सुरंग कुएं
सुरंग कुएं


मित्रो,उत्तरी केरल और कर्नाटक में सुरंग अर्थात गुफा कुएं एक प्राचीन जल संचयन की विधि है। कन्नड़ में इसे सुरंग और मलयालम में थुरंगमस कहते हैं।
इन विचित्र सुरंग कुओं को 300 मीटर गहरा और 2.5 फुट चौड़ा खोदने पर भूमिगत सोता मिलता है।उस तरह के जल के सोते सतत जल के सबसे अधिक स्रोत होते हैं।सुरंग के भीतर के जल सुरंग के पास बने भंडारण से समुचित व्यवस्थित रुप से बहने लगता है। एक बार यह जल बहन शुरू करता है,तो वर्षों निरंतर ताजा देता रहता है। इस जल को पाने के लिए किसी पानी की मोटर या पंप की आवश्यकता नहीं पड़ती।
कहते हैं यह ईरान की देन है।दुख का विषय है कि आज बोरवेल ने धरती के हृदय तक पंहुच कर उसे भीतर से खोखला कर दिया है और सुरंग कुएं बनने वालों की रोजी छीन ली है।
इन सुरंगों को खोदने के लिए मेहनत के साथ दृढ निश्चय की भी आवश्यकता होती है। प्राणवायु का स्तर बहुत कम होता है।सांस घुटने का डर बना रहता है।खुदाई करने वाले दियासलाई जला कर प्राणवायु का स्तर जांचते रहते हैं,खतरा होने पर तुरंत निकलना होता है ,थोड़ी
सी लापरवाही जानलेवा हो सकती है।यह भी सावधानी रखनी होती है कि सुरंगे ढह न जाएं।प्रकृति की पहचान की तेज नजर होनी चाहिए।उदाहरण के लिए सुरंग खोदने से पहले आसपास के पोधों का बारीकी से निरीक्षण करना होता है।यदि पोेधे स्वस्थ हैं,मिट्टी में सही मात्रा में नमी है,इसका अर्थ कि वह सही जगह है।
आज कासरगोड जिले में 5000 से अधिक सुरंग हैं किंतु अधिकतर निष्क्रिय हैं।पहले भी जल संचयन कि अनेक विधियां हुआ करती थीं।राजा भोज की राजधानी,धार साढ़े बारह तालाबों का नगर कहलाता था।बरसात के दौरान एक तालाब भर जाने पर उसका ओवर फ्लो अतिरिक्त जल बहकर दूसरे तालाबों में चला जाता था।इस प्रकार बिना पानी की बर्बादी किये वर्षा के पानी को एकत्रित कर लिया जाता था।तालाब उस स्थान का सौंदर्य बढ़ाने के साथ भूजल स्तर को भी बढ़ाये रखने में भी सहायक होते थे।प्रसिद्ध देवीसागर तालाब,कुंज तालाब,मुंज तालाब,नंदसागर तालाब आदि तालाबों की बसाहट व इनके निर्माण कुशल इंजीनियरिंग की मिसाल हैं।