सुबह का भुला
सुबह का भुला
"पापा आज शाम को बाजार चलेंगे, हमें बहुत सारे खिलौने लेने हैं। "
और पापा आपको मालूम है मुझे कार लेनी है !"
"और मुझे भी तो साइकिल लेनी है !"
पापा आप ऑफिस से आओगे ना तो फिर इकट्ठे चलेंगे। "
दोनों बच्चे धीरेन के आसपास नाचने लगे।
धीरेन परेशान हो गया और गुस्से में बोला -
"मुझे ऑफिस के लिए देर हो रही है और तुम दोनों हो कि सुबह सुबह मुझे परेशान कर रहे हो। जाओ यहाँ से बाहर जा के खेलो।"
"धीरेन क्या हुआ बेटा ! बच्चों से इस तरह गुस्से से नहीं बोला करते।"
माँ ने रसोईघर से आवाज लगाई।
"माँ आप ही देखो ना सारा दिन या तो टीवी देखते रहते हैं या फिर खेलते रहते हैं।" "
हाँ ठीक है बेटा !अभी बच्चे ही तो हैं, तुम्हें याद नहीं कि तुम भी तो ऐसे ही किया करते थे।"
माँ की बात सुनकर धीरेन जाने कहाँ खो गया -
" हाँ माँ ठीक ही तो कहती है मैं भी तो सारा दिन खेल में मस्त रहता था और पापा उन्होंने तो मुझे कभी रोका टोका तक नहीं। मेरे कहने से पहले ही खिलौनों का ढेर लग जाता है। घर में मेरी हर फरमाइश हर ख्वाहिश पापा पूरा किया करते।"
ख्यालों का लंबा सिलसिला मन में चल रहा था -
"पापा की कितनी ही बातें मेरे मन में आज भी मुझे आज भी याद है। मीठी यादें ! मीठी बातें ! उनके साथ खेलना कूदना मस्ती करना ! उनके साथ मैंने अपनी जिंदगी के बहुत हसीन पल गुजारे पर..... मैं अपने बच्चों को डांट कर क्या उनके हसीन पल छीन रहा हूँ।"
अचानक धीरेन को ख्याल आया कि
" ये मैं क्या कर रहा हूँ अपने बच्चों के हसीन पल उनसे छीन रहा हूँ जब कभी वो मुझे याद करेंगे तो क्या मेरे गुस्से को याद करेंगे या जिस तरह मैं पापा की मीठी बातों को याद करता हूँ वैसे ही याद करेंगे।"
धीरेन को ख्याल आया -
"आज पापा होते तो बच्चों का कितना ध्यान रखते उनकी हर फरमाइश को पूरा करते और बच्चे भी सारा दिन दादा जी दादा जी कर के उनके ईद गिर्द घूमते रहते। वैसे भी कहते हैं ना मूल से ब्याज प्यारा होता है। आज पापा होते तो बच्चों के साथ कितनी मस्ती करते !"
"धीरेन !"
माँ ने रसोई घर से आवाज लगाई - "नाश्ता कर लिया !" "जी माँ !"
इससे ज्यादा धीरेन कुछ ना कह पाया। उसका गला रुँध आया और वे तेजी से घर से बाहर निकल गया। बच्चे बाहर आंगन में ही खेल रहे थे।
वह दोनों बच्चों के पास गया उनके सिर पर हाथ फेरा और बोला -
" आज ऑफिस से आऊंगा तो बाजार चलेंगे, जो भी तुम्हें खिलौने लेने हैं ले लेना।"
दोनों बच्चे खुशी से चहकने लगे और धीरेन से लिपट गए। धीरेन को उनका ये लिपटना बहुत अच्छा लगा और उसने मन ही मन निश्चय किया कि
"आज जिंदगी ने मुझे एक नया सबक सिखाया और मैं इस पर हमेशा कायम रहूंगा !"