बात सिर्फ एहसास की है
बात सिर्फ एहसास की है
"बात एहसास की होती है तभी मोहब्बतें क़ायम की जा सकती हैं। अगर एहसास ही ख़त्म हो गए हों तो बस बैठकर निकाले जाओ कीड़े।।औऱ ख़ुद का ही खून जलाये जाओ"अम्मा जी एक और पान मुँह में रखते हुए बड़ी नागवारी से बोलीं। कुछ देर पान मुँह में इधर उधर चबाने के बाद तख्त पर बैठे बैठे ही पिच्च से पान की पिचकारी आँगन की तरफ उछाल दी।
निशाना सटीक था सारी पिचकारी आँगन में ही गिरी मजाल जो एक बूंद भी नाफरमानी करके बरामदे में ठहरी हो। बारिशों के मौसम हैं।। अभी भी खूब तेज़ बारिश हो रही है।। सब पिचकारी साफ़ हो ही जाएगी। मैं चुपचाप बस अम्माँ को देख रही थी।
"भला बताओ मिर्ज़ा बेग पर क्या आफ़त आयी रहती है।।क्यूँ बन्ने नवाब के पीछे पड़ा रहता है।। मरदूद क्यूँ क़लम से इतनी नफ़रतें उगलता है उसके खिलाफ़। ना कोई मतलब ना कोई वास्ता।। ये अपनी दुनिया में खुश वो अपनी दुनिया में खुश।। अरे ये नाशुकरापन है ख़ुदा की दी गयी नेअमत का। अपने कलम के हुनर से प्यार बाँटे,मोहब्बतें लिखे और अपने तजुर्बे लिखे जो नयी नस्लों के कुछ काम आये। "अम्माँ तीसरा पान लगाने चलीं तो मैंने टोका,
" अम्माँ, बस करें।। ग़ुस्सा थूक दें,। ना मिर्ज़ा बेग हमारे रिश्तेदार है और ना ही बन्ने नवाब से कोई मतलब वास्ता।। क्यूँ अपनी जान हलकान करती हैं। मैं तो कहती हूँ ये अपने शहर की ख़बरों वाला अख़बार ही बंद करवा दें। "
अचानक बाहर बिजली बहुत तेज़ आवाज़ के साथ चमकी मैं बहुत बुरी तरह चौंक गयी थी। ख़ुद को सम्भाल के अम्माँ पर नज़र पडी तो मुझे खा जाने वाली नजरों से घूर रहीं थी। मैंने दिल में सोचा," बेड़ा गर्क करवा लिया है बीबी।। अब इस बिजली की कड़क से कैसे बचोगी "
" ये जो तुम जैसी आजकल की पौध है इसको तो किसी की परवाह ही नहीं करनी है।।तुम्हें कहाँ समझ आएगा कि दुनिया में सुकूं होगा तो देश में सुकूं होगा देश में सुकूं होगा तो स्टेट में सुकूं होगा स्टेट में सुकूं होगा तो शहरों में सुकूं होगा शहरों में सुकूं होगा तो घरों में सुकूं होगा।। अब बता मुझे क्यूँ ना मिर्ज़ा बेग की इस हरकत पे नाराज होऊँ।। और फिर जो बात कच्ची-पक्की और झूठी सच्ची दलीलों को सुनकर बगैर सोचे समझे लिखी हो।। जिसको पढ़कर किसी का दिल दुखता हो तो क्यूँ मैं उस बात को सही कहूँ। "अम्माँ बिजली से ज़्यादा कड़क रही थीं।
पूरा ब्रह्माण्ड हिलाने को तैयार थीं। मेरी मजबूरी ये थी कि माँ-पापा किसी काम से गये थे तो उनके वापस आने तक मुझे अम्माँ को अकेला नहीं छोड़ना था। उनके साथ ही बैठना था। अम्माँ, पापा की खा़ला थीं। आजकल हमारे यहाँ मेहमान आयीं हुई थीं। हालाँकि उनका घर इसी शहर में था। बस कुछ दिनों के लिये जगह बदलने की गरज़ से यहाँ आ गयीं थीं। सब उन्हें अम्माँ कहकर बुलाते थे। अम्माँ बहुत कड़क थी। गुस्से की बहुत तेज़ थीं। मैं उनको देखकर यही सोच रही थी कि अभी इस उम्र में गुस्से का ये हाल है तो जवानी में ये कैसा होगा सवाल ज़हन में उभरा ही था कि अम्माँ बाहर बादलों की गरज के साथ साथ अंदर गरजीं
"बीबी, बुढ़ापे ने मजबूर कर दिया नहीं तो आज ही ये अख़बार लेकर मिर्ज़ा बेग के पास जाके पूछती बन्ने नवाब अगर इस शहर में आके बस गए थे तो उनके यहाँ रहने से आपके गुर्दे क्यूँ छिले जाते हैं।"
"अम्माँ आख़िर क्या लिखा है मिर्ज़ा बेग ने।।" मैं हथियार डाल चुकी थी। अब बात की तह तक जाकर ही अम्माँ का गुस्सा शान्त किया जा सकता था। बारिश काफी तेज़ हो गयी थी। माँ पापा को आने में वक़्त लग जायेगा।। छोटे शहरों की गालियों में बारिश के मौसम में नालों के पानी उबलने से गालियों में पानी भर जाता है और इस वजह से बहुत ट्रैफिक जाम हो जाता है। फ़िलहाल अम्माँ के मुद्दे और गुस्से दोनों की जानकारी लेना ज़रूरी हो गया था।
"सुनो, बड़े मियाँ लिखते हैं कि शहर के प्रतिष्ठित व्यापारी बन्ने नवाब इस शहर के पुश्तैनी रहने वाले नहीं हैं। इसीलिये उन्हें शहर की फ़िक्र नहीं हैं। इसके साथ ही वह आज भी अपने ही शहर के रीति रिवाजों और रहन सहन को तरजीह देते हैं। इसीलिये या तो उन्हें ये शहर छोड़ देना चाहिए या फिर अगर यहाँ रहना है तो इस शहर के तौर तरीकों को अपना लेना चाहिये। मेरी बन्ने नवाब से कोई जा़ती दुश्मनी नहीं है परंतु इस शहर का एक ज़िम्मेदार सदस्य होने के नाते बन्ने नवाब की ओर सबका ध्यान दिलाना मेरा फ़र्ज़ है। बाकी ये शहर समझदार है।।।।। ना अब इससे आगे मैं नहीं पढ़ सकती हूँ , बहुत उल्टा सीधा लिखा हुआ है। ले ख़ुद ही पढ़ ले। "अम्माँ ने अख़बार मेरी तरफ बढ़ा दिया।
आर्टिकल पढ़कर मुझे भी हैरत हो रही थी," इतने समझदार व्यक्तित्व के मालिक भी कभी कभी कैसी ओछी और छोटी बात कर जाते हैं। अरे दोनों शहर में काफ़ी प्रभावशाली हैं उन्हें एक और एक ग्यारह की तरह रहना चाहिये ना कि दुश्मनों की।
मैं धीरे से ख़ुद से ही बोली थी मगर अम्माँ ने सुन लिया," देखा मैं ना कहती थी कि जो भी इस आर्टिकल को पढ़ेगा उसे गुस्सा ज़रूर आएगा या फिर दुःख होगा ।अब कोई उन बड़े मियाँ से पूछे कि आपने एक ज़िम्मेदार शहरी होने के नाते अपनी जहरीली कलम से पूरे शहर में बन्ने नवाब के लिये जो नफरत का जहर भेजा है उस ज़हर से उठी हुई नफ़रतों का जिम्मेदार कौन होगा? क्या जिम्मेदारी ऐसे ही निभायी जाती है? मुझे बताएँ तो ज़रा फ़रिश्ते कब मा़ज़ल्लाह आपके पास वही लेके नाजि़ल हो गये कि बन्ने नवाब के सारे इख्तियार आज से आपको दे दिये गये हैं इनके हर सही गलत का फैसला आप करेंगे। ये कहाँ रहेंगे या कैसे रहेंगे आप तय करेंगे।
जब ख़ुदा लोगों के ऐब और गुनाहों को किसी के सामने जाहिर नहीं करता तो ये कौन होते हैं कि झूठी आधी अधूरी ज़हर में बुझी हुई बातों से दूसरों के किरदार, रहन सहन, पहनावे और उनके रस्मों रिवाज में ऐब निकालें।मिर्ज़ा बेग को समझना चाहिये कि जो जैसा बोता है वैसा ही काटता है। वो आज शहर में अगर नफ़रत बो रहे हैं तो नफ़रत ही उन तक वापस आएगी। बन्ने नवाब को लोग बाद में तय करेंगे कि उन्हें क्या समझें लेकिन उससे पहले ये बड़े मियाँ अपनी छोटी सोच से अपनी इज़्ज़त ज़रूर कम करवा लेंगे।
बन्ने नवाब शहर की तरक्की के लिये कई साल से हर मौक़े पर आगे रहते हैं और ये उन्हें पराया कह रहे हैं। जब किसी दिन बड़े मियाँ का अपना ही इनको पराया कहेगा तब इनको एहसास होगा कि दिल कैसे दुखता है।। कैसा महसूस होता है। वक़्त किसी का हिसाब नहीं रखता।
बड़े बड़े ताकतवर वक़्त के आगे बेबस हुए हैं।अरे कोई उन बड़े मियाँ से पूछो क्या जियो और जीने दो पर चलना इतना मुश्किल है? क्या किसी को अपना कहने या उससे मोहब्बत करने के लिये उसे पूरा बदलना ज़रूरी है।। फिर ये सच्ची मोहब्बत या सच्चा अपनापन कैसे? " अम्माँ ने एक बार फिर पान की पिचकारी आँगन में छोड़ी।।
निशाना इस बार भी सटीक था। नाजाने अम्माँ दुःखी सी लग रही थी। बन्ने नवाब को पराया कहे जाने का दुख था या शायद अपने मुल्क में पराया कहे जाने का दुःख था या फिर पड़ोसी मुल्क में बसे अम्माँ के भाई को हिन्दुस्तानी कहकर पराया किये जाने का दुख था बहरहाल अम्माँ की दलीलों, सवालों और गुस्से का मेरे पास कोई जवाब नहीं था। मैं उनके लिये चाय बनाकर लाने का कहकर किचन में आ गयी थी।बारिश रुक चुकी थी।। अम्माँ अब बशीर बद्र के ये अशआर गुनगुना रहीं थीं
ख़ुदा हम को ऐसी ख़ुदाई न दे
कि अपने सिवा कुछ दिखाई न दे
ख़तावार समझेगी दुनिया तुझे
अब इतनी भी ज़्यादा सफ़ाई न दे
हँसो आज इतना कि इस शोर में
सदा सिसकियों की सुनाई न दे
ग़ुलामी को बरकत समझने लगें
असीरों को ऐसी रिहाई न दे
मेरे साथ तुम भी दुआ करो
यूँ किसी के हक़ में बुरा न हो
कहीं और हो न ये हादसा
कोई रास्ते में जुदा न हो
वो फ़रिश्ते आप ही ढूँढिये
कहानियों की किताब में
जो बुरा कहें न बुरा सुने
कोई शख़्स उन से ख़फ़ा न हो।
