हरि शंकर गोयल

Comedy

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हरि शंकर गोयल

Comedy

सुंदर कांड

सुंदर कांड

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आज सुबह सुबह सुंदर लाल जी हमारे मकान पर पधारे । कोरोना की घटना के बाद लोग दूसरे के घरों में जाने से ऐसे ही कतराने लगे जैसे सरकारी कर्मचारी ऑफिस जाने से , अध्यापक कक्षा में जाने से , वकील बहस करने से और पुलिस झगडे वाली जगह पर जाने से कतराती है । लेकिन सुंदर लाल जी की हिम्मत की दाद देनी पड़ेगी कि उन्होंने इतना बड़ा जोखिम उठाकर भी हमारे घर पर आने का साहस दिखाया । इस कोरोना काल में जब परछाईं भी इंसान का साथ छोड़ गई तो पड़ोसी का घर आना भगवान के दर्शन होने से कम नहीं है । 

हमने जैसे ही सुना कि हमारे पड़ोसी हमारी कुटिया में पधारे हैं ,हम तुरंत उन्हें लेने के लिए ऐसे धाये जैसे श्रीकृष्ण भगवान सुदामा को लेने के लिए नंगे पांव दौड़े चले गये थे । उनको घर के सामने देखकर हमारी आत्मा आनंदमय हो गई । आंखों से खुशी के आंसू उमड़ने लगे । वो तो शुक्र था कि उन्होंने अपने पैर पीछे कर लिए वरना हमारे आंसू उनके पैर धो धोकर ऐसे साफ कर देते जैसे कोई जेबकतरा जेब साफ करता है। हमारे इस भक्ति भाव से वे भाव विव्हल हो गए ।

हमने कहा " हे भगवन । इतने दिनों से आप कहाँ थे ? कब से आपकी बाट देख रहे हैं । इस कोरोना के कारण अब तो परिंदा भी यहां पर नहीं मारता है और ऐसे विकट समय में आप "सशरीर" यहां पर तशरीफ लेकर आये हैं । आपने वीडियो कॉल की अधुनातम प्रणाली का उपयोग नहीं कर साक्षात दर्शन देकर हमें अपना मुरीद बना लिया है । ऐसे में समझ ही नही आता कि क्या करें , क्या ना करें ? लगभग डेढ साल बाद इस घर की ड्यौढी पर आज हमने किसी इंसान को सशरीर देखा है । धन्य भाग हमारे जो आपके चरण पड़े हमारी कुटिया पर । यह कुटिया आज पवित्र हो गई है । चलिये , अंदर विराजिए " । 

वो बोले " धन्य तो हम हुए हैं जो आपके भी दर्शन हो गये । यह समय बड़ा कठिन है और इस समय में हर आदमी मिलने से कतराता है इसलिए मैं भी डर डर कर ही आया हूँ कि कहीं आप मुझे अंदर घुसने भी देंगे या नही । दरअसल मैं इसलिए आया हूँ कि आज शाम को सात बजे से घर पर सुंदर कांड का पाठ होगा । उसमें आपको सपरिवार आना है" ।

"अरे वाह । यह तो बहुत अच्छी बात है । आपके घर पर सुंदर आयोजन है और वह भी सुंदर कांड का पाठ ! नाम सुनकर ही आनंद आ गया । सुंदर लाल जी के घर सुंदरी भाभी की प्रेरणा से सुंदर कांड के पाठ का सुंदर आयोजन वह भी सुंदर मंडली के द्वारा । बहुत खूब । खूब आनंद बरसेगा " । 

"पूरे परिवार को ही आना है । विशेषकर भाभीजी को साथ लाना है । उनके बिना आनंद नहीं आयेगा " 

" बिल्कुल भी चिंता मत कीजिए । हम तो हमेशा ही साथ जाते हैं इसलिए आपके घर भी हम दोनों साथ साथ ही आयेंगे" । हमने उन्हें आश्वस्त किया ।

और वे चले गये । हमने श्रीमतीजी को सारी बात बताई तो सबसे पहले उन्होंने पूछा कि क्या सुंदर कांड के साथ खाना भी है" ? हमने कहा "ऐसा तो कुछ कहा नही उन्होनें । शायद खाना नहीँ होगा " । 

."बिना खाने के क्या आनंद ? भजन और भोजन का तो चोली दामन का साथ है । और बुजुर्गों ने कहा भी है कि भूखे भजन ना होय गोपाला । यह ले कंठी यह ले माला । जीभ को पाठ करने में इतनी मेहनत करनी पड़ेगी और बदले में कुछ 'रसास्वादन' करने को नहीं मिले तो ऐसे पाठ का क्या फायदा ? अगर भोजन नहीं है तो फिर ऐसा करना , आप ही चले जाना । हम जाकर क्या करेंगे वहाँ " ? 

"ऐसा नहीं कहते भाग्यवान ! बड़ी मुश्किल से तो कोई व्यक्ति इस घर में आया है आज और आयोजन भी बहुत सुंदर है उसके यहां पर । केवल भोजन नहीं होने से उस भक्ति भाव वाले आयोजन में नहीं जायें , यह ठीक नहीं है । आपको पता है कि कोई अपने घर में सुंदर कांड का पाठ क्यों करवाता है" ? हमने सीधी गुगली फेंकी । 

वो हमारी गुगली में फंस गई । कहने लगी "रामचरित मानस का सबसे छोटा भाग है सुंदर कांड इसलिए उसका पाठ करवाते हैं , और क्या" ? 

" नही देवी , ऐसा नहीं है । सुंदर कांड रामचरित मानस का सबसे सुंदर भाग है इसलिए उसका पाठ करवाया जाता है । राम कथा में जिस तरह भगवान राम की जिंदगी में उनके विवाह के पश्चात नकारात्मकता का प्रवेश होता है । पहले तो कैकेयी के माध्यम से परिवार में विभाजन की स्थिति उत्पन्न होना , फिर राम जी को बनवास , भरत जी को राज , दशरथ जी का देहावसान , फिर भरत जी का साधु की तरह कुटिया बनाकर रहना , सीता जी का अपहरण आदि आदि घटनाएं । ये सारे प्रसंग नकारात्मकता के हैं । इसके पश्चात अब जो हालात बने हैं उससे सकारात्मकता आने लगी है । सीता जी का पता लगाना , राजा सुग्रीव का साथ मिलना , सागर पार कर लंका विजय की शुरुआत , हनुमानजी द्वारा लंका दहन करना और राम जी की शक्ति का एक छोटा सा प्रदर्शन करना । यह सब सकारात्मकता का ही परिचायक है । निराशा के गर्त से निकलकर आशा के आसमान में उड़ना सदैव स्फूर्तिदायक होता है । सुंदर कांड इसीलिए सर्वश्रेष्ठ है क्योंकि वह पाठकों में आशा का संचार करता है । रामजी के नाना रुपों से परिचित करवाता है । अतः रामचरित मानस का सबसे सुंदर भाग है सुंदर कांड । इसलिए इस नेक काम में हमको भी भाग लेना ही चाहिए । बाकी आपकी इच्छा" । 

"मुझे नहीं पता था कि आप इन सबमें इतनी जानकारी रखते हैं" 

"आपने हमें जाना ही कब है मैडम जी । घर की मुरगी दाल बराबर जैसी हालत है हमारी" । मौका देखकर हमने भी छक्का जड़ दिया । 

"ठीक है , तो हम लोग खाना खाकर चलेंगे" । 

खाना खाने के बाद करीब नौ बजे हम लोग वहां पहुंचे । दस पंद्रह पुरुष और इतनी ही महिलाएं वहां पर मौजूद थीं । इतनी कम संख्या देखकर श्रीमती जी चौंकीं । 

"सेठ किरोडीमल के यहां जब सुंदर कांड का पाठ था तब तो सैकड़ों लोग थे , मगर यहां तो कुछ इने गिने लोग ही उपस्थित हैं । ऐसा क्यों" ? उन्होंने शंका प्रकट की ।

"क्योंकि सेठ किरोडीमल के यहां सुंदर कांड के पाठ के पश्चात 'सुंदर भोजन' की व्यवस्था भी थी । छप्पन भोग का प्रसाद था । कौन दुर्भाग्य शाली होगा जो छप्पन भोग के प्रसाद को छोड़ेगा ? ऐसे में तो सब लोग आ जाते हैं सुनने के लिए । मगर यहां पर केवल पाठ ही पाठ है और कुछ नही । कहते हैं कि सूखी रोटी गले से नीचे नहीं उतरती है । घी लगाना पडता है उसमें। उसी तरह से सुंदर कांड का रूखा रूखा पाठ भी हजम नहीं होता है , भोजन कराना पड़ता है उसे पचाने के लिये । मगर यह ताज्जुब की बात है कि रूखे सूखे पाठ के लिए भी पच्चीस तीस लोग तो आ ही गये । दरअसल ये लोग सच्चे भक्त हैं" । 

और हम लोग पाठ में शामिल हो गये । 'मंडली प्रमुख लोगों से आग्रह कर रहा था कि सब लोग हाथ ऊपर करके पाठ का आनंद लें । कभी वह ताली बजवाता तो कभी नाचने के लिए कहता । सब लोग मस्ती में झूम रहे थे । 

श्रीमती जी ने पूछा " ये पंडित सबके हाथ ऊपर क्यों करवा रहा है ? कभी ताली बजवा रहा है । ऐसा क्यों" ? 

हमने अपने ज्ञान का प्रदर्शन करते हुए कहा । "देवी । मनुष्य का मन बडा चंचल होता है । कभी यहां तो कभी कहाँ होता है , खुद मनुष्य को पता नहीं होता है । एक मिनट में यह मन सातों लोकों की यात्रा कर आता है । ऐसे में मनुष्य का ध्यान सुंदर कांड पर केन्द्रित नहीं होकर काम धंधे पर , पडोसन पर , पडोसन की साड़ी पर चला जाता है । तो यह व्यक्ति लोगों को जबरन सुंदर कांड के पाठ पर ही केन्द्रित करवाना चाहता है । इसके लिए ही यह सब ताली वगैरह करवाई जा रही है " । 

"मगर राम जी की कथा तो पूरी की पूरी आनंद देने वाली है और गोस्वामी तुलसीदास जी ने तो इसे अमर बना दिया है । फिर भी यह सब करना पड़ता है" ? श्रीमती जी ने शंका व्यक्त की । 

"देवी ! आपकी तरह तो हर वयक्ति समझदार नहीं है न ? अगर सभी लोग इतने समझदार हो जायें तो फिर जबरन ना तो ताली बजवानी पड़े और ना ही भोजन बनवाना पड़े" 

मेरे इतना कहने पर श्रीमती जी ने हमें ऐसे घूरा जैसे कि वे हमें कच्चा चबा जाएंगी । हमने अचकचाकर कहा "कुछ लोग भोजन के लिए ही आते हैं न , पाठ में । मेरा मतलब वही था ।" हम भी मुस्कुरा कर रह गए । 



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