स्वतंत्र भारत #FreeIndia
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सत्य है ! 15 अगस्त 1947 के दिन भारत को स्वतंत्रता मिली थी। इतना ही नहीं ,26 जनवरी 1950 के दिन भारत को स्वयं का संविधान भी प्राप्त हो गया था। इस स्वतंत्रता व संविधान का हमारे जीवन पर अत्यंत गहरा प्रभाव पड़ा है। और इन्हीं के कारण हमारा मस्तिष्क आज गर्व से उठा हुआ है।
संविधान का अर्थ है नियम , किंतु स्वतंत्रता का क्या अर्थ है ? क्या इसका अर्थ है कि बिना विचार किए धर्म - अधर्म करते बनो ? या इसका अर्थ है कि एक व्यक्ति या विचारधारा का पूर्णत: शासन अन्यथा पूर्णत: समाज उस व्यक्ति या विचारधारा के अधीन हो जाए? नहीं, यह अनुचित है। स्वतंत्रता का अर्थ इन दोनों में से कोई नहीं है। यह तो लोगों की भूल है।स्वतंत्रता का अर्थ है कि स्वयं की प्रतिष्ठा व अस्तित्व का संरक्षण करना किंतु स्वार्थ का नहीं। स्वतंत्रता पर कोई बाँध नहीं है किंतु यह मर्यादित होती है। दूसरों के स्वतंत्रता को खंडित करना अथवा दूसरों के अधिकारों का विघ्न बनना स्वतंत्रता नहीं उद्दंडता है। यह स्वतंत्रता से मेल नहीं रखती है , किंतु आश्चर्य !
लोग तब भी इन दोनों के विपरीत होने की बात न समझ कर दोनों को एक समझने की भूल करते हैं। और कितनी व्याख्या कर सकते हैं ? समानता के नाम पर आज सभी एक दूसरे से आगे बढ़ने की होड़ लगाए हुए हैं। किसी को पूर्ण स्वतंत्रता दी जा रही है तो किसी को बाँधकर रखा जा रहा है।
कोई धनी को और अधिक धनी बनाने में लगा हुआ है तो कोई धनी से धन छीन कर निर्धन में बाँटने का विचार कर रहा है। किसी को अपने शासन पर अहंकार हो रहा है एवं सबको सीमा में बाँध रहा है तो कोई नेत्र बन्द कर इसके अधीन चले जा रहा है। स्वतंत्रता तो विचारों को प्रकाशित करने के लिए साहस देती है , किंतु अन्यों की स्वतंत्रता का उल्लंघन करना स्वतंत्रता कदापि नहीं है। हम में से कोई एक अनन्य स्वतंत्रता की परिभाषा को पूर्ण तथा विस्तृत रूप से सब तक नहीं पहुंचा सकता है। हम आज कहलाने को तो स्वतंत्र है किंतु मन से हम कहीं ना कहीं अभी भी गुलाम है।
फिरंगियों से सम्बंध जोड़कर हम गुलाम हुए। किसी के बताए मार्ग पर चलना उचित है किंतु एक समय की गई भूल को फिर से दोहराना तो मूर्खता है। जिसने हमें पूर्व में छला है , उसे हम स्वयं को पुन: कैसे छ्लने दे सकते हैं? यद्यपि किसी को यह प्रतीत होता है की सामान आदान-प्रदान करने से हम कैसे गुलाम होंगे ?
तो स्मरण करना की फिरंगी पूर्व में ऐसे ही तो आये थे। व्यापारी बनकर आए थे और शासन करने लगे। उस काल में तो देश भक्तों ने हमारी रक्षा की। किन्तु पुन: कौन करेगा? और कितनो से उनके जीवन छीनोगे ? अंतिम बार स्मरण दिला दूँ कि हम अभी भी मन से कहीं ना कहीं गुलाम है। परिवर्तन से हम पूर्णत: स्वतंत्र हो सकते हैं किंतु हाथ पर हाथ धरे रहने से कहीं ऐसा ना हो की हम पुन: गुलाम बन जाये किसी भी प्रकार से। चाहे वो फिरंगी हो अथवा देशवासियों की विचारधारा। विवाद तो छेड़ दिया है। ऐसा नहीं हैं की सब मूर्ख है अपितु सब सक्षम है इस बात के बारे में विचार करने के। तत्पश्चात हम पूर्ण रूप से स्वतंत्र हो जाएँगे।
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