तब और अब

तब और अब

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"मम्मा ...!"

"क्या हुआ बेटा ?"सुनंदा ने बेटी रिशु की आवाज़ का उत्तर देते हुए कहा।

"मम्मा ...यश आज मुझसे बात नहीं कर रहा। कॉलेज में भी ठीक से देखा तक नहीं मेरी तरफ। ज्यादा ही भाव खा रहा है।" रिशु ने बच्चों की तरह ठुनकते हुए कहा। सुनकर सुनंदा थोड़ी झेप गयी परंतु एकदम खुद को सँभाल लिया आखिर जमाने के साथ कदम से कदम मिला कर जो चलना है ।

"मम्मा अब पापा को बताऊंगी यश के बारे में। आ जाने दो शाम को । "रिशु ने सोफ़े पर पसरते हुए कहा।

"ठीक है ।"कहती हुई सुनंदा घर के काम निपटाने लगी और रिशु अपना मोबाइल लेकर सोफ़े पर लेटकर खुट पुट करने लगी ।

सुनंदा सोचने लगी पहले भी प्रेम था मन में सबके। हर किसी का दिल धड़कता था किसी खास के लिए मगर दिल की बात जुबान पर लाने में अव्वल तो अधिकतर लड़के लड़कियों की हिम्मत ही नहीं होती थी। हिम्मत करने में सालों लग जाते थे। कभी आँखों के इशारों से बातें होती थीं और कभी पत्र लिख कर दिल की बातों का इज़हार किया करते थे प्रेमी।

"सुनंदा को जब अजीत से प्रेम हुआ तब लगभग पाँच साल बाद अजीत अपने दिल की बात सुनंदा से कह पाये थे और सुनंदा ..सुनंदा तो शर्म के मारे जमीन में घुसी जा रही थी अजीत का पत्र देखकर। वह भी अजीत से प्रेम करती थी मगर लाजवश कह नहीं पाई थी।

माँ को भी बताने में कई महीने लग गए थे। जब माँ ने पिताजी को बताया तब तो हालात इतनी खराब हो गयी थी कि शर्म के मारे पिताजी के सामने जाने पर भी पैर कंपकंपा रहे थे ।

बस पिताजी के बार बार माँ के द्वारा पूछे जाने पर एक कागज़ के टुकड़े पर लिख कर पिताजी को अपने और अजीत के रिश्ते यानी प्रेम के संबंध के बारे में बताया था।

और आजकल के बच्चे कितने फ्रैंकली बॉयफ्रेंड और गर्लफ्रेंड के बारे में बात करते हैं।

"ट्रीन---! डोरबेल बजते ही उसकी तंद्रा भंग होती है।


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