स्वच्छंद
स्वच्छंद
मैं सभी प्रतिबंधों से स्वतंत्र नारी हूं। मुझे किसी बंधन में मत बांधो। मुझे मेरी राह पर अग्रसर रहने दो। समाज की दकियानूसी बातों से मैं बहुत दूर हूं। मेरे विचार स्वतंत्र हैं। सभी देवता मुझे स्मरण करते हैं, लेकिन तुम सभी पुरुष एक स्त्री की अवहेलना करते हो। उसके चरित्र को उसके कपड़ों से तय करते हो। तुम क्या जानो एक स्त्री की सुंदरता को, जब स्वयं ब्रह्मा नहीं समझ पाए। याद है विष्णु जी ने अमृत कलश पाने के लिए मोहनी का रूप धारण किया था। मोहनी कौन थी? पता है क्या? मोहनी मादकता का वह मूल रूप थी, जिसे देखकर हर जीव भ्रमित हो जाता है और शून्य में खो जाता है। ठीक उसी प्रकार जैसे कीट पतंगे जगमग करते दीपों की तरफ आकर्षित होते हैं।
संसार में हर स्त्री एक मोहिनी है। पुरुष उस मोहिनी की तरफ आकर्षित होता है। मुझे यह सब देखकर बहुत अच्छा लगता है। मुझे झरनों के नीचे नहाना अच्छा लगता है। मुझे समुंदर की गहराइयों में तैरना अच्छा लगता है। मुझे आसमान की स्वच्छंद ऊंचाइयों पर उड़ना अच्छा लगता है। मेरी स्वच्छता में जो भी बाधा बनेगा, उसे मैं रास्ते से हटा दूंगी।
मैं आधुनिक नारी हूं।
मैं खुद को जगा लूंगी।।