सुबह का भुला
सुबह का भुला
दामिनी बहुत खुश थी, चकाचौंध वाली झूठी दुनिया और दिखावे के लोगों से निकल आयी थी।
हां, उसे अफसोस था और जीवन भर रहेगा कि नेटवर्किंग की आभासी दुनिया में भाई-बहन जैसे रिश्तों का मान्य औ दोस्ती की वरीयता अपने निजी जीवन में दी।
जहाँ उन्होंने अपने समय के साथ अपने होने का बोध करा दिया और बहुरुपिये रिश्तों से नकाब उतर गया।
उन रिश्तों का कभी भरोसा नहीं, जो सामने वालों के मुहं पर कुछ और पीठ पीछे अपने शब्द बदल ले दामिनी की कमी थी, अपनी तरह सबको समझती और वो उसके जीवन की सबसे बड़ी भूल...सारे दिन जिनको वो दिल से निभाती थे सब ने अपना स्वार्थ लिए आगे को चले गए।
दामिनी खामोशी से देखती रही और स्वयं को मजबूती के साथ अपनी भूल समझकर आभासी दुनियां के रिश्तों से निकल आयी, स्वयं को इक नया आयाम दिया।
दामिनी का यह निर्णय उसे विश्वास दिलाया कि गर सुबह को भुला शाम को घर लौट आये तो गंवाया कुछ भी नहीं बस पाया है।
