स्वप्न सलोना
स्वप्न सलोना


आखिरकार वो दिन आ ही गया जिसका मुझे ना जाने कब से इन्तज़ार था । मेरी जिला कलेक्टर पद पर नियुक्ति हो गयी थी। बहुत वर्षों तक संघर्ष किया, मेहनत की, तब जाकर यह खुशनुमा पल ज़िन्दगी में आया था ।अब समय आ गया था कि मैं अपने उन सब सपनों को साकार करूँ जो मेरी आँखों में पल रहे थे । लंबी गाड़ी, बड़ा सा बंगला, खूब सारा पैसा...
ना ! ये सब पाना मेरा सपना नहीं था । ऐशो-आराम के सारे साधन तो शुरू से ही उपलब्ध थे । मेरा सपना था कि नीली बत्ती की सरकारी गाड़ी में बैठू । अब उस गाड़ी में सवार होने का समय आ गया था । नीली बत्ती का तो खैर प्रयोग बंद हो गया था लेकिन गाड़ी तो सरकारी थी ना ! रुतबा ही कुछ और होता है ।
अब बारी थी काम करने की । मैंने कई बार नोटिस किया था कि मेरे राज्य में पानी की काफी किल्लत है लेकिन फिर भी जनता काफी पानी बर्बाद करती है, मोटर चला कर लोग भूल जाते हैं और लाखो लीटर पानी व्यर्थ ही बर्बाद हो जाता है। मैंने अपने आस-पास रहने वाले बहुत सारे परिवारों को पानी का अपव्यय करते देखा था, कई बार उन्हें समझाने की कोशिश भी की लेकिन उन्होंने मेरी बात को हल्के में उड़ा दिया था परंतु अब मेरे पास काफी शक्तियाँ थी, उनका उपयोग करते हुए मैंने नियम बनाया कि हर घर में टंकी से जुड़ा एक अलार्म लगाया जाये ताकि टंकी पुरी भ
रने पर वो आवाज़ करे और लोग सचेत हो जाए, पानी व्यर्थ ना बहे । मेरे कार्य क्षेत्र के हर घर में यह अलार्म नि:शुल्क उपलब्ध करवाया गया। इस उपाय से अब लाखों लीटर पानी बचने लगा । जनता द्वारा भी मेरा यह कार्य काफी सराहा गया।
अमूल्य पानी का अपव्यय रोकने का प्रभावी कदम उठाने के उपलक्ष्य में मुझे सम्मानित भी किया गया ।सम्मान समारोह के उपरांत मैं घर लौट रही थी, तभी रास्ते में मौसम बिगड़ने लगा । तेज हवा चलने लगी और बारिश शुरू हो गयी। मैं अपनी गाड़ी में बैठी थी पर पता नहीं कैसे और कहाँ से पानी की बूँदें मुझे भिगोने लगी । मैंने बचने की कोशिश भी की पर पानी के छींटे लगातार मेरे मुँह पर बरस रहे थे।
तभी एकदम से मेरे पैरों के नीचे की ज़मीन हिलने लगी। हे भगवान, यह क्या ! बारिश के साथ-साथ भूकंप भी आ रहा था शायद ।
पर तभी मुझे मेरी मम्मी की आवाज़ सुनाई दी- "अरे बेटा, उठ जाओ ! कब तक सोती रहोगी, सुबह हो गयी है !!
उफ ! तो मैं सपना देख रही थी !! सिविल सर्विसेज की पढ़ाई के दौरान रात को सोते वक्त 'जल सरंक्षण कैसे किया जाये' इस विषय से संबंधित लेख पढ़ते-पढ़ते ही नींद आ गई थी।
मम्मी मुझे उठाने के लिए मुँह पर पानी के छींटे मारने के साथ-साथ मुझे झकझोर भी रही थी । नींद की पक्की जो थी मै !