NOOR EY ISHAL

Drama Romance Thriller

4  

NOOR EY ISHAL

Drama Romance Thriller

सुनो चंदा

सुनो चंदा

23 mins
331


"मोहब्बत एक नूर है और जिस कल्ब में ये नूर उतर जाये वो कल्ब दुनिया की बुराइयों से पाक होकर अपने मालिके हक़ीक़ी की सच्ची इबादत में मशगूल हो जाता है ."

"पर रूही रब ने दुनिया छोड़कर संन्यास लेने के लिये भी नहीं कहा है मुझे समझ नहीं आता कि तुम्हारा मैं क्या करूँ अपना सर फोड़ लूँ या तुम्हारा सिर दीवार में दे मारुँ।अच्छी भली शक़्ल ओ सूरत की मालिक हो ख़ुदा ने ख़ैर से बाप भाई को इस क़ाबिल किया हुआ है कि तुम्हारी हर ख़्वाहिश पूरी कर देते हैं

औऱ आप हैं कि ना जाने कौन से जोग लिये हुए हैं?"नताशा रूही की बातों से तपकर उसपर भड़क चुकी थी.

" जाने दो तुम नहीं समझोगी ये मेरे और मेरे रब के दरमियान की बातें हैं।"

" रूही, नीचे ड्रॉइंग रूम में अगले पाँच मिनट तक मैं तुम्हारा इन्तेज़ार करुँगी और अगर तुम सही से तैयार होकर नहीं आयी तो कभी दोबारा तुम्हारे घर नहीं आऊंँगी " नताशा के पास इस धमकी के अलावा कोई चारा नहीं था.

" तौबा है ये तुम्हारी बे वक़्त की धमकियाँ किसी दिन सब नजरअंदाज कर दूँगी चलो मैं तैयार हूँ "रूही नताशा से चिढ़कर बोली तो नताशा मुस्करा दी.

" तो बताइये मैडम कहाँ चले? "नताशा ड्राइविंग सीट पर बैठते हुए बोली

"चलो, आज सुमन की तरफ चलते हैं बहुत दिनों से मिले नहीं है "रूही ने उससे कहा

" रूही तुम्हें मेरा मूड ख़राब करने के लिये कोई और वक़्त नहीं मिला क्या? तुम ही जाओ उसके घर जानबूझकर मेरे ज़ख्मों पर नमक ना छिड़का करो।"नताशा नाराज होकर बोली

"तुम्हें अब बिलाल को माफ़ कर देना चाहिये औऱ सुमन की इसमें क्या गलती है जो उससे इतना चिढ़ती हो "

" रूही मैं चलूँ या वापस अपने घर चली जाऊँ।"नताशा गुस्से से बोली

" अच्छा ठीक है ठीक है ।जहांँ चलना चाहती हो चलो।"रूही अब उसका और मूड खराब नहीं करना चाह रहीं थी

"रूही चल अब मेरे घर चलते हैं बिलाल का ज़िक्र करके तूने सच में मेरा मूड खराब कर दिया है." नताशा मुँह बनाते हुए बोली

"तुझे पता है कि अम्माँ से मेरी नहीं बनती है और अम्माँ भी अपने घर में मुझे देखना पसंद नहीं करती हैं फिर भी तू मुझे घर लेके जा रही है." रूही ने थोड़ा फिक्रमंद होकर कहा

" जैसे तुझे बिलाल सही लगता है उसी तरह से मुझे भी लगता है कि अम्माँ के बारे में तूने भी गलत सोच बनाई हुई है।"नताशा ने संजीदगी से कहा

" नहीं मुझे अम्माँ के बारे में कोई गलतफहमी नहीं है मैं उन्हें गलत नहीं कहती लेकिन ये भी सच है कि हम दोनों के सोचने के नजरिये अलग अलग है जिसकी वजह से अक्सर हम आमने सामने खड़े हो जाते हैं।"

" नहीं कुछ नहीं होगा ।अम्माँ तुम्हें खा नहीं जाएँगी।अगर कुछ कहा तो मैं देख लूँगी ये वादा है मेरा।"नताशा ने रूही को तसल्ली देते हुए कहा तो रूही भी चुप हो गयी।लेकिन उसे पता था कि अम्माँ उसे अपने घर में देखते ही आग बबूला हो जाएँगी और उसके साथ नताशा की भी अच्छी ख़बर ले लेंगी।

मगर इस वक़्त नताशा का मूड ख़राब हो चुका था इसीलिये वह कोई ऐसी बात नहीं करना चाहती थी जिससे नताशा और चिढ़ जाये

"वहीं रुक जा लड़की ।तेरे बाप को बता दिया था मैंने मेरे घर की दहलीज पर मेरी शर्तों को मानने के बाद ही वो या उसके घर का कोई भी फ़र्द आ सकेगा।यहाँ आने की तेरी हिम्मत कैसे हुई?" रूही को अपने घर में आता देख बरामदे में तख्त पर बैठी पान चबाती हुई अम्माँ गुस्से से खौल गयीं थी

" इसे मैं लेकर आयी हूँ ये भी यहाँ नहीं आ रही थी।

मेरे ज़िद करने के वजह से ये यहाँ आयी है आपको जो कुछ कहना है मुझसे कहिये "नताशा अम्माँ के सामने दरवाज़े पर खड़ी होकर बोली

"तेरी अक्ल तो घास चरने गयी है ।तुझे तो हमेशा वही काम अच्छे लगते है जिनके लिये मैंने मना किया हुआ है "अम्माँ आज उससे भी दो चार करने के मूड में थी

" अम्माँ .मुझे माफ़ कीजिये आप गुस्सा ना हों मैं वापस चली जाती हूँ." रूही ने नताशा और अम्माँ को आमने सामने आने से रोकने के लिए जल्दी से हल सुझाया

" नहीं तुम कहीं नहीं जाओगी "नताशा ज़िद पर उतर आयी थी

" नताशा बात को समझाकर तुझे मेरी कसम मुझे जाने दे "रुचि नताशा की मिन्नतें करती हुई बोली

" ठीक है जा "

" कल कॉलेज में मिलते हैं" रूही ये कहकर तेजी से घर से बाहर निकल गयी जबकि नताशा अभी भी अम्माँ के सामने खड़ी थी

"अम्माँ जिन घरों में ख्वाहिशों को दबा दिया जाता है रब एक दिन उन्हीं घरों से बगावत की आवाज़ें उठाता है आप दुआ कीजियेगा रब मुझे और आपको कभी एक दूसरे के सामने ना खड़ा करे बिलाल का ग़म मुझे आपके उसूलों ने दिया है औऱ ये बात मैं कभी नहीं भूल सकती हूँ।"

नताशा ने अपने दुखों पर काबु पाने की नाकाम कोशिश करते हुए अम्माँ से कहा


"कभी कभी ऊँची उड़ान का परिंदा जब नीचे गिरता है तो उसके बचने के आसार कम हो जाते हैं।अपनी अम्माँ को बहुत हल्के में मत लेना मेरी लाड़ली वर्ना बहुत पछताओगी.

शुक्र कर अपने बाप का जो हर वक़्त तेरी ढाल बना रहता है.

हमारे यहाँ लडकियाँ बड़े बुजुर्गों के फैसलों से ही ब्याही जाती हैं बिलाल के ख़्वाब तूने हमसे बिना पूछे देखे थे तो उस दुःख की तू ख़ुद ही ज़िम्मेदार है ।हमने तेरे लिये मसूद को चुना है

बहुत हुआ तेरे बाप की वजह से काफी ढील मिल गयी है तुझे जिसकी वजह से आज तू अम्माँ के सामने मुकाबले पे खड़ी हो गयी है बस अपनी रुखसती की तैयारी कर हो गयी पढ़ाई अब आगे की पढ़ाई मसूद के घर जाकर करना।कल ही उसके घरवालों को रिश्ता तय करने के लिये बुलाती हूँ " अम्माँ के तेवर बदल चुके थे

" ये क्या ग़ज़ब कर रही हैं ये आपकी सगी पोती है क्या अपनों के साथ ऐसा सुलूक किया जाता है? क्या आप नहीं जानती है कि मसूद एक आवारा इंसान है पहले से दो शादियाँ करके दोनों बीवियों को छोड़ चुका है नताशा से पंद्रह साल बड़ा है अपनों के लिये भी आपका खून पानी हो गया हम तो सौतेले थे "अपना फोन लेने वापस आयी रूही ने अम्माँ और नताशा की सारी बातें सुनकर गुस्से और हैरत से अम्माँ से कहा

" तू गयी नहीं अभी तक तू कौन होती है हमारे घर के मामलात में दखल देने वाली ।तेरे बाप को उसका हक़ देते वक़्त हमने यही शर्त रखी थी कि आइंदा कभी वो या उसकी औलादें अपने खूनी रिश्ते का ढ़ोल बजाकर हमारे किसी भी मामलात में दखलअंदाज़ी नहीं करेंगे अजनबियों की तरह हो गये थे उस दिन तुम सब हमारे लिये औऱ तेरे बाप ने खुशी खुशी इस बात का इक़रार किया था अब नताशा की हिमायती ना बन चल जा अब यहाँ से "अम्माँ गुस्से से काँप रहीं थीं

" मेरे बाबा ने खुशी खुशी इक़रार नहीं किया था आपने अपने सगे बेटे को जान से मारने की धमकी देकर मेरे बाबा से हाँ करायी थी आप अच्छी तरह जानती थी कि बाबा सौतेले सही मगर नवीन चाचा से बहुत प्यार करते हैं और उनकी सलामती की खातिर वो मान भी गये थे।और किस हक की बात कर रहीं हैं आप??

ये सारी जागीर मेरी दादी की थी।जिसे आपने धोखे और ताक़त से हथिया लिया है.भीख में माँगी हुई सल्तनत किसी के बादशाह होने की ज़मानत नहीं होती है वक़्त के आगे बड़े बड़े दिलेर और साहिब ए इख्तियार ढ़ेर हुए हैं

नताशा को अपनी दुनिया के अँधेरों में धकेलने से पहले एक बात याद रखियेगा कि मैं उसकी ढाल हूँ और ये बात आप भी अच्छी तरह जानती हैं कि मुझे आपकी झूठी सल्तनत के मक्कारों और आपसे एक लम्हा भी खौफ़ नहीं आता है " रूही का ज़ब्त आज जवाब दे चुका था

" अम्माँ,,,,, क्या रूही ने जो कहा वो सच था? "बरामदे में हो रहे शोर को सुनकर बाहर आये नताशा के पापा ने हैरत और सदमे से अम्माँ की तरफ़ देखते हुए पूछा

"हाँ, ये लड़की सही कह रही है और इसमें बताने वाली क्या बात है तेरे सौतेले भाई ने मुझसे जायदाद में हक़ माँगा था और मैंने इस शर्त पर उसे उसका हक दे दिया था कि तुझसे वो कभी नहीं मिलेगा .

वो भी जायदाद लेके चला गया औऱ तू उसकी मोहब्बत में अपनी माँ को ही बुरा मानता रहा औऱ अब देख अपने बच्चों को कैसी कैसी कहानियाँ सुनाकर मेरा दुश्मन कर दिया है "अम्माँ हार मानने वालों में से ना थीं

" नहीं नवीन, मेरी बेटी रूही सही कह रही है अम्माँ ने तुम्हें जान से मारने की धमकी देकर मुझसे तुम्हारी ज़िंदगी से निकल जाने को कहा था।और मेरा मुँह बंद करने के लिये मेरा हक देकर मुझपे एक अहसान और कर दिया था।लेकिन मुझे ये पता नहीं था कि ये मेरे लिए तुम्हारे दिल में इतना ज़हर भर देंगी।"

रूही को अम्माँ के घर से वापस लेने आये रूही के पापा जावेद ने अपने बरसों से बिछड़े भाई से कहा

" भाई आप यहाँ? "नवीन ने हैरान होकर पूछा

" हाँ, रूही की ख़ातिर मुझे आना पड़ा मेरे बेटे ने बताया कि ये नताशा के साथ यहाँ आयी है मुझे पूरा यकीन था कि आज यहाँ कोई ना कोई अनहोनी ज़रूर होने वाली थी

इसीलिये मैं रूही को लेने चला आया मगर यहाँ आया तो वही

सब हो रहा था जिसका मुझे अंदेशा था ।नवीन मेरे भाई हो सके तो इस मजबूर भाई को माफ़ कर देना।जो तुम्हें तुमसे दूर जाने का कारण भी नहीं बता सकता था "जावेद की आँखों में आँसू आ गये.

" नहीं भाई.मैंने कभी आपको गलत नहीं माना वक़्त के साथ अम्माँ की असलियत आपके बेगुनाह होने का सबूत वन गयी थी "नवीन ने जावेद के गले लगते हुए कहा.

" नताशा बेटी, चलो अपना ज़रूरी सामान ले लो अब हम यहाँ नहीं रहेंगे।"नवीन ने अम्माँ की तरफ़ ऐसे देखते हुए कहा मानो उसने अपना फ़ैसला सुना दिया हो.

"नवीन मेरा घर हमेशा तुम्हारे लिये खुला है चलो मेरे साथ चलो आज मैं किसी की कोई बात नहीं सुनुँगा." जावेद ने नवीन से कहा

" ठीक है भाई हम आपके साथ आपके घर चलेंगे।"नवीन ने भाई की बात मानते हुए कहा

अम्माँ साकित सी बैठी अपने बेटे को जाता हुआ देखती रहीं आज बेटे के सामने अपनी सफ़ाई में कहने को कुछ नहीं था बस कानों में रूही की माँ की आवाज़ें गूँज रही थीं .

अम्माँ दिलों का सुकून छीनने वाले कभी ख़ुश नहीं रह सकते हैं एक दिन ऐसा ज़रूर आयेगा जब आपकी आँखों के सामने सब एक हो जाएँगे.वक़्त सबका हिसाब रखता है .


"सारा, देखो कौन आया है?" जावेद ने अपने घर में अंदर आते हुए खुशी से कहा 

"भाई बहुत मुबारक हो ।आख़िर ये दिन आ ही गया " सारा ने सबको देखते हुए खुशी से कहा 

खाना खाने के बाद बहुत देर तक बरसों पुरानी बातें होती रहीं रूही और नताशा थोड़ी देर वहाँ बैठने के बाद अपने रूम में आ गयीं. 

"चलो, अम्माँ का राज़ खुल गया और बाबा को सारी असलियत समझ आ गयी।"नताशा ने खिड़की के पास खड़े होते हुए कहा 

"अम्माँ इतनी आसानी से हार मानने वाली नहीं है आज जो कुछ हुआ वो इतना अचानक था कि वो कुछ सोच नहीं पायी कल ज़रूर कुछ ना कुछ करेंगी ।हम सबको बहुत ध्यान रखना चाहिये।"रूही ने कुछ सोचते हुए कहा 

" अब और क्या बिगाड़ेगीं? बरसों पहले बाबा और बड़े पापा को अलग कर दिया तुम्हारी दादी की सादगी का फ़ायदा उठाकर उनकी सारी जायदाद हड़प ली।मुझे और बिलाल को अलग कर दिया ।कितना ख़ुश थे मैं और बिलाल एक रूहानी इश्क़ था हम दोनों के बीच मगर उस सुमन ने और दादी ने आकर हमें अलग कर दिया ।औऱ बिलाल कितनी आसानी से सब भूल गया नफरत है मुझे उससे ।"गुज़रे वक़्त को याद करके नताशा के चेहरे पर कड़वाहट सी फैल गयी थी 

" सुमन और बिलाल को क़ुसूरवार समझना बंद करो.अफसानों और फ़िल्मों के इश्क़ ख़्यालों की दुनिया के होते हैं जो हक़ीक़त से बहुत दूर होते हैं।तुम हर वक़्त बिलाल से रूहानी इश्क़ का राग ना गाया करो.अगर तुम्हारा इश्क़ रूहानी होता तो बिलाल से तुम्हें इतनी नफ़रत कभी नहीं होती.

क्या तुमने कभी इस बारे में बिलाल से बात करी है कि उसने ऐसा क्यूँ किया? बस ख़ुद से सारे अंदाज़े लगाये और फ़ैसला सुनाकर बिलाल और सुमन को क़ुसूरवार ठहरा दिया. 

तुम्हारी अम्माँ ने बिलाल को भी मेरे बाबा की तरह धमकी दी थी.इस बार उन्होंने तुम्हें जान से मारने की धमकी दी थी. 

तुम्हारी ख़ातिर बिलाल को तुमसे अलग होना पड़ा।और सुमन वो बेचारी बिलाल की दोस्ती की खातिर सब कुछ जानते हुए भी बिलाल से शादी करने के लिये तैयार हो गयी थी जिससे तुम्हारी जान बचायी जा सके.इसलिये हर बार तुम्हें वहाँ ले जाने की कोशिश करती थी जिससे तुम्हारी बात बिलाल से हो सके और तुम्हारी गलतफहमी दूर हो जाये मगर तुम तो कभी कुछ सुनने को तैयार नहीं होती थी.मुझे ये सब बिलाल ने ही बताया था।"रूही ने आज नताशा को सारी असलियत बता दी थी. 

"रूही मुझे पता है अम्माँ की वफादार सरोज ने बता दिया था ग़ुस्सा इसी बात का तो है कि चुपचाप कुर्बानी देके सुर्खरू हो गया एक बार भी ज़रूरी नहीं लगा कि मुझे बता देता हम दोनों मिलके कोई हल ढूँढ लेते


औऱ सुमन से शादी??? वो क्यूँ?? नहीं रूही ऐसा नहीं होता है .उससे नफ़रत की तुम वजह जानना चाहती थी ना तो सुनो खुद को किसी बहाने से समझा लिया जाता है मगर उसकी यादों से बाहर आना बहुत मुश्किल होता है जिसके साथ हम उम्र भर साथ चलने का ख़्वाब देख चुके हों.


माना सब कुछ भूल जाना बहुत मुश्किल होता है लेकिन नामुमकिन भी नहीं होता है औऱ उससे नफरत करके इस नामुमकिन को ही मुमकिन बनाना चाहती हूँ क्यूँकी उसने मेरे लिये कुछ रास्ता ही नहीं छोड़ा है हम दोनों की जिन्दगियों का फ़ैसला करके आज बहुत ख़ुश है आराम से है " नताशा उदास होकर बोली 


"अभी भी कुछ नहीं बिगड़ा है कभी कभी जो दिखता है वो सच नहीं होता है।अब इसे सच्ची मोहब्बत पर रब का ख़ास करम ही समझ लो."रूही मुस्कुराते हुए बोली 


" रूही फ़िलहाल में मज़ाक़ के मूड में नहीं हूँ "नताशा ने गुस्से से कहा 

" रब की मर्ज़ी हुई तो ये तुम्हें कल शाम को पता चल जायेगा कि मैं मज़ाक़ नहीं कर रही हूँ ।अच्छा फ़िलहाल एक बहुत जरूरी कॉल करना है।तुम आराम करो रात काफी हो गयी है वैसे भी आज दिनभर जो हुआ वो दिमागों को बहुत थका देने वाला था मैं भी बस ये कॉल करके आती हूँ "रूही ख़ुश होते हुए बोली 


नताशा हैरान सी रूही को देख रही थी रूही इतना ख़ुश क्यूँ है उसे समझ ही नहीं आ रहा था पर ज्यादा ना सोचते हुए वो सोने के लिये लेट गयी. 

एक घंटे बाद रूही रूम में वापस आयी तो देखा नताशा सो चुकी थी उसे बहुत ध्यान से देखते हुए रूही सोचने लगी, "जैसा सोचा है बस वैसा ही जाये अब और कोई अड़चन ना आये." 

आज सुबह से रूही काफी व्यस्त थी।नताशा अपने रूम में ही थी ।उसका बाहर आने का मन नहीं था तो रूही उसे रूम में ही नाश्ता देकर चली गयी थी आज बारिश बहुत तेज़ थी यही बारिश रूही के लिये खुशियाँ लेके आ रही थी तो अपने घर में अम्माँ पुरानी यादों में खोयी थीं ।बच्चों के जाने से घर वीरान सा हो गया था . 

"हाँ ऐसी ही बारिश थी जब मेरे भाई ने तुम्हारी कनपटी पर बंदूक रखके तुम्हारी सारी जायदाद मेरे नाम करने को कहा था,,, कितनी दिलेरी से तुमने बंदूक की नाल हटाते हुए कहा था," ये सब करने की क्या जरुरत थी शाहिदा?? तुम तो मेरी छोटी बहन की तरह हो एक बार मुझसे कह देती मैं तभी तुम्हें सारी जायदाद दे देती क्या बस इतना ही यकीन था मुझपर ।तुम्हारे लहजे मुझे मार गये थे हाजरा ।पर मैं लालच में इतनी अंधी थी कि तुम्हारी सादगी और मोहब्बत को नहीं समझ पायी .

क्यूँ किया था मैंने ये सब तुम्हारे साथ ?? क्या गलत किया था तुमने ??? तुम्हारी शराफत और सादगी से चिढ़ हो गयी थी हर जगह मेरी तमाम चालों के बावजूद तुम ख़ामोशी से अपनी मोहब्बतों से मुझे हरा देती थीं. 

मैं तुम्हारे शौहर की दूसरी बीवी थी झगड़ा तो तुम्हें करना चाहिये था दुश्मनी तो तुम्हें मुझसे रखनी चाहिये थी ।शादी होके जब घर आयी तो तुम मुस्कुराते हुए मेरा इस्तक़बाल कर रही थी शौहर से भी कभी कोई शिकवा नहीं करती थी  

कितना सब्र था तुममें हमेशा तुम मुझे अपनी छोटी बहन समझती रही मेरे बच्चों की परवरिश भी अपने बच्चों के साथ बहुत खामोशी के साथ करके चली गयीं . 

देखो ये तुम्हारी परवरिश का ही कमाल है कि इतनी गलतफहमी फ़ैलाने के बाद भी सारे बच्चे आज फिर से एक हो गये आज भी तुम ख़ामोशी से जीत गयीं हमेशा की तरह. 

मैंने कोई मौका नहीं छोड़ा तुम्हें गलत साबित करने के लिये पर तुम्हारी सादगी और शराफत ने मुझे ही गलत साबित कर दिया।मेरा शौहर, मेरे बच्चे सब के सामने मैं गलत साबित हो गयी।तुम आज भी सबके दिलों में जिंदा हो।मैं जिंदा होते हुए भी मर गयी हूँ

माना बहुत मगरूर हूँ, लालची हूँ, बच्चों को ये एहसास नहीं कराया कि मैं भी उनसे बहुत प्यार करती हूँ इसीलिये बिना सोचे समझे एक लम्हें में मुझे अकेला कर गये  

पूरी ज़िंदगी अपनी अकड के साथ तुम्हारे बच्चों से दुश्मनी निकालती रही .वक़्त ने मेरे बच्चे के सामने मुझे उनका दुश्मन बना दिया।रब सब देख रहा था मुझे सजा मिलनी ही थी।मुझे माफ़ कर दो हाजरा मैंने बहुत सताया है तुम्हें  

देखो ना तुम मरकर भी अपनी पोती रूही की शक़्ल में वापस आ गयी।बिलकुल वही चेहरा वही सादगी और शराफत वही खामोशी से अपनों की फिक्र में लगे रहना तुम्हारी तरह ही बेख़ौफ़ निडर . 

जब जब उसे देखती थी तो घबरा जाती थी नताशा से उसे इसीलिये दूर रखना चाहती थी उसके अपने घर आ जाने पर इसीलिये चिढ़ती थी कि मुझे ऐसा लगता था तुम मुस्कुराते हुए मुझसे पूछती हो, "शाहिदा, मैंने तुम्हारा क्या बिगाड़ा था? " 

मेरे पास कोई जवाब नहीं होता था बस सारी चिढ़ और गुस्सा उस मासूम पर निकाल देती थी. 

मगर सब्र और वफ़ा करने में भी तुम पर ही चली गयी ।मेरे इतने खराब बर्ताव के बावजूद भी उसने नताशा को बड़ी बहन की तरह सम्भाले रखा . 

आज पूरे घर में अम्माँ उर्फ शाहिदा की चीखें गूँज रहीं थीं मगर सुनने वाला कोई नहीं था बस एक वफादार सरोज उनकी पशेमानी देख रही थी उनकी बातें सुन रही थी और उनको सम्भालने में लगी हुई थी पर शायद वो भी जानती थी कि अम्माँ को इस दिन का सामना ज़रूर करना था  

उसने बहुत मुश्किल से समझा बुझाकर उन्हें खाना खिलाया और नींद की दवा देकर सुला दिया था. 

"समर तुम कहाँ हो? मैं एक घंटे में चौक वाले कॉफी शॉप पर पहुँच रहीं हूँ तुम वहीं आ जाओ मुझे कुछ ज़रूरी काम है तुमसे जल्दी आना." रूही ने अपने मंगेतर समर को फोन पर बताते हुए कहा

"ठीक है पहुँच जाऊँगा,, पर सब खैरियत तो है ना " समर परेशान हो गया था उसे रूही की फिक्र थी अम्माँ के बारे में उसे मालूम था.रूही से उसकी मंगनी हुए एक साल हो गया था और इस साल के आखिर में दोनों की शादी तय हो गयी थी।सब ठीक चल रहा था मगर रूही के लिये अम्माँ की नफरत से वह परेशान हो जाता था. 

उसे लगता था कि कहीं अम्माँ रूही और उसकी शादी में कोई अड़चन ना डाल दें क्यूँकी सभी को मालूम था कि वो और रूही एक दूसरे को पसंद करते हैं और दोनों की मर्ज़ी से ही ये शादी हो रही है।रूही के फोन आने पर वह इसीलिये ही परेशान हो गया था. 

"सब ठीक है बल्कि रब ने चाहा तो ख़ुशख़बरी ही मिलेगी अच्छा सुनो बिलाल और सुमन को भी लेते आना " रूही ने उसे तसल्ली देते हुए कहा 

"ओके" कहकर हैरान होते हुए समर ने फोन रख दिया वह भी अब जल्दी से कॉफी शॉप पर जाना चाहता था. 

लगभग एक घंटे बाद समर, बिलाल और सुमन कॉफी शॉप पर बैठे रूही का इंतज़ार कर रहे थे उनके थोड़ी देर बाद ही रूही नताशा के साथ वहाँ आ गयी. 

नताशा बिलाल और सुमन को देखते ही गुस्सा होने लगी.  

लेकिन बिलाल ने उसके सामने खड़े होकर कहा, "आज कुछ नहीं कहना बस एक बार मेरी बात सुन लो आज नहीं कहा तो पता नहीं ये मौक़ा मिलेगा भी या नहीं ." बिलाल के इस तरह इसरार करने पर वह खामोशी से उन सब के साथ बैठ गयी.अब यहाँ वह कोई तमाशा नहीं करना चाह रही थी. 

उसे रूही पर बहुत गुस्सा आ रहा था जो उसे कुछ जरूरी काम का बहाना करके यहाँ ले आयी थी. 

" नताशा मेरी और सुमन की शादी नहीं हुई है सुमन बस मेरी अच्छी दोस्त है और इस मुश्किल में मेरा साथ दे रही है ये मेरे साथ नहीं रहती है ये सब सिर्फ अम्माँ को दिखाने के लिये किया गया है यकीन करो मैं कभी तुमसे गाफिल नहीं रहा औऱ रूही ने हमेशा मेरा और सुमन का साथ दिया है चाचा चाची को भी सब मालूम है।हम सब सही वक़्त आने का इन्तज़ार कर रहे थे औऱ रब के करम से हमारा इंतजार ज़्यादा तवील नहीं हुआ।"बिलाल सब बताकर ख़ामोश हो गया 

" हाँ, नताशा, बिलाल सही कह रहा है मैंने हमेशा उसे तुम्हारे लिये बहुत परेशान देखा है "सुमन ने भी नताशा को बताया 

" ये लो माँ से बात करो "रूही ने नताशा को फोन पकड़ाते हुए कहा क्यूँकी उसे मालूम था कि सिर्फ़ माँ की बात पर नताशा यकीन करेगी इसीलिये उसने माँ को फोन लगाकर नताशा को दे दिया था 

" चाची ये सब क्या sss???? "नताशा सही से बात भी नहीं कर पा रही थी 

"बेटा, सब बातें सही हैं बिलाल को जब अम्माँ ने धमकी दी थी तो वह बहुत परेशान हो गया था लेकिन वह तुम्हें किसी भी हालत में छोड़ने के लिए तैयार नहीं था इसीलिये वह हमारे पास आ गया था उस वक़्त हमें भी कोई और रास्ता नहीं सूझ रहा था इसीलिये बहुत सोच समझकर सुमन की मदद से अम्माँ को ये यकीन दिला दिया गया था कि बिलाल तुम्हारी ज़िंदगी से दूर हो गया है. 

बेटा ऐसा करना बहुत जरूरी था नहीं तो अम्माँ तुम्हारी शादी जबरदस्ती कहीं करवा देतीं या फिर हो सकता था कि वो तुम्हें और बिलाल को कुछ नुकसान पहुँचा देतीं।हम लोगों के पास सही वक़्त का इन्तज़ार करने के अलावा कोई और रास्ता नहीं था. 

और रब के करम से अम्माँ की सारी असलियत सामने आ गयी है इसीलिये तुम्हारे बाबा को हम सबने कल रात बिलाल के बारे में बता दिया था उन्हें अम्माँ की इस हरकत पर बहुत अफसोस हो रहा था.

बेटा, आज रूही तुम्हें इसीलिये वहाँ ले गयी थी जिससे सारी गलतफहमियां दूर हो सकें।ये तुम्हारे अलावा हम सभी को मालूम था।सारी बातें जानने के बाद तुम जो फैसला करोगी वो हमसब मानेंगे तुम्हारी खुशी हमारे लिये बहुत ज़रूरी है।अच्छा बेटा ज़रा रूही को फोन दे दो "रूही की माँ नताशा को इत्मीनान देते हुए बोलीं

" जी माँ बताएँ "रूही ने फोन लेकर कहा 

" बेटा तुम सब घर आ जाओ मैं भाई साहब और तुम्हारे बाबा को भी बुला लेती हूँ नताशा के लिये इस वक़्त कोई फ़ैसला कर पाना मुश्किल होगा घर पर अपने बाबा के साथ वो अच्छा महसूस करेगी।अपने बाबा को खुश देखकर उसे फ़ैसला करने में आसानी होगी." 

"जी माँ आप सही कह रहीं हैं हम लोग थोड़ी देर में घर आते हैं "रूही ने फोन रख दिया. 

" चलो सबको माँ ने घर बुलाया है किसी का कोई बहाना नहीं चलेगा और ना ही किसी की नाराज़गी चलेगी "रूही सबको बताते हुए बोली. 

सब मुस्करा उठे।आज नताशा भी सबके साथ मुस्करा रही थी।अब कोई गलतफहमी बाकी नहीं रह गयी थी।वो जिस रूहानी इश्क़ के दम भरा करती थी वो तो गुस्से में कब का फ़ना हो गया था ये बिलाल ही था जो आज भी अपने इश्क़ पर क़ायम था .इश्क़ क्या है आज उसे समझ आ रहा था  

ना बताया जाये,ना जताया जाये, उसकी गलतियों को मुस्कराकर तो कभी प्यार से समझाकर नजरअंदाज कर दिया जाये कोई बात ऐसी ना कहें जिससे उसका दिल टूट जाये वो जैसा है उसे वैसे ही पसंद करें उसकी खुशियों के लिए खामोशी से काम किया जाये, उसकी कामयाबी के रास्ते में आने वाली हर रुकावट दूर कर दी जाये, वो थके तो सबसे पहले उससे कहें कि मैं हूँ ना, वो रुके तो चलने के लिए उसकी हिम्मत बन जाएँ कभी जब वो डरे तो उसके लिये एक मजबूत सहारा बन जाएँ।वो ख़ुश हो तो उसकी खुशियों के जश्न में उसके साथ हो।अपनी दुआओं में सबसे पहले उसकी सलामती और खुशियों की दुआ माँगे.

औऱ बिलाल बिना उसके जाने खामोशी से इश्क़ की रस्में निभा रहा था

 "अम्माँ कुछ खा लो ।कल से सही से कुछ नहीं खाया है ऐसे तो बीमार पड़ जाओगी मैं नवीन साब को फोन कर देती हूँ." अम्माँ की वफादार मुलाजिमा काफी परेशान दिख रही थी 


"नहीं रहने दे मैं ठीक हूँ सब लौट आएँगे मेरे पास अभी नाराज है कब लौटेंगे ये नहीं पता मगर मुझे उनके लौटने का यकीन है क्यूँकी उन सबकी परवरिश हाजरा ने की है वक़्त ने मुझे मेरी औकात दिखाई है इंसान जितनी शिद्दत से दूसरों के लिये गड्ढे खोदता है उतनी ही शिद्दत से वक़्त उसके लिये गड्ढे खोद देता है मैंने हमेशा सबको दुख दिये है तो दुख ही मुझपर वापस आ गये मैं सबकी गुनाहगार हूँ मुझे कुछ दिन इस तन्हाई की सजा भुगतने दे जो वक़्त ने मेरे लिये तय की है.मेरे बच्चों को ख़ुश रहने दे."

अम्माँ आज मुकम्मल हार मान चुकी थीं।सिवाय पछताने के अब कोई और रास्ता नहीं था जो खुद उन्होंने अपने मुकद्दर में लिख लिया था. 


कॉफी शॉप से वो सब घर आ चुके थे वक़्त सारे गिले शिकवे बरसात की ख़ुशनुमा बारिश की तरह बहाये ले जा रहा था।बड़ों की मर्ज़ी से कल नताशा और बिलाल की मंँगनी तय कर दी गयी थी।बिलाल के घर में बिलाल के अलावा बस उसकी खाला थी।जो उसके साथ ही रहती थी उनको भी बिलाल और समर जाकर ले आये थे .नताशा अपने बाबा के खिले हुए चेहरे को देखकर बहुत ख़ुश थी. 

सभी को मसरूफ देखकर कुछ देर के लिये वो छत पर आ गयी थी।इन सब हंगामों में शाम हो चुकी थी कुछ देर आँखें बंद करके इन अच्छे पलों को महसूस कर रही थी।आज उसे ऐसा लग रहा था जैसे बरसों तपते सहरा में चलने के बाद आज उसे ठंडी छांँव मिली हो.

"छोटी माँ और खाला पूरे घर भर की नज़र उतार रही हैं आख़िर मुद्दतों बाद सब एक साथ खुश हुए हैं.खाला की होने वाली बहू की नज़र भी उतरनी चाहिये ।वैसे देखा जाये तो इस सब की ज़रूरत नहीं है शायद इतनी गुस्सैल है कि कोई आस पास फटक ही नहीं सकता है." बिलाल छत पर आते हुए मुस्कराते हुए बोला

" बिलाल मैंने तुम्हारे साथ बहुत बुरा बर्ताव किया है मुझे समझ ही नहीं आ रहा है कि इतनी नफ़रत कहाँ से मेरे दिल में आ गयी थी।"नताशा अपने पिछले रवैय्यों को लेकर शर्मिन्दा थी

" नताशा वो नफ़रत नहीं थी वो तुम्हारी चाहत थी जिसमें मेरा किसी और का होना तुमसे बर्दाश्त नहीं हो पाता था इसीलिये जब भी तुम मुझे सुमन के साथ देखती थीं तुम्हें गुस्सा आ जाता था हर मुलाक़ात पर पहले से ज़्यादा गुस्सा होता था ।तुम्हारा यही गुस्सा मुझे हौसला देता रहा मुझे तुम्हारी चाहतों का पता देता रहा औऱ इस वजह से ही मैं इतने सब्र के साथ तुम्हारी तल्ख बातें सह जाता था।अच्छा छोड़ो ये सब आज के बाद कभी बीते हुए वक़्त को हम में से कोई याद नहीं करेगा।और वादा करो चाहे कुछ भी हालात हो मेरा साथ कभी नहीं छोड़ोगी।"बिलाल नताशा को इस शर्मिन्दगी के एहसास से बाहर निकालना चाहता था

" वादा "नताशा मुस्कराते हुए बोली बहुत बरसों बाद दोनों दिल से मुस्कुराये थे

" सुनो चंदा,, नताशा के इस वादे के गवाह रहना "बिलाल आसमान में चमकते हुए चाँद से मुखा़तिब होते हुए बोला 

कौन सा वादा, कैसा वादा कोई हमें भी बतायेगा" रूही ने ऊपर आते हुए दोनों की बातें सुन ली थी और अब वो उनसे मज़े ले रही थी.

" मेरा साथ कभी ना छोड़ने का वादा।"बिलाल ने बड़ी सादगी से रूही को बताया

" रूही मुझे माफ़ कर दो मैं अक्सर तुम्हें भी ग़लत समझ लेती थी और तुम मेरे लिये कितना फ़िक्रमंद थी आज हम सब की जि़न्दगियों में जो खुशियाँ लौटी हैं वो सिर्फ तुम्हारी वजह से मुमकिन हुआ है तुम्हारा रब पर यकीन जीत गया।पूरे खानदान में अम्माँ के हौसले पस्त करने वाली इकलौती तुम्हीं निकली हम सब तो थक हार कर बैठ गये थे "नताशा रूही के गले लगते हुए बोली

" नताशा बिलकुल सही कह रही है सुमन और उसके मंगेतर को मनाना मेरे लिये आसान नहीं था ये काम भी तुम ही आसानी से कर पायीं।बहुत शुक्रिया रूही "बिलाल भी नताशा की बात से सहमत था

" अच्छा बस करो मैंने कुछ नहीं किया रब को तुम्हारा मिलना मंजूर था इसीलिये मेरी कोशिशें कामयाब हो गयी.अब नीचे जाओ सब तुम दोनों को ढूँढ रहे हैं कल की तैयारियां जोरशोर से शुरू हो गयी हैं मैं नमाज़ पढ़कर आती हूँ।"रूही ने दोनों से कहा 

रूही आज तन्हाई में अपने रब से बहुत बातें करना चाहती थी अपनी सारी उम्मीदें अपनी सारी ख्वाहिशें उसने रब से वाबस्ता की हुई थी औऱ रब ने भी एक एक करके सारे बंद रास्ते उसपर खोल दिये थे. 

" मेरे रब मैं जितना भी तेरा शुक्र अदा करूँ कम है मैंने हर पल, हर लम्हा, हर सजदे में यही इक़रार किया कि सिर्फ और सिर्फ तू ही मेरा मददगार है और तूने मेरी दुआओं को खुशियों के उजाले में तब्दील कर दिया।मुझे मेरी परेशानियों के साथ कभी तन्हा नहीं छोड़ा।और आज मेरे घर को खुशियों से भर दिया।यकीनन तमाम तारीफें तेरे लिये हैं और तेरी ही ज़ात सबसे बुज़ुर्ग और आला है।तू हम सबके दिलों की ख्वाहिशें,चाहतें, दुआएँ, बेचैनियाँ,उदासियांँ और खुशियाँ ख़ुद हम सबसे पहले जानने वाला है.ए मेरे रब मेरी हर दुआ तुझसे ही है क्यूँकी हमेशा मेरी उम्मीदें हैं तुझसे वाबस्ता।"


Rate this content
Log in

Similar hindi story from Drama