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Rashi Singh

Abstract

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Rashi Singh

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सौभाग्यवती

सौभाग्यवती

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​एक एक करके घर की कई महिलायें जिनकी आयु पचास तक का आंकड़ा भी पार नहीं कर पाई, परलोक सिधार गयी, पूरे खानदान में कई विधुर थे जो अपनी जिंदगी कैसे गुजार रहे थे यह तो बस वही जाने।

​लेकिन एक सकूंन या यह कहा जाए की गर्व था उनको की उनकी मेहरुआ उनसे पहले स्वर्ग सिधार गयी, चेहरे पर रौनक ला देता।

​कई तो बड़े गर्व से कहते सुने जा सकते थे की यह उनके घर पर ईश्वर का वरदान ही कहा जाएगा जो आज तक कोई भी महिला विधवा नहीं हुई।

​आज सुबह ही तो बड़ी काकी कह रही थीं की हे ईश्वर मुझे भी तुम्हारे काका से पहले उठा ले ...उनको मलाई पड़ा एक बेला भरकर बादाम और पिस्ता वाला दूध और खुद चटनी से खाती रूखी सूखी रोटी।

​"काकी आप भी कुछ अच्छा खा लिया करो !" श्वेता ने समझाते हुए कहा। 

​"बेटा मर्दों का खाना जरूरी है न की औरतों का !"काकी ने गर्वीले अंदाज में कहा।

​ मैं चुप हो गई, समझ में आ गया था परंपरा का कारण और उनके सौभाग्यवती होने का भी।


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