आखिरी ख्वाहिश

आखिरी ख्वाहिश

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दिनेश ने दोनों बहिनो को फोन कर दिया था कि माँ अब इस दुनियां में नहीं रहीं। अचानक हृदय घात से उनकी मृत्यु हो गयी है। यह सुनकर दोनों बहिने लीला और कमला सुन्न रह गयीं क्योंकि अभी पंद्रह मिनट पहले ही तो माँ से बात हुई थी उन्होंने बताया था कि चाँद को जल चढ़ा दिया है हालांकि बादल छाए हुए थे इसलिए चाँद दिखाई नहीं दे रहा था इसलिए माँ तीन मंजिल की छत पर बैठकर बहुत देर तक इन्तजार करती रहीं, जब चाँद दिखाई दे गया तभी उन्हौने जल चढ़ा कर पति के हाथ से पानी पीकर व्रत को तोड़ा था।

​जिंदगी के नब्बे बसंत देख चुकी माँ को करवाचौथ का बेसब्री से इन्तजार जो रहता था।

​पिताजी बच्चों के सामने पानी पिलाने से हिचकते थे व्रत खुलवाने के लिए तो वह झट से कहतीं कि बच्चे तो उनके विवाह के बाद हुए हैं।

​घर में सब रो बिलख रहे थे। भरा पूरा परिवार हाथों हाथ रखता था उनको। तीनों बहुओं का रो रोकर बुरा हाल था। छोटी बहु को सुबह की बात याद आ गयी। कैसे आज माँ ने बक्से से आज सुबह अपने विवाह की साड़ी निकलवाई, प्रेस कराई और खुद ही रात को करवा चौथ के लिए तैयार हुई ।

​मृत्यु शैया पर दुल्हन की भांति सजी हुई लेटी थी ।

​जब सब उनको कफ़न पहनाने लगे तो तीनों बहुये एक स्वर में बोलीं, "माँ जी को इसी साड़ी में ले जाइये, यह उनकी आख़िरी ख्वाहिश थी

​आज सुबह ही तो कह रहीं थी कि मुझे मेरी अंतिम समय पर यही साड़ी पहनाना।"

​सभी फफक कर रो पड़े, माँ जी ने खुद ही आख़िरी ख्वाहिश पूरी जो कर ली थी।


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