Neha Yadav

Tragedy

1.0  

Neha Yadav

Tragedy

दहेज

दहेज

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माँ जी आज कुछ तबियत ठीक नहीं लग रही, इच्छा नहीं हो रहा अब कुछ करें; नाश्ता बना के रख दिए हैं प्लीज आप और पिता जी कर लीजिए।

इनका लंच बॉक्स भी तैयार कर वही रखा है।

बुखार से देह तप रहा।

परंतु माँ जी का गुस्सा सातवें आसमान पर देख हिम्मत कर सुधा उठी। कंपकपाते हाथ से खाने दे रही परंतु माँ जी को कोई असर ही नहीं हो रहा, सरस आपका लंच बॉक्स ले लीजिए,

अरे ये क्या सुधा तुम्हें तो बहुत तेज बुखार है,

आप परेशान ना होइए सरस ठीक हो जाएगा आप जाइए ऑफिस;

नहीं सुधा चलो पहले अस्पताल चलते हैं फिर ऑफिस चले जाएंगे।

अरे ठीक हो जायेगी इतना क्या घर ही सर पर उठा लेते हो तुम अपना काम करो जाओ और ये बाहर जायेगी तो घर का काम कौन करेगा।

क्या माँ आपको काम की पड़ी है और इस बेचारी की हालत नहीं दिख रही।

दहेज के नाम पर एक फूटी कौड़ी नहीं लेकर आयी और तू,

ठीक है तेरी जो मर्जी कर जोरू का गुलाम जो हो गया है तू दो साल भी नहीं हुए उसके आए पर _

माँ ! सुधा को किस गलती की सजा दे रही हो;

आखिर वो भी तो किसी की बेटी है, और रही बात दहेज की तो दुल्हन दहेज से कम है क्या ?

घर में बहस चल ही रही थी कि सुधा अचानक गिर पड़ी।


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