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ashok kumar bhatnagar

Inspirational

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स्वतंत्रता आंदोलन में आदिवासी समाज का योगदान

स्वतंत्रता आंदोलन में आदिवासी समाज का योगदान

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  सन 1780 से सन 1857 तक आदिवासियों ने अनेकों स्वतंत्रता आंदोलन किए। सन 1780 का “दामिन विद्रोह” जो तिलका मांझी ने चलाया, सन 1855 का “सिहू कान्हू विद्रोह”, सन 1828 से 1832 तक बुधू भगत द्वारा चलाया गया “लरका आन्दोलन” बहुत प्रसिद्ध आदिवासी आंदोलन हैं। इतिहास में इन आंदोलनों का कहीं जिक्र तक नहीं हैं।

            भारतीय इतिहासकारों ने सन 1857 की क्रान्ति को स्वतंत्रता संग्राम का पहला आंदोलन बताया हैं। हकीकत में सन 1857 से 100 साल पहले आदिवासियों ने स्वतंत्रता आंदोलन शुरू कर दिया था।

           स्वतंत्रता आंदोलन में आदिवासियों की भूमिका समझने के लिए उसकी पृष्ठभूमि को समझना जरूरी हैं। यह सच हैं कि आदिवासियों द्वारा चलाये गए आंदोलन स्थानीय परिस्थितियों के अनुसार स्थानीय स्तर पर ही लड़े गये। पूरे भारत की स्वतंत्रता के लिए आदिवासियों ने कभी अंग्रेजों के विरूद्ध युद्ध नहीं लड़े। इसका प्रमुख कारण हैं आदिवासी कई उपजातियों और समूह में बटा हुआ था। आज भी बंटा हुआ हैं

          पूर्वोत्तर के सात राज्यों-मेघालय, मणिपुर, मिजोरम, असम, अरूणाचल प्रदेश, नागालैंड और त्रिपुरा में आदिवासियों का बाहुल्य हैं। यही कारण हैं कि पूर्वोत्तर के सीमावर्ती प्रदेश बिहार और झारखंड जनजाति आंदोलन के प्रमुख केन्द्र रहे हैं। आदिवासी पूर्वोत्तर के सात राज्यों के अलावा झारखंड, बिहार, पश्चिमी बंगाल, उड़ीसा, छत्तीस गढ़, मध्यप्रदेश एवं राजस्थान में बसे हुए हैं।

            महात्मा गांधी ने सिर्फ अंग्रेजों के खिलाफ आंदोलन किया था। महात्मा गांधी ने राजा-महाराजाओं, सामंतों और जमींदारों के अन्याय और अत्याचारों की कभी ख़िलाफत नहीं की। उनके खिलाफ कभी नहीं बोले। वे उनके समर्थक बने रहे। साहूकारों के शोषण के संबंध में भी उनकी यही नीति रही। अंग्रेजों ने भारतीय जनता पर सीधा शासन नहीं किया। उन्होने राजा-महाराजाओं, सामंतों और जमींदारों के माध्यम से शासन चलाया। ब्रिटिश शासकों को कोई कानून भारतीय जनता पर लागू करवाना होता तो इन्हीं के मार्फत लागू करवाते थे। राजस्व वसूली भी राजा-महाराजाओं और जमींदारों के माध्यम से ही करते थे। 

         इसलिए आदिवासियों की सीधी लड़ाई जमींदारों और सामंतों से होती थी। आदिवासियों को स्वायत्तता और स्वतंत्रता के हर आंदोलन में अंग्रेजी हुकूमत के साथ-साथ सामंतों और साहूकारों से भी संघर्ष करना पड़ा था। आदिवासियों का आंदोलन ज्यादा व्यापक था।


        आदिवासियों को स्वतंत्रता आंदोलनों की भारी कीमत चुकानी पड़ी। अंग्रेजों के पास भारी संख्या में सुसज्जित सेना थी। आधुनिक हथियार-बंदूकें, तोपें, गोला और बारूद था। सामंतों के पास प्रशिक्षित पुलिस फोर्स थी। साहूकारों के पास धन-दौलत की ताकत थी। इनके मुकाबले में आदिवासियों के पास युद्ध के परम्परागत साधन तीन-कमान, भाले, फर से और गण्डासे थे। आदिवासी आर्थिक रूप से कमजोर थे। संसाधनों की कमी थी। इसलिए हर आंदोलन में आदिवासियों को जान-माल की भारी क्षति उठा नी पड़ी

        सन 1855 में संथाल (झारखंड) के आदिवासी वीर योद्धा सिद्दू और कान्हू का विद्रोह हुआ। इसमें 30-35 हजार आदिवासियों ने भाग लिया।इसमें 10 हजार आदिवासी मारे गये।

       सन् 1913 में मान गढ़ में हुए आदिवासी आंदोलन में भी 1500 आदिवासी शहीद हुए थे। आंकड़े बताते हैं कि आदिवासी आंदोलनों में लाखों आदिवासियों की जाने गई।

        भारत का सही इतिहास कभी लिखा ही नहीं तिलका मांझी ने चलाया, सन 1855 का “सिहू कान्हू विद्रोह”, सन 1828 से 1832 तक बुधू भगत द्वारा चलाया गया “लरका आन्दोलन” बहुत प्रसिद्ध आदिवासी आंदोलन हैं। इतिहास में इन आंदोलनों का कहीं जिक्र तक नहीं हैं। 

      इसी तरह आदिवासी क्रान्तिवीरों जिन्होंने अंग्रेजों से लड़ते हुए प्राण गंवाएं उनका भी इतिहास में कहीं वर्णन नहीं हैं। छत्तीस गढ़ का प्रथम शहीद वीर नारायण सिंह 1857 में शहीद हुआ। मध्य प्रदेश के नीमाड़ का पहला विद्रोही भील तांतिया उर्फ टंटिया मामा सन 1888 में शहीद हुआ। इसी तरह आदिवासी युग पुरुष बिरसा मुण्डा सन् 1900 में शहीद हुआ। जेल में ही उसकी मृत्यु हो गई। सन 1913 में हुए मानगढ़ आंदोलन के नायक गोविन्द गुरू का भी इतिहास में कहीं उल्लेख तक नहीं हैं। इतिहासकारों ने दलितों और आदिवासियों को इतिहास में कहीं स्थान नहीं दिया अलबत्ता इनके इतिहास को विकृत और विलुप्त करने में अपनी अहम भूमिका निभाई। 

       आदिवासी आंदोलनकारियों की छवि खराब करने के लिए वीर नारायणसिंह, टंटिया मामा और बिरसा मुण्डा को डकैत और लुटेरा बताया, जबकि वे आदिवासियों में बहुत लोकप्रिय रहे हैं और स्वतंत्रता आंदोलनों का सफल नेतृत्व किया हैं। इतिहासकारों ने अपने लेखन धर्म को निष्पक्षता और ईमानदारी से नहीं निभाया।


 


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