Priyanka Gupta

Inspirational

4.5  

Priyanka Gupta

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सुहाग चिन्ह

सुहाग चिन्ह

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"नव्या बेटा ,क्या हुआ ,अभी तक तैयार नहीं हुई ?",नव्या के कक्ष में प्रवेश करते हुए उसकी सास ममता ने कहा । 

"मम्मी ,कब से साड़ी पहनने की कोशिश कर रही थी ;लेकिन कुछ न कुछ गड़बड़ हो रही है । आप थोड़ी मदद कर दो । ",नव्या ने कहा । 

"बेटा ,तुम्हें साड़ी आरामदायक नहीं लगती तो सलवार सूट पहन लो । साड़ी पहनना ऐसा कोई जरूरी नहीं ।",ममता ने नव्या की साड़ी पर पिन लगाते हुए कहा । 

"मम्मी ,मुझे साड़ी पहनना अच्छा लगता है । आप साड़ी में कितने सुन्दर लगते हो । जब से शादी होकर आयी हूँ ;आप पर से मेरी नज़र ही नहीं हटती ।नीचे से ऊपर तक ,एकदम परफेक्ट । ",नव्या ने ममता के गले लगते हुए कहा । 

"चल पगली । ",ममता ने कहा और न चाहते हुए भी उसकी नज़रें आईने पर चली गयी । ललाट पर बड़ी सी बिंदी ,माँग में चुटकी भर सिन्दूर ,आँखों में हल्का सा काजल ,सलीके से पहनी हुई साड़ी ,हाथों में एक -एक लाख की चूड़ी ;नव्या ने कहाँ गलत कहा था । 

"तुम आराम से बैठो ;जैसे ही रस्म शुरू होगी ,साँची को तुम्हें लिवाने के लिए भेज दूँगी । ",ममता ने नव्या के सिर पर हाथ फेरते हुए कहा । 

"ठीक है ;मम्मी । ",नव्या ने कहा । ममता ,नव्या के कक्ष से बाहर आ गयी थी । ममता ,साँची और साकेत की छोटी सी दुनिया में,नव्या ने हाल ही में कदम रखे थे । 

ममता ,अपने पति आनंद ,सास कैलाशी और दोनों बच्चों साँची तथा साकेत के साथ अपनी छोटी सी दुनिया में खुश थी ।ममता जब शादी होकर ससुराल आयी थी ,तब सास कैलाशी ने चाँदी की छोटी सी सिंदूरदानी देते हुए कहा था कि ,"बेटा ,पति की लम्बी उम्र के लिए हमेशा माथे पर सिन्दूर और बिंदी लगाना । अपने पैरों से कभी बिछुए और पायल अलग मत करना । "

शुरू-शुरू में ममता को यह सब पहनना और करना ,थोड़ा अजीब सा लगता था ;लेकिन धीरे -धीरे उसे यह सब पहनने की आदत हो गयी थी । वाकई में ,अब वह सब चीज़ें उसके अस्तित्व का हिस्सा बन गयी थी ;वह उन सब सुहाग -चिन्हों के बिना स्वयं की कल्पना तक नहीं कर सकती थी । 

ममता की गृहस्थी अच्छी -खासी चल रही थी । दोनों बच्चे साकेत और साँची भी प्रतिभाशाली थे । साकेत मेडिकल के अंतिम वर्ष में था । साँची को नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी में प्रवेश मिल गया था ।सब कुछ अच्छा चल रहा था।

उस सुबह भी आनंद रोज़ की तरह अपनी पत्नी ,माँ और बच्चों से हँस -बोलकर ,अपने ऑफिस गया था । लेकिन उस दिन आनंद वापस नहीं लौटा ।लौटा तो उसका पार्थिव शरीर । एक पल में कैलाशी, ममता और उसके बच्चों की दुनिया बदल गयी थी । जैसे -तैसे आनंद का अंतिम संस्कार किया गया । घर नाते-रिश्तेदारों से भरा हुआ था । अंतिम संस्कार के समय भी लोग बातें बनाने से बाज नहीं आते । विभिन्न क्रियाकर्मों ,परम्पराओं ,रस्मों को लेकर नुक्ताचीनीचलती रहती है । जितने मुँह ,उतनी बातें होती हैं । अपने एक सदस्य को खोने वाले परिवार की पीड़ा और दर्द की परवाह कितने ही लोग करते हैं ?

ऐसी ही एक परम्परा सुहाग चिन्ह हटाने की होती है । इस परम्परा में घर की महिलायें ही बढ़ -चढ़ कर हिस्सा लेती हैं ये वही महिलाएं होती हैं, जो पहले किसी विवाहित स्त्री पर सुहाग चिन्ह पहनने के लिए दबाव बनाती हैं और जब उस स्त्री को इन सबको पहनने की आदत हो जाती है एवं जब ये सुहाग चिन्ह उसके अस्तित्व का एक हिस्सा बन जाते हैं ;तब उन्हें उतारने के लिए दबाव बनाती हैं । शायद इन महिलाओं को खुद को नहीं पता कि वे पितृसत्ता के हाथों की कठपूतली बनकर ,अपनी साथी महिला के ही कष्ट और पीड़ा का कारण बन रही हैं । 

ममता को भी इस रस्म के लिए लाया गया । ममता चीत्कार उठी । ममता के दर्द से अनजान महिलाएँ ,उसके सुहाग चिन्ह हटाने की तैयारी करने लगी ।तब ही एक आवाज़ गूँज उठी ,"रुक जाओ ;कोई भी मेरी बहू के सिर पर हाथ नहीं लगाएगा । "

ममता की सास कैलाशी की आवाज़ गूँज उठी ,"मेरी बहू जैसे पहले रहती थी ;अब भी वैसे ही रहेगी । "

"हाँ ,हमें हमारी मम्मी बिंदी और सिन्दूर में ही अच्छी लगती है । ",साकेत और साँची ने कहा । 

सारी औरतों के बीच खुसर -पुसर शुरू हो गयी थी ।लेकिन कैलाशी के आत्मविश्वास से भरे मजबूत लफ़्जों के सामने किसी की कुछ और बोलने और पूछने की हिम्मत नहीं हुई । 

"बेटा ,तू जैसे रहना चाहे ;वैसे ही रह । दुनिया की परवाह मत कर । ",कैलाशी ने अपनी बहू ममता से कहा उसके बाद ममता ने कभी भी अपने सुहाग चिन्हों को अपने से दूर नहीं किया । धीरे -धीरे दूसरे लोगों ने उसे उसी रूप में स्वीकार कर लिया था । 

"अरे भाभी ,अब तो बहू को बुलवा लो । मुँह दिखाई की रस्म शुरू करें । "चचेरी ननद की बात सुनकर ,अपने ख्यालों की दुनिया से ममता बाहर आ गयी थी । 

"हाँ दीदी ,अभी बुलवा लेते हैं । ",ममता ने मुस्कुराकर कहा । 


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