Priyanka Gupta

Inspirational

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Priyanka Gupta

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Task 6 #SMBossमानवता

Task 6 #SMBossमानवता

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"महाराज ,आप इन मामलों में न ही पड़ें तो बेहतर हैं। यह परम्परा वर्षों से चली आ रही है। आपकी माताश्री भी आपके पिताश्री की चिता के साथ सती हुई थी। आज आपके छोटे भ्राता की वधू को भी सती होना ही होगा। ",महामंत्री ने समझाते हुए कहा। 


"नहीं महामंत्री ,हमारे राज्य में आज के बाद कोई स्त्री सती नहीं होगी। यह हमारा आखिरी निर्णय है। अब इस पर कोई बहस नहीं। ",ऐसा कहकर महाराज प्रताप निकल गए थे। 


महाराज प्रताप का दुर्भाग्य कहें या सौभाग्य उन्हें अपने पूर्वजन्म की बातें अभी तक भी याद थी। पिछले जन्म में उन्होंने अपनी ज़िन्दगी के रंग देखे भी नहीं थे कि उन्हें अपने मृत पति के साथ ज़िंदा ही सती प्रथा के नाम पर जला दिया गया था। मरते क्षण तक उनका ह्रदय हाहाकार कर रहा था। जब उनकी माता सती हुई थी ;तब वह बहुत छोटे थे ,इसीलिए वह कुछ कर नहीं सके थे। 

लेकिन जब आज वह स्वयं वयस्क हो गए थे और शासन की बागडोर पूर्णरूपेण अपने हाथों में ले चुके थे तो इस प्रकार का निर्णय ले सकते थे। प्रताप एक अच्छे शासक साबित हो रहे थे। लेकिन उन्होंने देखा कि धार्मिक कर्मकांडों के नाम पर जनता कई कुप्रथाओं से जकड़ी हुई थी। पुरोहित मोटी दान -दक्षिणा ले रहे थे। उनको न चाहते हुए भी पड़ौसी राज्यों के साथ युद्ध करने पड़ रहे थे। जब भी - समझौते की बात करते तो उनके सभासद उनका मुखर विरोध करते। सभी कहते कि ,"आप एक क्षत्रिय हो। युद्ध करना क्षत्रिय का धर्म है ;आप अपने धर्म से भाग नहीं सकते। "

ऐसे ही एक युद्ध प्रताप की मृत्यु हो गयी। 

"मैं युद्ध का घोर विरोध करता हूँ। युद्ध अंतिम विकल्प होना चाहिए। मानव जाति के विरुद्ध युद्ध से बड़ा कोई अपराध नहीं है। मेरा एक ही धर्म है मानवता। ",उत्तम जी के उपदेश थे। उत्तम जी एक पहुंचे हुए सिद्ध पुरुष थे। उनके आशीर्वाद से कई लोग स्वस्थ हो चुके थे। राजा-महाराजा सभी उनके परम भक्त थे। वह मानव मात्र की सहायता की ही बात किया करते थे। उनका कहना था कि ,"जप,तप,हवन आदि सभी से बढ़कर है मानव सेवा। "

उन्होंने अपने प्रयासों से सैंकड़ों क्षत्रियों से शस्त्र छुड़वा दिए थे। उनका कहना था कि ,"अच्छी बातें बिना किसी युध के प्यार से स्वीकार करवाई जा सकती हैं। बुरेकार्य करवाने लिए घृणा भाव से युद्ध लड़े जाते हैं। "

"अपनी पुत्री को क्यों मार रही हो ?यह मानव हत्या क्यों ?",उत्तम जी ने कन्या वध कर रही एक स्त्री को रोकते हुए कहा। 


"आप अगर स्त्री होते तो जानते कि स्त्री होना कितना कठिन है। एक स्त्री जब से जन्म लेती है ;तब से उसे विभिन्न परीक्षाओं से होकर गुजरना पड़ता है। मैं गरीब औरत अपनी पुत्री को लोलुप नज़रों से कैसे बचाऊँगी ?बिना दहेज़ के इसका विवाह कैसे कर पाऊंगी। इसीलिए इसका मर जाना बेहतर है। ",उस औरत ने कहा। 


"तुम इस बच्ची को मुझे दे दो। मैं इसका पालन पोषण करूँगा। ",उत्तम जी ने कहा। 


उत्तम जी बच्ची का पालन पोषण कर रहे थे। बच्ची युवती हो गयी और उत्तम जी वृद्ध। उत्तम जी की वृद्धावस्था का लाभ उठाकर कुछ नीच व्यक्तियों ने रात्रि में उन पर हमला कर दिया। उत्तम जी मारे गए और वह युवती उन नीच व्यक्तियों की हवस का शिकार हो गयी। उसके बाद उस युवती को वेश्यावृत्ति में धकेल दिया गया। 

"यह लोगों का निजी मामला है। तुम उनके मामलों में टाँग क्यों अड़ाते रहते हो। कोई अपनी पुत्री को मारे -पीटे ;अपनी पत्नी पर हाथ उठाये ;हमें इससे क्या ?",किशोर हो रहे अपने बेटे उज्जवल को उसके पिताजी समझा रहे थे। 


"यह निजी मामला कैसे हो सकता है। इसी कारण तो पुरुषों की हिम्मत इतनी बढ़ जाती है। एक जगह पर हो रहा अन्याय सब जगह पर न्याय के लिए खतरा है। ",उज्जवल ने कहा। 


"मुझे तो लगता है इस पर किसी बुरी आत्मा का साया है। किसी भी स्त्री के साथ मारपीट होते देखकर यह बौखला जाता है। ",दादी ने कहा। 


"पता नहीं ,पिछले जन्म में क्या था ?जो इतना दुःखी कर उद्वेलित हो जाता है। ",माताजी ने कहा। 


लेकिन उज्जवल ने कभी किसी की सुनी नहीं। वह अकेला ही नारी जाति के अधिकारों के लिए लड़ता रहा। उसके घरवाले तक उसके विरुद्ध हो गए थे ;लेकिन वह मरते दम तक अपने उद्देश्यों से नहीं भटका। 


हो सकता है ,वह आज भी हम लोगों के बीच कहीं मानवता के कल्याण के लिए कार्य कर रहा हो। 


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