर उसे चुप कराते हुए कहा,

" सबा,ऐसे परेशान होकर रोया नहीं करते हैं. क्या हुआ मुझे बताओ. कोई प्रॉब्लम है तो मिलकर उसका हल ढूंढते हैं. इस तरह रोकर अपने आप को दुःखी करना ठीक नहीं है. चलो पहले तुम्हारी पसंद का अच्छा सा नाश्ता करते हैं.."

मुझे मालूम था सबा अच्छा खाना खाने, बनाने और खिलाने की बहुत शौकीन थी. कितना भी ख़राब मूड क्यूँ ना हो अच्छे खाने से वो नॉर्मल हो जाती थी. स्कूल में जब मेरा सारा होमवर्क करके वो थककर मुझसे नाराज हो जाती थी तो मैं उसे कैंटीन में एक प्लेट समोसा चाट और छोले भटूरे खिलाकर मना लेती थी.

अभी भी यही हुआ सबा अब नॉर्मल थी और बड़ी ख़ुश होकर नाश्ता ऑर्डर कर रही थी. 

नाश्ता करने के बाद मैंने सबा से पूछा, "क्या बात है, तुम इतनी परेशान क्यूँ हो घर में सब ठीक तो है ना?"

"नूर, कुछ भी ठीक नहीं है.. मेरी और यासिर की लड़ाई हो गयी है.. मैं कई दिनों से माँ के घर पर ही हूँ."

"क्या.........." मुझे समझ नहीं आ रहा था कि ये कैसे हो सकता था. सबा और यासिर दोनों ने पसंद की शादी की थी. इनकी मोहब्बतों की मिसालें दी जाती थीं.

मैंने ख़ुद को हैरानी की कैफ़ियत से बाहर निकालते हुए उससे पूछा,

" क्या हुआ था, जो बात यहाँ तक पहुँच गयी,. "

"होना क्या है, यासिर अब मुझ से प्यार नहीं करता है. पहले तो उसके पास मेरे लिये बहुत टाइम होता था लेकिन अब ज़रा सा भी वक़्त नहीं है. ऑफिस से जल्दी आ भी जाये तो कोई ना कोई मीटिंग होती है या फोन पर ईमेल चेक करना होता है

यहाँ तक की हर संडे को हम माँ के घर जाते थे अब बहाना करता था कि अगले संडे जाएँगे आज बहुत काम हैं.

एक दिन इसी बात पर हमारा झगड़ा हो गया वो अपनी मजबूरियाँ ही बताता रहा. अच्छी तरह जानती थी सब बहाने हैं उसके... इसीलिए मैं उसी दिन माँ के घर आ गयी. अब हर रोज वो फोन करता है.

पर मैंने एक बार भी उसका फोन नहीं उठाया. नूर, मैं यासिर से तलाक लेना चाहती हूँ इसीलिये तुम्हें यहाँ बुलाया था. "

सबा ने आखिरी बात करके मानो एक धमाका सा कर दिया था

" सबा, तुम होश में तो हो, क्या कह रही हो, इतनी छोटी छोटी बातों पर नाराज होकर तलाक नहीं ली जाती है. तुम्हारे पास क्या सबूत है कि यासिर झूट बोल रहा है. और क्या आंटी को तुमने अपने इस फैसले के बारे में बताया है."

मुझे सबा की नादानी पर गुस्सा आ गया था

"नूर, अभी मैंने किसी को नहीं बताया है. सिर्फ तुम्हें बताया है. "

" शुक्र है लड़की, कुछ तो अक्लमंदी का काम किया तुमने. "मैंने थोड़ी सी राहत की साँस ली.

इसी दौरान सबा के लिये चाय और मेरे लिये कॉफी आ चुकी थी. मैं फिलहाल अपनी कॉफी पीने में बिजी हो गयी और सबा चाय पीते हुए मोबाइल देखने लगी.

मैं बस यही सोच रही थी कि क्या किया जाये. मैंने अपना वाट्सएप खोला और यासिर से भी बात करने का इरादा किया. मैंने यासिर को मैसेज करके आज की सारी सूरत ए हाल उसको बता दी.

इत्तेफ़ाक से वह ऑनलाइन था.. उसका फौरन मेरे पास जवाब आ गया था.

 "नूर अब मेरा घर बचाना तुम्हारे हाथ में है.. मुझे अंदाजा है सबा तुमसे मिलने क्यूँ आयी है.. मैं सबा के बिना एक पल नहीं रह सकता हूँ. सबा पिछले कई दिनों से...

नूर बहुत तफ़सील बतानी है.. मैसेज टाइप करने में काफ़ी वक़्त लगेगा क्या मैं तुम्हें कॉल कर लूँ?"

यासिर की बेचैनी उसके मैसेज से साफ़ झलक रही थी.

मुझे सबा और यासिर के बीच सबकुछ ठीक करने का रास्ता मिल चुका था.मैंने यासिर को कॉल करने के लिये मैसेज कर दिया.

फिर सबा से कहा," सबा एक कॉल आ रहा है मैं फोन स्पीकर पर कर रही हूँ.. चुपचाप सुनती जाना..तुम्हें बीच में नहीं बोलना है .."

सबा हैरान सी मुझे देख रही थी. यासिर का फोन आ गया था. मैंने फोन स्पीकर पर किया.

" हैलो नूर, कैसी हो" उधर से यासिर की आवाज़ आयी

"मैं ठीक हूँ.. तुम कैसे हो "

" सबा के बिना कैसा हो सकता हूँ.. पता नहीं क्यूँ इतना नाराज है. नूर मैं दिन रात मेहनत कर रहा हूँ कि सबा को उसके घर जैसे सारे आराम दे सकूँ.उसके वालिदैन ने मेरी मोहब्बत का मान रखते हुये सबा की शादी मुझसे कर दी और सबा ने भी अपने घर के सारे ऐश ओ आराम छोड़कर मेरी मोहब्बत को चुना.. थोड़ा रुककर

अब मेरा फ़र्ज़ है कि मैं उन सब का मान रखूँ. बस इसी कोशिश में लगा हुआ था.. मानता हूँ कि इस दौरान सबा का थोड़ा ख्याल नहीं रख पाया.. लेकिन कुछ दिन की बात है ये सोचकर सबा को नहीं बताया.. मुझे लगा था कि सबा मेरी मजबूरी ज़रूर समझेगी.

नूर पिछले कई दिन से सबा को फोन कर रहा हूँ पर बात ही नहीं कर रही है. कल सबा की पसंद का घर खरीद लिया है.. सबा को वो घर बहुत पसंद था शादी से पहले जब भी हम उस घर के सामने से निकलते थे सबा कहती थी, "यासिर, कितना खूबसूरत घर है.. अभी तक सेल नहीं हुआ.. शादी के बाद तुम मेरे लिये ये घर खरीद लेना फिर हम इसी घर में रहेंगे.

मुझे मालूम था सबा मज़ाक कर रही है पर मैंने उसी दिन से इस घर को लेने की कोशिश शुरू कर दी थी "

बस इस घर की डील फाइनल होने के लिये कुछ पैसे कम पड़ रहे थे तो मैंने एक और प्रोजेक्ट पर काम करना शुरू कर दिया

सोचा था कुछ दिन की बात है सबा को ये सरप्राइज देकर बाद में उसे सब बता दूँगा. पर सबा ने मुझे ही सरप्राइज दे दिया." 

ये कहते कहते यासिर की आवाज़ भर्रा गयी थी और वो रोने लगा था.. उधर सबा भी लगातर रोये जा रही थी इस वक़्त मुझे उन दोनों को अकेला छोड़ना बेहतर लगा.

" यासिर, दिल छोटा ना करो.. सबा को यहाँ लेने आ जाओ अभी.. यहाँ से वो तुम्हारे साथ ही जायेगी उसके अपने घर जो तुमने बड़ी मेहनत से उसके लिये खरीदा है.. सबा ने सब सुन लिया है फोन स्पीकर पर था..ये लो बात करो सबा से.."

मैं सबा को अपना फोन देकर कैफे के लॉन में आ गयी. और इधर उधर टहलने लगी. आज बहुत दिनों बाद ख़ुद को बहुत हल्का महसूस कर रही थी. सबा और यासिर के लिये मैं बहुत खुश थी.

किशोर के केस ने...... किशोर का नाम याद आते ही मुझे एहसास हुआ किशोर की बीवी-बच्चों को भी तो ऐसा ही लगेगा अगर मैं उनकी सुलह करवा देती हूँ. फिर क्यूँ इस बार मैं किशोर के वकील की नाराज़गी का ख्याल कर रहीं हूँ.. क्यूँ मैं अपने रास्ते से पीछे हट रही थी..सब मुझे कचहरी में शांति दूत बुलाते हैं तो क्यूँ बुरा मानकर अपनी इमेज बदलने की सोचने लगी.

क्यूँ मुझे कई दिन लगे किशोर के केस के लिये...अगर कचहरी में सब मज़ाक उड़ाते हैं कि मैं शांति दूत हूँ तो उड़ाते रहें मुझे क्यूँ बुरा लगा....

हाँ.. हाँ मैं शांति दूत हूँ. अब जब तक वकालत करती रहूँगी किसी का घर टूटने से बचाने की हर कोशिश करुँगी. सारी धुन्ध छंटने लगी थी. सबा-यासिर के केस ने मेरी कई दिनों की बेचैनी को ख़त्म कर दिया था.

यासिर सबा को लेने आ गया था. सबा मुझे ढूँढते हुए लॉन में ही आ गयी थी.

"बहुत शुक्रिया नूर" यासिर बहुत खुश था

"शुक्रिया कहने की कोई बात नहीं है ये मेरा फ़र्ज़ था .. कोई तकल्लुफ़ नहीं.. बस हमेशा साथ रहो और ख़ुश रहो." मैंने मुस्कराते हुए कहा

"वकील साहिबा आपकी फीस क्या होगी" सबा मेरे गले लगते हुए बोली

"एक ब्लैक कॉफी विदाउट शुगर "हम सब हँसने लगे

दोनों बहुत इसरार कर रहे थे कि मैं उनके साथ चलूँ लेकिन मैंने तय कर लिया था कि मुझे किशोर का केस आज ही निपटाना है. सबा यासिर जा चुके थे. मैंने किशोर को फोन किया और उसी कैफे में उसे फौरन आने के लिये कहा.

फिर किशोर की बीवी को भी फोन करके वहीं बुला लिया.

तक़रीबन आधे घंटे बाद दोनों आ गये थे. किशोर अपने बीवी बच्चों से दो महीने से अलग रह रहा था. उन सबके बुरे हाल को देखकर पिघल गया . "रीना, ये तुमने और बच्चों ने अपना क्या हाल बना लिया है."किशोर उदास हो गया था

"किशोर जब हमारी ख़ुशी हमसे छिन रही है तो हम अच्छे कैसे रह सकते है." रीना हिचकियों से रोने लगी थी

उसको देखकर उसके बच्चे भी रोने लगे. किशोर ने दौड़कर तीनों को गले लगा लिया. सब रो रहे थे. मेरी आँखें भी नम हो गयीं थी.

 कैफ़े के वेटर हैरान से थे क्यूँकी इससे पहले सबा को रोता देख रहे थे और अब किशोर की फॅमिली को रोता देख रहे थे.

मैनेजर क्यूँकी मुझे जानता था तो उसने अपने वेटरस् की हैरानी दूर कर दी.सब किशोर के परिवार के मिलने की खुशी में तालियां बजाने लगे.

मैनेजर ने मुझे और किशोर के परिवार को अपने कैफ़े की तरफ़ से पार्टी दे डाली. फिर मुझे मेरा पहला बिल वापस कर दिया. मैंने बहुत मना किया. किशोर ने भी बहुत मना किया लेकिन वह नहीं माना.

आख़िरकार किशोर की फॅमिली और वो राज़ी हो गये. मैं पहले ही नाश्ता कर चुकी थी तो बस मैंने उन सब का साथ देने के लिये कॉफी मँगवा ली. सब बहुत ख़ुश थे.आसपास के लोग भी बहुत ख़ुश लग रहे थे. कैफ़े का माहौल एक ताजगी का एहसास करा रहा था.

मैं बस यही महसूस कर रही थी कि किशोर ने ख़ामोशी तोड़ी.

मैडम, अच्छा हुआ मेरा केस सुलझने में इतनी देर हो गयी. नहीं तो हम कभी मिल नहीं पाते.

एक छोटे से झगड़े को मेरी सौतेली माँ ने जिसे मैंने सगी माँ की तरह चाहा इतना बड़ा कर दिया.. मैंने रीना को कभी उसके आगे बोलने नहीं दिया.. सारी सच्चाई जानते हुए भी मेरे घर से निकालने पर ख़ामोशी से चली गयी.. कितना अंधा हो गया था मैं अपनी सौतेली माँ की मोहब्बत में.. दो महीने से मेरे बीवी बच्चों को कितना दुःख उठाना पड़ा. अगर भगवान ना करे तलाक हो जाता तो इनका क्या होता.. कहाँ जाते.. "किशोर फूट फूटकर रोने लगा.

" किशोर, जो हुआ भूल जाओ, बात बिगड़ने से बच गयी है. बस रब का शुक्र करो. रोना बंद करो..खुश रहो. तुम्हारी सौतेली माँ ने जो किया वो गलत था. लेकिन तुम भी कम दोषी नहीं हो. देखो माँ-बाप और बीवी का आपस में कोई मुकाबला नहीं होता. दोनों, दो हाथों की तरह होते हैं.

ना तुम माँ बाप को छोड़कर उनकी दुआओं के बग़ैर तरक्की कर सकते हो और ना ही बीवी बच्चों के बग़ैर ख़ुश रह सकते हो. माँ बाप अगर तुम्हारा सुकून हैं तो बीवी तुम्हारे चेहरे की मुस्कराहट है

जहाँ माँ बाप का ख्याल रखना तुम्हारा फ़र्ज़ है वहीं अपनी बीवी की इज़्ज़त और मान रखना भी तुम्हारा फ़र्ज़ है. उससे मोहब्बत करना उसका ख़याल रखना तुम्हारी जिम्मेदारी है.

तुम्हारी बीवी तुम्हारा और तुम्हारे परिवार का ख्याल तो हर हाल में रखेगी क्यूँकी हमारे समाज में ल़डकियों की परवरिश में बचपन से कुर्बानी देना सिखाया जाता है..

पति की सेवा ,ससुराल में रहने के तरीक़े सब उस वक़्त से बताया जाता है जब उसे इन सबकी समझ भी नहीं होती है. तो लड़कों को आने वाली बीवी की इज़्ज़त करना, उसका मान रखना बचपन से क्यूँ नहीं बताया जाता है?उसके माँ बाप लड़के के भी माँ बाप हैं ये क्यूँ नहीं बताया जाता?क्यूँ उसे बताया जाता है कि वह अपने ससुराल में मेहमान है? क्यूँ मेहमान बनाकर एक अजनबीपन पैदा कर दिया जाता है?

 रिश्ता जुड़ते ही शुरू हो जाता है बेटा.. शादी हो रही है अब माँ बाप को भूल ना जाना, बुआ को भूल ना जाना, अपने बुजुर्गों को भूल ना जाना..

क्यूँ नहीं कहा जाता बेटा तेरी ज़िंदगी में आने वाली की हर ख़ुशी तुझसे जुड़ रही है तू मुस्कुरायेगा तो वह मुस्करायेगी, तू ख़ुश होगा तो वह ख़ुश होगी, तू दुःखी होगा तो वह तुझसे ज्यादा दुःखी होगी..

उसका ख्याल, उसका मान सम्मान तेरी जिम्मेदारी है. क्यूँ नहीं बताया जाता कि बेटा तेरी मोहब्बत और तेरे दिये मान सम्मान से ही उसके दिल में हमारे लिये मोहब्बत और अपनापन बढ़ेगा.

क्यूँ मायके और ससुराल में सरहदें खींच दी जाती हैं? किस तरह आसानी ये कह दिया जाता है मायके को भूल जाओ अब यही तुम्हारा घर है..

क्या जबरदस्ती किसी के दिल में इज़्ज़त और मोहब्बत पैदा की जा सकती है? जहाँ खून के रिश्ते नहीं होते वहाँ नये रिश्ते मोहब्बत से, हमदर्दी से,एक दूसरे को मान सम्मान देने से बनते हैं एक दूसरे का ख्याल रखने से बनते हैं.

एक लड़की जो जिम्मेदारियों की दहलीज पर पाँव रखकर अपने घर में अभी सिर्फ़ आयी है, क्या होगा, कैसे वो सबको संभालेगी, कौन कैसा है उसको कुछ नहीं पता..

ज़िम्मेदारी निभाने का कोई तजुर्बा नहीं उसके बाद भी ताने सुनते हुए, झिडकियां खाते हुए, पति की तल्खी और बुरा व्यवहार सहते हुए, अपने अरमानों को अपने दिल में क़ैद करके, अपने मायके में अपने पति के घर का मान बनाए रखते हुये सबका ख्याल रख सकती है तो क्यूँ नहीं सब मिलकर एक लड़की का ख्याल रख सकते हैं?क्यूँ फिर आने वाली लड़की से इतनी उम्मीदें??? क्यूँ??????

किशोर, तुम्हारी बीवी अपनी सारी खुशियाँ ,माँ बाप,भाई, बहनें, अपनी सहेलियाँ और बचपन की यादें सब कुछ छोड़कर तुम्हारे साथ आ गयी तो अब तुम्हारा क्या फ़र्ज़ बनता था उसके लिये? अगर ये कभी सोच लेते तो ये नौबत नहीं आती..

कभी एक पल के लिये तसव्वुर करना कि कैसा लगेगा जब तुम्हें अपनी खुशियाँ, माँ बाप, भाई, बहन, और बचपन की यादें छोड़ने के लिये कहा जाये.. क्या कर सकोगे ऐसा.. नहीं.. क्यूँकी सिर्फ़ माँ के इतना कह देने से कि तुम्हारी बीवी तुम्हें उससे अलग करना चाहती है तुम भड़क गए और बिना सोचे समझे उसे घर से निकाल दिया.

किशोर अगर बहुत ध्यान और गहराई से एहसास किया जाये तो देखोगे कि रीना विदाई के वक़्त ही तुम्हारे लिये कितनी बड़ी कुर्बानी देकर आयी है.

बस अगर इन्हीं छोटी-छोटी सी बातों का एहसास सबके दिलों में होता तो शायद किसी का घर टूटने की नौबत नहीं आती. या फिर कोई खिलखिलाती हुई बेटी ख़ामोश सी, चेहरे पर निर्जीव से भाव लिये अपने काम में ना लगी रहती.

 जब ईमानदारी से सब अपने फ़र्ज़ निभाने लगेंगे तब सबको अपने हक़ ख़ुद बा ख़ुद मिल जाएँगे. घर में अगर सुकून नहीं है तो दुनिया में कहीं भी चले जाना मगर कहीं सुकून नहीं मिलेगा.

बेहतर यही है कि अपने घर को ही खुशहाल बनाने की सच्ची कोशिश करें. दिल बड़ा रखें..एक दूसरे की गलतियों को माफ़ कर दें "

मुझसे अब बोला नहीं जा रहा था मैं बहुत दुःखी थी मुझे हॉस्पिटल में पड़ी निशात आपा का ख्याल आ गया था.

किशोर सुन्न बैठा था जबकि रीना रो रही थी. आसपास सब सन्नाटा छा गया था. सब हमें ही देख रहे थे.

अचानक तालियों की आवाज़ एक बार फिर कैफ़े में गूँज रही थी.. इसबार सब मेरी बात से सहमत होकर तालियाँ बजा रहे थे.

किशोर ने रीना से सबके सामने अपने बर्ताव की माफ़ी माँग ली. रीना ने दिल से उसे माफ़ कर दिया. आज तो कैफ़े में मानो कोई सुपरहिट फिल्म चल रही थी. मैं किशोर और रीना को हमेशा साथ और ख़ुश रहने की दुआएँ देकर वहाँ से निकल आयी.

माँ परेशान होकर बार बार कॉल कर रहीं थीं. मुझे काफी देर हो गयी थी. अचानक से बारिश भी शुरू हो गयी थी. घर से निकलते वक़्त मौसम सही था तो छाता साथ नहीं लिया.

बादल मानो ये कहते हुए मुँह चिढ़ा रहे थे कि बारिशों के मौसम में कभी कभी सही मौसम में भी छाता रख लेना चाहिये. गाड़ी में बैठते हुए माँ को फोन किया

"माँ रास्ते में हूँ,आ रही हूँ, दो केस एक के बाद एक हल हुए हैं इसीलिये देर हो गयी है. आपको घर आकर सब बताती हूँ."

"नूर, निशात की कोई खैरियत मिली? आज वहाँ भी जाना था."

माँ के पूछने से याद आया कि आज निशात आपा को हॉस्पिटल देखने जाना था.

"नहीं माँ, अभी तक कोई खैरियत नहीं मिली है. मैं घर आकर पता करती हूँ. "

" ठीक है नूर जल्दी घर आओ.. बाबा परेशान हो रहे हैं कि तुम्हें कहाँ देर हो गयी है "

" ओके, माँ बस पाँच मिनट में पहुँच रहीं हूँ.. बाई" कहकर मैंने फोन रख दिया.

घर पहुँचते ही माँ और बाबा को मैंने सारी बातें बतायी. दोनों बहुत खुश थे. वहीं माँ सबा की नादानी पर थोड़ा उससे नाराज सी लगीं.बाबा ने निशात आपा के शौहर को फोन करके उनकी खैरियत पूछ ली थी. वो अभी हॉस्पिटल में ही थीं. निशात आपा बाबा की सगी बहन की बेटी थीं और मेरी फर्स्ट कजिन थी. शाम को माँ और बाबा के साथ उनको देखने जाना था. इसीलिये मैं जल्दी से लंच करके थोड़ी देर के लिये आराम करने अपने रूम में आ गयी थी. 

 हॉस्पिटल में....

"आपकी पत्नी का ब्लड शुगर और हिमोग्लोबिन बहुत लो हो गया है. ब्लड चढ़ाना होगा. काफी कमज़ोर हैं वो इसी लिए बेहोश हो गयी थीं.वैसे अब घबराने वाली बात नहीं है वो ठीक हो जाएगी लेकिन अभी दो दिन और यहीं हॉस्पिटल में रुकना होगा. अभी फिलहाल हमने ब्लड चढ़ाना शुरू कर दिया है "

डॉक्टर खुराना सलीम को सब तफ़सील बताकर चले गये.

सलीम एक थके हारे इंसान की तरह इमर्जेंसी रूम के बाहर पडी कुर्सी पर बैठ गया.दीवार से सर टिकाकर आँखें बंद करके बैठा ही था कि आंखों के सामने एक बिन्दु सा आ गया जो धीरे धीरे पुरानी यादों में ले जाने लगा.

कैसे अपने काम में व्यस्त होकर बच्चों को पालने की जिम्मेदारियां,उनके होमवर्क कराने, उनके इम्तिहान की फ़िक्र फिर पत्नी की तकलीफ़ से लापरवाही, उसकी बातों पर ध्यान ना देना, एक कान से सुनकर दूसरे कान से निकल देना,अगर उसने तबीयत खराब बता भी दी तो वापस उसी को उसकी खुद की देखभाल ना करने पर खूब गुस्से के साथ एक लंबा सा भाषण दे देना, अक़्सर सारे काम उसी पर छोड़ देना,दावतें, दोस्त, रिश्तेदार,घर के सारे फंक्शन, सारे त्योहार सब पत्नी के जिम्मे कर दिए थे.

सलीम ने फौरन आँखें खोल दी. कुर्सी से उठकर हॉस्पिटल के काॅरिडोर में टहलने लगा और मन में ख़ुद से ही ख़फ़ा होकर कहने लगा,"घर में एक मशीन की तरह निशात दिन भर और देर रात तक काम करती रहती थी. कभी मैंने उसकी पसंद नापसंद का ख्याल नहीं रखा उससे पूछा तक नहीं कि वो कैसे जीना चाहती है,उसके सपनों का घर वो कैसा रखना चाहती है..मुझसे कभी अपनी तारीफ़ सुनना चाहती होगी?

मैं उससे प्यार से उसका हाल पूछूंगा ये भी उम्मीद करती होगी. एक मैं ही तो उसकी सारी दुनिया हूँ जिसके लिए ख़ामोश होकर प्यार से वो अपने फ़र्ज़ निभाती रही. मेरी मोहब्बत की ख़ातिर अपने सारे ख़्वाब भी शायद कहीं दिल में दबा दिए होंगे.. उफ्फ्फ वक़्त के साथ मैं कितना ख़ुदगर्ज बन गया जबकि निशात इतनी कुर्बानी दे कर हम सबके चेहरों की मुस्कराहट बन चुकी है."

सलीम रातभर निशात के पास हॉस्पिटल में बैठा रहा था. निशात कितनी थकी हुई लग रही थी. आज ही सारे एहसास के साथ बहुत गौर से सलीम निशात को देख रहा था और उसे ख़ुद पर बहुत गुस्सा आ रहा था.बच्चों की फ़िक्र भी हो रही थी.वो घर में अकेले थे. निशात ने कितनी आसानी से ऐसी सब फ़िक्रों से उसे आज़ाद किया हुआ था.

सलीम इन तीन दिनों में समझ चुका था कि निशात ही उसके दिल की खुशी है, उसके घर की रौनक है उसके बच्चों का सुकून है और उसके चेहरे की मुस्कराहट है.सलीम ख़ुद से ये वादा कर चुका था कि वो अब से अपने चेहरे की मुस्कराहट का बहुत ख़्याल रखेगा.


"नूर जल्दी करो देर हो रही है. सलीम को पाँच बजे हॉस्पिटल पहुँचने का बोल दिया था. पाँच तो यही बज गये हैं." बाबा वक़्त के बड़े पाबंद है ज़रा भी देर होती है तो उनका मूड ख़राब होने लगता है..

मैंने ख़ुद से ही बात करते हुए बाहर आकर बाबा से कहा,

"बाबा आप सब गाड़ी में बैठिए मैं बस आ गयी हूँ."

वैसे मेरा हॉस्पिटल जाने का मन नहीं था. सलीम भाई पर बहुत गुस्सा आ रहा था. सिर्फ आपा की वजह से जा रही थी. जिस दिन आपा की तबीयत ख़राब हुई थी उसी दिन उनको हॉस्पिटल में एडमिट कराने के बाद मेरी सलीम भाई से बहस हो गयी थी और गुस्से में मैं बहुत कुछ कह आयी थी. लेकिन बाद में थोड़ा शर्मिंदा हुई थी कि वो वक़्त इस तरह की बातें करने का नहीं था.

फिर अगले दिन फोन करके सॉरी बोल दिया था पर मेरा गुस्सा अभी भी बना हुआ था. रास्ते भर ख़ुद को समझाती रही कि आज हॉस्पिटल में ख़ामोश ही रहना है. ऐसा ना हो कि एक बार फिर गुस्से में कुछ और बोल जाऊँ.

हॉस्पिटल आ गया था. हम सब आपा के रूम में जैसे ही पहुँचे वो माँ बाबा और मुझे देखकर रोने लगीं. मैं जल्दी से उनका हाथ थामकर उनको चुप कराने लगी, "आपा ऐसे नहीं रोते हैं. सब ठीक है, इंशाअल्लाह आप जल्दी ही घर जायेंगी."

"निशात कल घर जा रहे हैं डॉक्टर ने कह दिया है सब रिपोर्ट्स नॉर्मल हैं." सलीम भाई ने रूम में आते हुए हम सबको बताया.

"ख़ुदा का शुक्र है मेरी बच्ची ठीक हो गयी." माँ निशात आपा को गले लगाकर बोलीं

" बस बेटा, अब अपना बहुत ख्याल रखना होगा तुम्हें. "बाबा ने आपा को नसीहत की

मैंने एक बार फिर नाराज़गी से सलीम भाई को देखा. वो मेरे इस तरह नाराजगी से देखने को शायद समझ गए थे. "नूर, इन चार दिनों में निशात के साथ की गयी हर ज्यादती याद आयी. तुमने उस दिन जो कुछ कहा उस पर काफ़ी देर बैठ कर गौर करता रहा.. मुझे एहसास हो गया था कि आज निशात की जो भी हालत हुई है मेरी लापरवाही का नतीजा है" सलीम भाई रो देने को थे.

"नहीं बेटा ऐसे उदास नहीं होते.. बस भूल जाओ सब... सुबह का भूला शाम को घर आ जाये तो उसे भूला नहीं कहते हैं. "माँ ने जल्दी से सलीम भाई को सम्भाल लिया.

" सलीम, अपने आप को ज़्यादा अजि़यत मत दिए..इन चार दिनों में आपका क्या हाल हो गया है. मुझे बिलकुल अच्छा नहीं लगा. बस अब पुरानी बातों को ना याद कीजिये " आपा अपनी कमज़ोर सी आवाज़ के साथ बोलीं

" आपा आप चाय लेंगी.. माँ बहुत अच्छी चाय बनाकर लायी हैं. बातों बातों में चाय निकालना याद ही नहीं रहा. "मैंने अब ये टॉपिक चेंज करना ही बेहतर समझा था"

थोड़ी देर में हम सब चाय पी रहे थे. काफ़ी बातें हुईं.. सब ठीक हो गया था. आपा और सलीम भाई से इजाज़त लेकर हम घर वापस आने के लिये निकल चुके थे. रात काफ़ी हो गयी थी. माँ बाबा थक गए थे तो ख़ामोश ही थे. मैं भी बात करने के मूड में नहीं थी.

मैं खामोशी से ड्राइव करते हुए यही सोच रही थी कि सोच और एहसास से रिश्ते बनते हैं और बिगड़ते हैं. अगर हमने अपनी सोच को इजाज़त दे दी कि सामने वाला ही गलत है तो उसकी मजबूरी या उसकी मोहब्बत का एहसास नहीं होगा. ऐसे में किसी भी अच्छे रिश्ते में दरार आना लाज़िम है.अगर हमें किसी रिश्ते से सच्ची मोहब्बत है तो उस रिश्ते पर यकीन की मंज़िलें भी बुलंद होनी चाहिये.

बिना सच जाने इल्ज़ाम देना, ताने देना या सिर्फ़ अपनी ही फ़िक्र करना, अपने हक़ याद रखना लेकिन उन रिश्तों के लिये जो फ़र्ज़ हैं उन्हें भूल जाना यही सब बातें किसी भी रिश्ते की नींव को खोखला कर देती हैं.सच्चे रिश्ते बनने में बहुत वक़्त लगता है लेकिन उन्हें तहस नहस करने के लिये चंद लम्हें काफ़ी होते हैं. इसीलिये अपने गुस्से पर काबू रखना बहुत जरूरी है. गुस्से में लिये गये फ़ैसले हमेशा शर्मिंदगी का सबब बनते हैं.

सबा, किशोर और सलीम भाई सबके केस अलग थे मगर सब में एक बात कॉमन थी और वो ये थी कि बेबुनियाद गलत सोचें मन में घर कर गयी थीं जिससे प्यार का एहसास ख़त्म होने लगा था .

ख़ैर अंत भला तो सब भला..अब इस पर ज़्यादा सोचना ख़ुद को ही थकाना होगा. मैं आज बहुत खुश थी और बस यही दुआ कर रही थी कि अल्लाह हम सबकी खुशियों को बरकरार रखे. हमें सही और गलत समझने की तौफीक अता करे जिससे हम अपने हर रिश्ते को वक़्त के साथ और मज़बूत बना सकें. साथ ही प्यार, इज़्ज़त और अपने अच्छे अख़लाक़ से अपने सारे रिश्तों में मिठास क़ायम रख सकें.



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