Bhawna Kukreti

Tragedy

5.0  

Bhawna Kukreti

Tragedy

सुसंस्कृत शोभना

सुसंस्कृत शोभना

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शोभना , माँ के सामने बैठी अपने दुपट्टे के कोने को उंगलियों मे लपेट रही थी।माँ उसे समझा रही थी कि उसके लिए जो सोचा है वह सही है।माँ ने उसके जनम से पहले जीवन मे बहुत तंगी देखी थी। किस मुश्किल तरह से वो खुद पली बढ़ी और फिर शादी के बाद कैसे उसके भाई बहनों को पाल पोस रही थी।इसका आना भी तो अचानक ही था ।इसे तो वो गिराना चाहते थे मगर ये ढीठ थी ,खैर जन्मते ही जैसे सब समय पलट गया।लेकिन जो कठिनाईयाँ उसकी माँ ने देखी थीं वो माँ हर निर्णय को असर करता था।उसने पहले और आखिरी बार कुछ कहना चाहा "माँ " लेकिन आवाज गले मे रह गयी।शायद माँ ने भी सुना ,अनसुना कर दिया।

रिश्ते उसके लिये खुद चल कर घर आ रहे थे । उसकी संस्कृति मे कुंडली मिलान पर बहुत जोर रहता था।इस बार बिरादरी के सबसे सुसंस्कृत और अमीर घर से रिश्ता आया था। औरों की तरह कुंडली और गृह दशा पर जैसे उनकी अन्ध श्रदधा थी। उनके कुल पुरोहित जी से उनको पता चला की इसकी कुंडली मे बैठे ग्रह पति और उसके परिवार लिये अत्यंत शुभ हैं जहाँ रहेगी ,जिसके साथ जुड़ेगी उसके लिये समृद्धि-सम्मान का अमृत कुम्भ होगी।बस तब से उसके घरों के चक्कर लग रहे थे। वे चाहते थे की जल्द से जल्द ये विवाह सम्पन्न हो।


रात मे सब छत पर सोये थे ,कल बात पक्की होनी थी।माँ-बेटी तारों की छाँव मे लेटे अपनी अपनी सोच मे थे। माँ को याद आया की उस दिन बेटी कुछ कहते-कहते रुक गयी थी।"तेरे मन मे कुछ है तो बता बेटा ",क्या माँ ?" वो अपनी सोच के आकाश से बाहर निकली।"कल सगाई है तेरी","जी ,माँ आपने जो सोचा होगा सही सोचा होगा ।","फिर भी,बोल क्या है मन मे ,तुझे मेरी कसम !" माँ ने लेटे लेटे उसका हाथ अपने सर पर रख दिया। 


अगले दिन सगाई धूम धाम से हुई। लड़के वालों की छटा अलग ही दिख रही थी। सब साफ रंग के,लम्बे-तगड़े, खानदानी रईस लग रहे थे।शोभना उनके बीच गेंहू के बीज सी।लोग बेमेल से दिखती जोड़ी पर फुसफुसा रहे थे। शोभना को भी अटपटा सा लग रहा था। उसने कनखियों से देखा विवेक कितना सुन्दर और सजीला सा दिख रहा था,उम्र मे 10 साल बडा था मगर चेहरे से जरा भी नही लगता था।उसकी माँ,बहने जैसे सब फिल्म की हेरोइनें ।पिताजी भी किसी नेता जी से कम नही दिख रहे थे। उसके मन मे रेशम पर टाट का पैबन्द उभरने लगा।माँ उसके पास आई,"मेरी लाडो " कह कर उसकी बलैयां लीं।होने वाली सास जी ने उद्घोष किया" पण्डित जी कहां हैं उनको बुलाओ कोई "।सगाई की रस्म हो गई, सब अपने अपने सपने लिये लौट गये।


लेकिन शोभना के दीमाग मे एक वाक्य उधम मचाये था।जो विवेक ने उसको चम्मच से खाना खिलाते हुए कहा था "यू नो आप मेरी लकी चार्म हैं!" शोभना के गले मे निवाला अटक गया था।माँ को घेरे मोहल्ले की औरतें शोभना के बड़ भागी होने पर अपनी अपनी यादें बाँट रही थीं। "जिज्जी,बचपन मे शोभना ने कहा था लल्ला आयेगा ,और वरुण पैदा हुआ ।", "बुआ जी, शोभना दीदी साथ गईं थीं तभी हमारा सलेक्शन हुआ था।"," भाभी याद है इसके आते ही 6 महिने मे कैसे भैया को कम्पनी मे बड़ा ओहदा मिला था।"।जितने लोग थे उतनी ही कहानियाँ।शोभना का मन मगर कुछ और भय से कांप रहा था।"लकी चार्म!!,हे भोलेनाथ कृपा बनाये रखियेगा।" शोभना गले मे पड़े शिव जी के लॉकेट को मुट्ठी मे दबाये एक कमरे से दूसरे कमरे मे बेचैनी से घूम रही थी।माँ ने उसे चहल कदमी करते देखा तो सब औरतों को जल्दी जल्दी विदा कर उसके पास आ गयी।

"माँ ,जिन उम्मीदों को पूरा करना अपने हाथ ना हो वो आपसे अन्ध विश्वास बन जुड़ जायें तो डर लगता है।" शोभना ने बडी हिम्मत करके माँ से अपने डर को कहा।माँ उसे सुनते रह गयी।शोभना उनके लिये आज तक वही नन्ही बच्ची थी जो बिल्ली के बच्चे की म्याऊं सुनते ही उनके पीछे छुप जाती थी,उसकी समझ की गहराई देख वो हैरान थीं।


महीने भर के अन्दर शादी धूम धाम से हो गई।शोभना पहली रात भी मन ही मन "शिव-शिव" करती रही।विवेक ने अल्मारी से एक बॉक्स और एक लेटर निकाला।"इन्हे खोलिये" उसके हाथों मे उसे देते हुए उसने कहा। देखा एक मैडल था , लेटर मे लंदन मे वाईस प्रेसीडेंट पोस्ट का ऑफर था।"मैने कहा था न आप मेरी लकी चार्म हैं। जिस दिन आपको पहले देखने आया था तभी ओफ्फिस से गोल्ड मैडल का इंटिमेशन आया था।जब सगाई को आ रहा था तो एक रात पहले ये ऑफर आया,कल आखिरी दिन है जवाब देने का ।" विवेक उसे लगातार देखते हुए कह रहा था।"शिव" शोभना के मुह से गहरी साँस के साथ निकला।"शिव?!" ,"सब शिव जी की कृपा है ।" विवेक की आवाज और भवों मे सवाल का उतार चढाव को तुरन्त शोभना ने देख लिया था।वो और भी सहम सी गई।"तो कर लूँ जॉइन ?!","जी, जो आपको सही लगे।","ओक्के जी, जो हमे सही लगे !? सुन्दर, तो मन रन्जनी भी हो तुम!!" शोभना को विवेक के प्रेम मे अपना आधार मिल गया।


उसी हफ्ते शोभना के ससुर जी ने मजाक मे पूछा "बेटा हम पार्षद बनेगें ?", "जी " शोभना ने संस्कार वश उत्तर दिया। ससुर जी को संयोग से पार्षदी का टिकट मिला और पार्षदी भी मिल गई, शोभना के नाम से कई जायदाद एक के बाद एक खरीदी जाने लगी, कुटुंब मे भी बरकत बरसने लगी।इधर तीनो ननद जी का अच्छे घर मे रिश्ता हो गया। सास जी को मायके से जमीन के केस मे जीत मिल गई।घर मे किलकारी गूंजी।ये सब 4 सालों मे बड़ी तेजी से हुआ।यहां भी शोभना की बानी और पैर शुभ हैं की बात तेजी से फैलने लगी।कुल पुरोहित ने कहा की शोभना में "देवत्व" मालूम होता है।उसकी चौकी लगानी चाहिये। शोभना की सास जी सहर्ष तैयार हो गईं। शोभना, विवेक से बताना चाहती थी कि ये सब उसे नहीं पसंद और उसे भयाक्रांत करने वाला है मगर विवेक,जो उसके जीवन का आधार था ,उसकी अपने परिवार और पिढी़यों के विश्वास के प्रति समर्पण देख वह कुछ नहीं कह सकी।विवेक को फिर विदेश मे बुलवा लिया गया।

चौकी लगनी शुरु हुई।शोभना को इन सब बातों मे होता क्या है इसका रत्ती भर पता नहीं था।वो चुप चाप मूर्ती की तरह बैठी रह्ती और अपने अराध्य का नाम जपती रह्ती,आँखों से आँसूं बहते,मन मे विवेक की छवि उभरती जो उसे और भावुक करती चलती। मगर आस पास जोर-जोर से कान फाड़ते भजन उसे सुन्न कर देते ।कुल पुरोहित जी उसके जागृत देवत्व की महिमा कह्ते।उसके मायके से मोहल्ले की औरतें भी आकर इन सब को बढावा देतीं। 

शोभना के आस पास अब सब भक्ति भाव से व्यवहार करने लगे ,उसकी सन्तान भी अब उसे माँ न कह कर देवी मैया कहती तो उसकी ममता छलनी हो जाती। विवेक विदेश से लौटा तो सब सुन कर अभिभूत हो गया ।धीरे-धीरे वह भी उसके प्रति प्रेम भाव से हट कर भक्ति भाव मे आ गया था। इस अन्धविश्वास ने उसका पति भी छीन लिया। परिवार अब उसका अनुयायी था। 


कई बार उसने कहा की जैसा वे सोचते हैं ऐसा कुछ नही,सब मात्र संयोग है। पर परिवार के सदस्य 'अभी वो शुषुप्त अवस्था में है इसलिये ऐसा कह रही है 'कह कर उसे अनसुना कर देते।


धीरे धीरे शोभना के दिलो-दीमाग पर इतना असर होने लगा की वह तेज आवाज मे बजते भजनो से सिहरने लगती जिसे लोग देवी का अवतरण समझ सवालों की झड़ी लगा देते ।वो अपनी बेबसी पर कभी कान बन्द करती,कभी रो पड़ती कभी नियति के खेल पर ठठा के हँस पड़ती।और सब आगन्तुक उसमे अपने-अपने प्रश्नो के अर्थ निकालते,खुश होकर घर जाते की देवी ने उनका उत्तर दिया।


एक दिन विवेक की दूसरी शादी की चर्चा उसके कानो मे पड़ी। उसने विवेक से उत्तर चाहा मगर विवेक से कोई उत्तर उसे न मिला। अगले दिन मुहँ अन्धेरे वो घर से भाग निकली।घर भर में कोहराम मच गया।उसे सब जगह ढूंढा पर वो कहीं न मिली।विवेक भी दूसरी शादी कर विदेश चला गया।ससुराल मे सबने कुछ महीनों की खोज के बाद उसे मृत समझ लिया।एक मन्दिर उसकी स्मृति मे बनाया गया जहाँ उसकी मूर्ती को स्थापित किया गया।अब इस मन्दिर में हर शुक्रवार को भजन कीर्तन होते और शोभना की मूर्ती पर पुष्प अर्पण कर उनसे अर्थ निकाले जाते।


खैर,उस दिन शोभना भाग कर घर से दूर चली तो आई थी पर किधर ठौर करे उसे नहीं पता था।वह चलते-चलते शहर के बाहर निकल आई थी। रात होने को थी, एक कस्बा शुरु हो गया था। शराबियों की एक टोली उसकी ओर अपने नशे मे धुत्त चली आ रही थी। शोभना किसी अनहोनी की आशंका मे एक कच्चे टूटे घर की देहरी पर चली गईं।सान्कल खड़कायी ,एक वृद्धा ने किवाड़ खोले।

"जाने क्या दुख है तुमको पर तुम्हारे कपड़ों और गहनो से पता चल रहा है की अच्छे घर की हो" बासी रोटी और चाय के साथ वृद्धा ने सवाल भी शोभना को दिया।"जी माँ जी , बस मुझे सुबह तक सर छिपाने को आसरा दे दिजीये।फिर मेरा भाग जहाँ ले जाये" शोभना ने दीन स्वर में कहा। " पर तुम घर से भागी क्यूँ ?" वृद्धा ने सर पर हाथ फेरते हुए पूछा। तभी किवाड़ खोलकर एक प्रसन्न नौजवान घर में चला आया और वृद्धा से गले लग गया। "माँ अभी-अभी मोड़ पर गुरू जी मिले,बोले कल से नौकरी पर आ जाना,पगार 10,000/- महीना ।", " जय जय राम ,जय जय राम , ये तो चमत्कार हुआ बेटा, बोलो जय जय राम,जय जय राम " , उस नौजवान ने शोभना को वहीँ देखा तो पूछा "आप कौन"," इन्हे तो साक्षात लक्ष्मी समझो विष्णू। बड़े शुभ हैं तुम्हारे कदम बिटिया,यहीं रहो कहीं मत जाओ,ये घर अब से तुम्हारा ही है " कह कर वृद्धा ने किवाड़ बन्द कर दिये, उधर शोभना के गले में फिर निवाला अटक गया था।


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