Shailaja Bhattad

Tragedy

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Shailaja Bhattad

Tragedy

सूर्योदय

सूर्योदय

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रूपाली और उसका परिवार हतप्रभ था। कहां वे भारत में रहकर भी बच्चों को विदेशी संस्कृति का जामा पहना रहे थे सिर्फ इसलिए कि उनके बच्चे विदेशों में रह रहे रिश्तेदारों के सामने स्वयं को पिछड़ा महसूस न करें लेकिन, जब कनाडा में रह रहे उनके रिश्तेदारों के घर में भारतीय संस्कृति को ही सांस लेते देखा तो, उनकी नजरें झुक गई। ग्लानि महसूस हुई कि, उनके बच्चे न तो अच्छे से अपनी मातृभाषा बोल पाते हैं ना ही रामायण,गीता, पुराण ही जानते हैं । वहीं वे बच्चें संस्कृत में भी पारंगत हैं। भारत में रहकर भी जहां रूपाली का परिवार हिंग्लिश बोलता है। वे संस्कृत और हिंदी बोलते हैं। जहां उन्होंने अपनी संस्कृति को सहेजकर उसका मान सम्मान बनाए रखा रूपाली का परिवार खुद को "धोबी का कुत्ता न घर का न घाट का" स्थिति में देख रहा था। लेकिन देर आए दुरुस्त आए रूपाली ने अब कमर कस ली थी। उसके परिवार में सूर्योदय हो चुका था।


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