STORYMIRROR

pali kaur

Drama

2  

pali kaur

Drama

तालमेल

तालमेल

1 min
802

"सुनो नेहा गर्मियों की छुट्टियों अभी आधी बाकी हैं। मुझे घर से बाहर निकले हुए भी बहुत दिन हो गए हैं। अब मैं अपने घर जाने की सोच रही हूँ।"

"पर माँ अभी तो महीना पूरी छुट्टियों का पड़ा है। मैं छोटे से नवीन को कहाँ छोड़ूंगी। आप बस एक महीना और रुक जाइए। मेरी मदद हो जाएगी, प्लीज आप तो प्यारी माँ हैं।"

"हाँ बेटा तू सही कह रही है पर मेरा वापिस जा कर घर खेलना भी जरूरी है। बंद घर में पूरी धूल हो जाती है। वह भी साफ -सफाई माँगता है। और मेरी भी वहाँ सखियाँ हैं न अब तो बस मुझे जाने दो।"

" अरे, आपने तो जिद्द ही पकड़ ली। सोचो जरा इससे मेरी परेशानी कितनी बढ़ जाएगी। आप वो तो समझने को तैयार नहीं हैं।"

" अच्छा एक काम करो तुम थोड़े समय के लिए अपनी माँ को बुला ले, मिलजुल कर काम हो जाएगा।"

 " पर माँ, वो तो वहाँ से निकलने वाली हैं जयपुर घूमने के लिए।"

" ठीक है कह दो जयपुर से सीधे यहाँ आ जाएँगी।"

" नहीं -नहीं मैं उनका प्रोग्राम नहीं बिगाड़ सकती।"

" देखो नेहा मैं तो नहीं रुक सकती, या तो अपनी माँ को बुला लो या फिर तुम छुट्टी लेकर अपना घर संभालो।"

माँ अपना सामान समेटने लगी।


Rate this content
Log in

Similar hindi story from Drama