तेरा मेरा इश्क
तेरा मेरा इश्क
इस प्रेम कहानी की शुरुआत बहुत सुंदरता से हुई।
ये प्रेम कहानी सिर्फ दिल से दिल तक की ही है, जैसा कि काया का आकलन कहीं नहीं है ना ही ऐसी कोई घटना घटित हुई।
हरि रायपुर का रहने वाला था, और आराध्या मध्यप्रदेश की।
हरि और आराध्या नौकरी करते थे, जितना समय मिल पाता एक दूसरे को देते थे। इनपे जिम्मेदारियाँ थी जिसे कभी दूर नहीं भाग सकते थे क्यूंकि ये दोनों घर के श्रेष्ठ थे।
ये दोस्ती चार वर्षों से थी, एक दूसरे से स्नेह जताना एक दूसरे को तंग करना, लड़ना झगड़ना ये तो प्रतिदिन के आदतों में शामिल था इनके।
इन दोनों के लिए दुनिया अपनी, ये दोनों ही थे।
बहुत मनोहर व स्नेह भाव था दोनों का और दोनों की अपनी आजाद जीवन यही है, मानों यूं मान ही लिया हो दोनों ने।
ये भी सच था, दोनों में दोस्ती से ज्यादा कुछ नहीं था, फिर भी एक दूजे के दिल में धड़कना, ना रह पाना एक दिन भी, मगर प्रेम उनके समझ से बाहर थी।
उनसे जिक्र करो तो नकार देते मानों एक बेवकूफी जैसा लगता था उन दोनों के सामने ये बातें। मगर सच्चाई आजमाती है, अटूट रिश्ता इन दोनों के दोस्ती के मिसाल कायम रखना ये कहना गलत नहीं होगा, ये तो इतने खोए रहते थे अपने ही बातों में कि खाना पीना बाद में पहले तुम और हमारी बातें बस, मगर इन्हें प्रेम महसूस कुछ ऐसे हुआ-
आराध्या अपने अभिभावक साथ घूमने निकल गई ये बात हरि को ना बताई, भूल गई होगी या ध्यान नहीं रहा होगा क्यूंकि इन दोनों के बीच हरपल की खबर होती, वो तीन चार दिन हरि के लिए मानो पहाड़ टूटा हो फोन लगता, लगता नहीं कोशिश लाख करता पता करने की मगर कोई हो घर तब तो कुछ पता चले।
खैर हरि ने जैसे तैसे ये तीन चार दिन बीता तो लिए मगर इनका जीवन बेजान सा लगने लगा था।
इधर आराध्या भी हरि को याद करती क्यूंकि दोनों की आदत थी पल पल की खबर रखना एक दूसरे की, उसे अफसोस था कि बताया नहीं, क्या सोचेगा मेरे बारे में मगर करती भी क्या।
पाँचवां दिन था जब ये घर पहुंची। पहुँचते ही आराध्या ने हरि से बात करने की कोशिश करने लगी और हरि इतना परेशान हो चुका था कि खुद को अकेला कर बैठा था, शाम के समय जब बैठी आराध्या उसे याद कर खुद को रोक ना पाई और आँखों से आँसू आने लगे। फिर भी उसे अंदाजा ना था आखिर ऐसा क्यूं उसके लिए ये दर्द क्यूं , मगर कहते है ना दिल से दिल की आवाज सबसे पहले पहुँचती है सच कहा है किसी ने, शाम के समय हरि का फोन आता है आराध्या को, आराध्या बहुत नर्वस थी कुछ बोल नहीं पा रही थी, हरि भी चुप नहीं बैठा, पूरी नाराजगी निकाल दी, बातें करते करते बिलख पड़ा, अब ऐसे में आराध्या खुद को कैसे संभालती वो तो वैसे भी उसी हालात में थी, दोनों बातें करते करते बहुत कुछ कह बैठे, हरि बस यही कहता तुम मुझे छोड़ क्यूं चली गई और आराध्या इस बात पर सफाई देती मैं कहा जाऊंगी छोड़ तुम्हें तुम्हारे बिना तो जीने की सोच भी नहीं सकती, ये हालात ऐसे हो गए थे की वो सोच भी नहीं पा रहे थे कि क्या कहे जो दिल में था कहते गए।
हरि बस यही बोलता तुम मुझे छोड़ के क्यूं चली गई मै तुम्हरे बिना जी नहीं पाऊंगा। तुम्हारी आवाज़ ही बस मेरे जीने का आधार है, बस मुझे पता हो, तुम खुश हो सलामत हो, यही सब कुछ है मेरे लिए, यही बातें आराध्या भी कहे जा रही थी, बातों बातों में हरि अपने प्यार का इजहार करता और आराध्या भी।
ये शाम इन दोनों के लिए दर्द से बेहतरीन हो गई और भी मजबूत रिश्ता पनपने लगा दोनों में, बिना देखे, बिना मिले, ये जीवन के ऐसे पड़ाव पर पहुँच चुके थे कि वहाँ से मुड़ना बहुत मुश्किल था ना के बराबर।
करीब तीन साल का रिश्ता इनका प्रेम का। थोड़ी गलतफहमी आयी पल भर को मगर बातें साफ थी दोनों के बीच।
तुमसे है सांसे मेरी
कोई दूजा नहीं है
तुमसे है जीवन मेरा
कोई मजा नहीं है
पल भर की दूरी नहीं मंजूर मुझे
तुम्हारे बिना जीना
कोई जीना नहीं है।
किस्मत में दोनों को एक साथ कहाँ मंजूर था। जात पात का भेद भाव हमारे समाज में आज भी है। घरवालों के खिलाफ जाना उचित नहीं समझा दोनों ने, जबकि हरि का कहना था खिलाफ ही सही मगर हम एक होंगे मगर आराध्या सबकी खुशियों का गला कैसे घोट सकती थी, माता-पिता, भाई-बहन और इज्जत एक घर की बात नहीं दो घर की बात थी, हरि का घर आराध्या का भी था और आराध्या का हरि का।
दोनों ही इस बात को समझ चुके थे और वादा किया था दोनों ने, साथ कभी नहीं छूटेगा और ऐसा ही हुआ शादी नहीं कर पाए मगर साथ नहीं छूटा। क्यूंकि हो चाहे कुछ भी इन्हें मंजूर नहीं था बिना जुड़े रह पाना तो कभी नहीं।
इनके जीवन में बस समझौता रह गया था, एक दूसरे को समझना, कोशिशें यही करते की कोई एक को कोई कभी तकलीफ ना हो,
थोड़ी दूरियां भी बढ़ाई दोनों ने मगर कुछ ना हुआ कोई फ़र्क नहीं पड़ा प्यार उतना ही, वहीं प्यार। ये प्यार कभी ख़त्म नहीं होगा जब तक सांसे होंगी, इस जिस्म में जब तक जीवन होगा तब तक प्यार रहेगा।
ये कहानी ये बताती है कि प्रेम का रूप हृदय से होता है, काया खाक हो जाएगी मगर आत्मा तो हमेशा अमर है। प्रेम हृदय है तो प्रियतम आत्मा।