विडंबना

विडंबना

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"राज देख अभी शाम के छः नहीं बजे और अंधेरा घिरने लगा है।''

''हाँ रीमा सर्दी के दिन तो ऐसे ही होते हैं।''

''तुमने ये कैसे सोचा कि मैं मेरी शादी की वर्षगाँठ इस तरह से मनाऊँगी। देखो तो सब बाहर घूम फिर कर पिक्चर देख कर होटल में खाना खा कर मनाते हैं।'' 

'' अरे हाँ हमारे ग्रुप में हम लोगों ने ऐसा सोचा कि हम तो चाहे जब मन का खाते रहते हैं लेकिन ये ग़रीब अपना मन मार कर जीते हैं। हम मौसम के हिसाब से चाय और समोसे लेकर चलते हैं कहीं भी कोई बैठा दिखता है, भूखा ग़रीब तो उसको चाय और समोसे हम देते हैं और इसमें हमें बहुत खुशी मिलती है।''

''हाँ बात तो तेरी सही है, ऐसे अगर सबकी सोच बदल जाए तो कितना अच्छा हो जाए।''

''अरे- अरे देख वो दो बूढ़ी औरतें बिचारी ठंड में बैठीं हैं उनको समोसे देते हैं अब जल्दी से गाड़ी रोक।''

''लीजिए माँ जी आप गर्म- गर्म समोसे खाइये राज ने चार समोसे उन्हें दे दिए और रीमा थर्मोकोल के कप में उनके लिए चाय डालने लगी तो उनकी निगाह बूढ़ी औरतों द्वारा पीछे से बोतल निकालते हुए पर नज़र टिक गई।




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