तमाचा ​

तमाचा ​

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​रवि का इन्तजार करते करते रूपा को नींद आगयी और वह एक बार फिर से मुँह धोकर नींद भगाने की कोशिश करने लगी, दोनों बच्चे पहले ही सो चुके थे l

​तभी दरवाजे की घंटी और फिर बाइक का हॉर्न लगातार बजने लगे ,रूपा ने भागकर दरवाजा खोला ल रवि एकदम लगभग भागता हुआ घर में घुसा और आँखें घुमाकर घर का मुआयना करने लगा l

​"आज बहुत देर कर दी l"

रूपा ने पति के खाने की प्लेट लगाते हुए कहा l

​"रहने दो ...खाना नहीं खाना आज मेरे दोस्त ने बाहर ही खिला दिया l"

​"दोस्त ...कौन से दोस्त ने ?"

​"तुमको सबके नाम बताना जरूरी है क्या ?"

रवि ने चिल्लाते हुए कहा l

​ रूपा को पता था कि आजकल उसका पति अपना समय एक महिला के साथ बिताता है वह भी शादी शुदा है l

​"अब तो तुमको भी आजादी मील ही गई है इसलिए अब तो तुम भी ......!"

रवि ने बेशर्मी से कहा l

​"रवि ...!"

वह जोर से चिल्लाई गुस्से के मारे उसकी आँखें लाल हो गयीं ,हाथ कपकपाने लगे l

​रवि बेशर्मों की भाँती मुस्कराता हुआ कमरे में जाने लगा l

​"स्वाभिमान और मर्यादा को न तो कोई आदेश दे सकता है और न ही सलाह या आजादी ,यह एक मनोभाव है जिसके ईमान को कोई डिगा नहीं सकता जो गलत होता है वह गलत ही रहेगा चाहे स्त्री के लिए हो या पुरुष के लिए l जो भी अपनी मर्यादा के दायरे को उलांघेगा ,वह इंसान कहलाने के काबिल ही नहीं l"

रूपा ने चीखते हुए कहा l सुनकर रवि की आंखें फ़ैली की फ़ैली ही रह गयीं l

​"अब तो तुम जैसे मक्कार जिस्म के भूंखे लोग कुछ मूर्ख महिलाओं को उनकी आजादी की दुहाई देकर अपना खूब उल्लू सीधा करोगे l"

रूपा ने कटाक्ष किया और चली गयी अपने कमरे में बच्चों के पास सोने सुबह को उसको ऑफिस और बच्चों को स्कूल भी तो भेजना था l


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