बासी रोटी

बासी रोटी

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रात के खाने के बाद से ही बची हुई रोटी इंतजार कर रही थी कि कोई उसे खाये पर यह क्या मालकिन ने डब्बे में बंद करके रख दिया। सारी रात सोचते हुए सुबह खटर-पटर से उनींदी आँखों से देखा उसने, डिब्बा खुला उसमें सबकी पसंद की पूड़ियाँ ‌और आलू के पराठे सजने लगे। वह फिर सब के भार व स्व अपमान के नीचे दबने लगी और सोचने लगी कि हो मैं फिर यही रह जाऊँगी मुझे तो कोई पूछेगा भी नहीं और बाहर कुत्तों को डाल दिया जाएगा। मैं क्या करूँ मेरी किस्मत ही शायद ऐसी है वह सोच ही रही थी कि घर में किसी बुजुर्ग, लगता है दादा जी कुछ कह रहे हैं मैंने कान देकर सुना।

अरे भाई, सुनो मुझे ये पूड़ी, पराठा बिलकुल नहीं चाहिए। मुझे रात की रोटी हो तो वही दे दो ताजा मक्खन के साथ।

अपने पिताजी का आदर करते हुए नहीं-नहीं पिताजी ये कैसे हो सकता है। हम सब अच्छे अच्छे पराठे खाएं, पूड़ी सब्जी खाएँ और आपको रात की बासी रोटी दे, नहीं बिलकुल नहीं।

अरे तुम नहीं जानते सब लोग कि बासी रोटी तो बहुत अच्छी होती है, गुणों से भरपूर, जो शुगर वालों के लिए तो बहुत ही नायाब तोहफा है। ये आलू के पराठे ये फूली फूली रोटी ये सब पेट के लिए बहुत नुकसानदायक है, गैस बहुत होती है, देखो फूली रोटी कैसे फूली नहीं समा रही, इतना सुनना था कि आलू का पराठा और पूड़ी अपना सा मुँह लेकर रह गए। अब खुशी व अपने स्वाभिमान को बरकरार रखते हुए वह दादा जी की प्लेट में पूरे ठाठ-बाट से इतरा रही थी।


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